ऐतिहासिक माह 'अगस्त' की समाप्ति और सितम्बर माह का आरंभ ! भारत में 'कोरोना' महामारी से मृत्युदर काफी घटी है, तो स्वस्थता दर अत्यधिक बढ़ी है । अनलॉक-4 के साथ लोग सामान्य जीवन जीने की तरफ लौट रहे हैं, तो उच्च शिक्षा हेतु मार्ग प्रशस्त हो रहे हैं, बावजूद हमें सावधानी बरतनी ही है, अन्यथा सावधानी हटी, दुर्घटना घटी-- कथ्य 'तथ्य' बन चरितार्थ हो सकती है ! 'कोरोना' के विरुद्ध अभी तक टीका ईजाद नहीं हो पाई है, सिर्फ इस पर कार्य ही चल रही है । सितम्बर माह की 5वीं तारीख शिक्षाविद राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन की जन्म-जयंती लिए है, तो इसी तारीख को दुनिया की माँ 'मदर टेरेसा' की पुण्यतिथि भी है ! कोरोनाकाल में डॉ. राधाकृष्णन के ज्ञान और मदर टेरेसा की सेवाभाव को जोड़ते हुए आदर्श भारतीय होने का उदाहरण पेश करने होंगे ! तभी तो साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को समेकित रूप से सहेजने का शानदार प्रयास है 'इनबॉक्स इंटरव्यू' ! आइये, 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में इस माह के इंटरव्यू में साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी श्री अभिलाष दत्ता से रूबरू होते हैं और उनके विचारों से अवगत होते हैं......
प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) के बारे में बताइये ?
उ:-
देखिये, मेरा कोई एक कार्यक्षेत्र नहीं रहा है। मैं पहले पत्रकारिता भी कर चुका हूँ। थोड़ा बहुत आज भी इस क्षेत्र में सक्रिय हूँ। वर्तमान में एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हूँ और साथ ही पटना में स्थित एक सिने सोसाइटी में उप-संयोजक के पद पर हूँ। इसके साथ ही पटना के एक साहित्यक संस्था “लेख्य-मंजूषा” में उप-सचिव के पद पर भी हूँ।
प्र.(2.) आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मेरी पृष्ठभूमि तो शहर की रही है। मेरा गाँव बिहार के मधुबनी जिले में एक छोटा गाँव 'मानापट्टी' है। डकैतों के भय और बेरोजगारी के कारण मेरे दादाजी अपने समय में ही गाँव से पलायन कर के पटना शहर आ गये थे। दादाजी के बाद की पीढ़ी में अधिकतर लोग सरकारी नौकरी में चले गये। उस पीढ़ी से किसी को भी साहित्य, कला, संस्कृति अर्थात सृजनात्मक कार्यों में विशेष लगाव नहीं रहा। हाँ, दादाजी हमेशा से भगवान के कीर्तनों में अपना पूरा समय दिया करते थे। वह अपने सभी पोता-पोतियों को कीर्तन में मन लगाने को कहा करते थे। मुझे ऐसा लगता है, साहित्य की तरफ मेरा झुकाव दादाजी और मेरी माँ के कारण संभव हो पाया।
प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) है, इनसे आमलोग किस तरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मेरा कोई एक कार्यक्षेत्र नहीं है। आर्थिक दृष्टिकोण से बात करूँ तो मेरा कार्यक्षेत्र एक शिक्षक का है। शिक्षक का दायित्व होता है कि भविष्य की पीढ़ी को तैयार करना। मैं अपनी सभी विद्यार्थियों में देशभक्ति कि भावना के साथ-साथ साहित्य और कला का भी विकास हो इसके लिए सजग रहता हूँ। शिक्षक के इतर मैं पटना में 'पाटलिपुत्रा सिने सोसाइटी' में उप-संयोजक हूँ। इस सिने सोसाइटी का उद्देश्य है कि समाज में फिल्मों को लेकर खासकर बिहार में जो ग़लत अवधारणा है उस विचार को खत्म किया जा सके। लोग फिल्मों का अर्थ सिर्फ बॉलीवुड मसाला फिल्म को मान लेते हैं। जबकि फिल्में कई प्रकार के होते हैं। इसके अलावा फिल्मों में तकनीकी पक्ष के बहुत बड़ा सेक्टर है। हमारी सिने सोसाइटी में फिल्मों का प्रदर्शन,चर्चा सत्र, विभिन्न कार्यशाला इत्यादि हमेशा आयोजित होते रहती है। जिससे कई लोगों को फ़ायदा होता है। सिने सोसाइटी के कारण पटना से कई बच्चें पुणे के एफ.टी.टी.आई संस्थओं में विभिन्न कोर्सेज़ में पढाई कर रहे हैं।
प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
यहाँ सबसे बड़ी रुकावट है माहौल। बिहार की बात करूँ या सिर्फ पटना की, तो यहाँ के माहौल में सबसे बड़ी 'रुकावट' का होना ही कारण है। यहाँ के अधिकतर लोग खुद को और अपने बच्चों को सिर्फ पढ़ा कर सरकारी नौकरी या डॉक्टर, इंजीनियर बना देना भर चाहते हैं। यहाँ पर साहित्य, कला या कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रति लोगों में रुझान नहीं है। इस कारण पटना में यह एक बड़ी परेशानी है और हम सब इसतरह की परेशानियों से आए दिन गुजरते हैं। ऐसा नहीं है कि इस शहर में सृजनात्मक कार्य नहीं हो रहे हैं, लेकिन बहुत सीमित मात्रा में ! दूसरी परेशानी है, यहाँ व्यवसायिकता की भारी कमी है। अगर मुझे कोई शोर्ट-फिल्म या कोई वृतिचित्र शूट करना है और मैंने सामने वाले को नौ बजे का समय दिया तो सामने वाला ग्यारह बजे से पहले दिखाई नहीं देंगे ! इस कारण कई परेशानियां उठानी पड़ती हैं ।
प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
आर्थिक कार्यक्षेत्र में तो अभी तक किसी तरह की दिक्कतों का सामना तो नहीं हुआ है और ना ही किसी तरह का दिग्भ्रमित हुए हैं। हाँ, सृजनात्मक कार्यों में शुरुआत के दिनों में दिग्भ्रमित ज़रूर हुआ हूँ। पटना में कई यू-ट्यूब चैनल या कोई व्यक्ति विशेष ने कई बार फ्री में कंटेट राइटिंग मुफ़्त में करवाया। शुरूआती दिनों में समझ नहीं आया कि इस काम में नाम तो आएगा, लेकिन बाद में समझ में आया यह काम मुफ़्त में नहीं करना है। उसके बाद से मैंने मुफ़्त में लिखना छोड़ दिया।
प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
देखिये, यहाँ बार-बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है। मैं ऊपर पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ कि मेरा एक कार्यक्षेत्र नहीं है। आर्थिक क्षेत्र की बात करूँ तो पटना में नौकरी मिलना बहुत मुश्किल कार्य है। जिस स्कूल में मैं अभी शिक्षक हूँ वहाँ एक शिक्षक का पद रिक्त था, मैंने इंटरव्यू दिया और मुझे वह नौकरी मिल गयी। इससे पहले मैं पटना के एक वेब पोर्टल के लिए पत्रकार रहा । इसके अलावा सृजनात्मक कार्यों में मैं सिने सोसाइटी का उप-संयोजक हूँ। साहित्यिक संस्था का उप-सचिव और खुद एक लेखक हूँ। मेरे इन कार्यों से परिवार के लोगों किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है। देखिये, आप अगर अच्छी जगह काम कर रहे हैं, तो परिवार के बाकी लोगों को आपकी किसी अन्य कार्यों पर विशेष रूचि नहीं दिखती हैं । उन्हें बस इस बात की चिंता होती है कि नौकरी सही-सलामत करते रहे और शेष जो कर रहा है वो अच्छा कार्य ही करें !
प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
लेखन का कार्य अकेले करता हूँ। एक कहानी संग्रह (प्रकाशित), दो उपन्यास (अप्रकाशित)। पाटलिपुत्रा सिने सोसाइटी में फिल्मकार प्रशांत रंजन के संयोजन में कार्य होता है। प्रशांत रंजन जी पटना विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं। सिने सोसाइटी कार्य में सहयोग के लिए छ: लोगों की टीम है। हर व्यक्ति का अपना-अपना कार्य बंटा हुआ है। एक साहित्यिक संस्था 'लेख्य-मंजूषा' में अध्यक्ष के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार विभा रानी श्रीवास्तव जी के देख-रेख में कार्य सुसंचालित हो रही है।
प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
एक शिक्षक के तौर पर यह जिम्मेदारी होती है कि आने वाली पीढ़ी में देशभावना का पुट भरना हमारा कर्तव्य बने ! वहीं सिने सोसाइटी में हमारा प्रमुख उद्देश्य यह है कि फिल्मों के जरिये जो कि अपनी संस्कृति, सभ्यता के खिलाफ जो ग़लत अवधारणा फैलाई गयी है, उसे खत्म किया जाए। इसके लिए हमारी सिने सोसाइटी उन फिल्मों को अधिक प्रोमोट करती है, जिनमें भारतीय संस्कृति या क्षेत्रीय संस्कृति के बारे में बताती हो। हम ऐसे कलाकारों को मंच पर लाने की कोशिश करते हैं, जो भारतीय संस्कृति को फिल्मों या कला के अन्य कोई भी क्षेत्र से अधिक लोगों तक ले जाने का प्रयत्न करता है।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में सबसे पहला योगदान शिक्षा का है, इसलिए बतौर शिक्षक यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि अपने विद्यार्थियों को मैं इस तरह तैयार करूँ कि भविष्य में वह इस तरह की चीजों का प्रतिकार करें और खुद भी इस तरह की गतिविधियों में शामिल ना हो। सिने सोसाइटी में अच्छी और संस्कृतिवाली फिल्मों को दिखाना, उनपर चर्चा-सत्र का आयोजन करना इसका उद्देश्य है यानी हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सके या फिर बात कर सके ! हमारे साहित्यिक संस्था का उद्देश्य भी यही है कि लोगों में साहित्यिक चेतना का विकास हो। मेरा मानना है अगर आपमें कला, संगीत, साहित्य इन तीनों में किसी चीज़ में रूचि नहीं है, तो मानव-जीवन निरर्थक है।
प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
सृजनात्मक क्षेत्रों में कोई आर्थिक लाभ प्राप्त नहीं हुए हैं।
प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
एक-दो विसंगतियाँ नज़र आती है कि लोग समय पर कार्य कर के नहीं देते हैं। केस या मुकद्दमे जैसी स्थिति कभी नहीं आई है।
प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे?
उ:-
एक कहानी संग्रह “पटना वाला प्यार” समदर्शी प्रकाशन, मेरठ से 2018 प्रकाशित हो चुकी है। इसी साल इसी प्रकाशन से पहला उपन्यास भी प्रकाशित होने वाला है।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
इस मामले में अभी बहुत पीछे हूँ। इस बात का अफ़सोस होता है। हाँ, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला का गहमर गाँव में आयोजित होने वाले 'गहमर साहित्य सम्मेलन 2019' में 'युवा साहित्यकार सम्मान' प्राप्त हुए । हाँ, अनेक प्रमाण-पत्र अवश्य प्राप्त हुए हैं।
प्र.(14.) कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
आजीविका हेतु प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हैं। समाज और राष्ट्रसेवा हेतु मेरा यही संदेश है कि आप कोई भी कार्य करें, उनमें देशहित ही सर्वोपरि हो, क्योंकि आप देश से हैं, देश आपसे नहीं हैं।धन्यवाद।
आप यूँ ही हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
श्रीमान अभिलाष दत्ता |
प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) के बारे में बताइये ?
उ:-
देखिये, मेरा कोई एक कार्यक्षेत्र नहीं रहा है। मैं पहले पत्रकारिता भी कर चुका हूँ। थोड़ा बहुत आज भी इस क्षेत्र में सक्रिय हूँ। वर्तमान में एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हूँ और साथ ही पटना में स्थित एक सिने सोसाइटी में उप-संयोजक के पद पर हूँ। इसके साथ ही पटना के एक साहित्यक संस्था “लेख्य-मंजूषा” में उप-सचिव के पद पर भी हूँ।
प्र.(2.) आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मेरी पृष्ठभूमि तो शहर की रही है। मेरा गाँव बिहार के मधुबनी जिले में एक छोटा गाँव 'मानापट्टी' है। डकैतों के भय और बेरोजगारी के कारण मेरे दादाजी अपने समय में ही गाँव से पलायन कर के पटना शहर आ गये थे। दादाजी के बाद की पीढ़ी में अधिकतर लोग सरकारी नौकरी में चले गये। उस पीढ़ी से किसी को भी साहित्य, कला, संस्कृति अर्थात सृजनात्मक कार्यों में विशेष लगाव नहीं रहा। हाँ, दादाजी हमेशा से भगवान के कीर्तनों में अपना पूरा समय दिया करते थे। वह अपने सभी पोता-पोतियों को कीर्तन में मन लगाने को कहा करते थे। मुझे ऐसा लगता है, साहित्य की तरफ मेरा झुकाव दादाजी और मेरी माँ के कारण संभव हो पाया।
प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) है, इनसे आमलोग किस तरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मेरा कोई एक कार्यक्षेत्र नहीं है। आर्थिक दृष्टिकोण से बात करूँ तो मेरा कार्यक्षेत्र एक शिक्षक का है। शिक्षक का दायित्व होता है कि भविष्य की पीढ़ी को तैयार करना। मैं अपनी सभी विद्यार्थियों में देशभक्ति कि भावना के साथ-साथ साहित्य और कला का भी विकास हो इसके लिए सजग रहता हूँ। शिक्षक के इतर मैं पटना में 'पाटलिपुत्रा सिने सोसाइटी' में उप-संयोजक हूँ। इस सिने सोसाइटी का उद्देश्य है कि समाज में फिल्मों को लेकर खासकर बिहार में जो ग़लत अवधारणा है उस विचार को खत्म किया जा सके। लोग फिल्मों का अर्थ सिर्फ बॉलीवुड मसाला फिल्म को मान लेते हैं। जबकि फिल्में कई प्रकार के होते हैं। इसके अलावा फिल्मों में तकनीकी पक्ष के बहुत बड़ा सेक्टर है। हमारी सिने सोसाइटी में फिल्मों का प्रदर्शन,चर्चा सत्र, विभिन्न कार्यशाला इत्यादि हमेशा आयोजित होते रहती है। जिससे कई लोगों को फ़ायदा होता है। सिने सोसाइटी के कारण पटना से कई बच्चें पुणे के एफ.टी.टी.आई संस्थओं में विभिन्न कोर्सेज़ में पढाई कर रहे हैं।
प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
यहाँ सबसे बड़ी रुकावट है माहौल। बिहार की बात करूँ या सिर्फ पटना की, तो यहाँ के माहौल में सबसे बड़ी 'रुकावट' का होना ही कारण है। यहाँ के अधिकतर लोग खुद को और अपने बच्चों को सिर्फ पढ़ा कर सरकारी नौकरी या डॉक्टर, इंजीनियर बना देना भर चाहते हैं। यहाँ पर साहित्य, कला या कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम के प्रति लोगों में रुझान नहीं है। इस कारण पटना में यह एक बड़ी परेशानी है और हम सब इसतरह की परेशानियों से आए दिन गुजरते हैं। ऐसा नहीं है कि इस शहर में सृजनात्मक कार्य नहीं हो रहे हैं, लेकिन बहुत सीमित मात्रा में ! दूसरी परेशानी है, यहाँ व्यवसायिकता की भारी कमी है। अगर मुझे कोई शोर्ट-फिल्म या कोई वृतिचित्र शूट करना है और मैंने सामने वाले को नौ बजे का समय दिया तो सामने वाला ग्यारह बजे से पहले दिखाई नहीं देंगे ! इस कारण कई परेशानियां उठानी पड़ती हैं ।
प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
आर्थिक कार्यक्षेत्र में तो अभी तक किसी तरह की दिक्कतों का सामना तो नहीं हुआ है और ना ही किसी तरह का दिग्भ्रमित हुए हैं। हाँ, सृजनात्मक कार्यों में शुरुआत के दिनों में दिग्भ्रमित ज़रूर हुआ हूँ। पटना में कई यू-ट्यूब चैनल या कोई व्यक्ति विशेष ने कई बार फ्री में कंटेट राइटिंग मुफ़्त में करवाया। शुरूआती दिनों में समझ नहीं आया कि इस काम में नाम तो आएगा, लेकिन बाद में समझ में आया यह काम मुफ़्त में नहीं करना है। उसके बाद से मैंने मुफ़्त में लिखना छोड़ दिया।
प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र (पेशा नहीं, अपितु अभिरुचि) क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
देखिये, यहाँ बार-बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है। मैं ऊपर पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ कि मेरा एक कार्यक्षेत्र नहीं है। आर्थिक क्षेत्र की बात करूँ तो पटना में नौकरी मिलना बहुत मुश्किल कार्य है। जिस स्कूल में मैं अभी शिक्षक हूँ वहाँ एक शिक्षक का पद रिक्त था, मैंने इंटरव्यू दिया और मुझे वह नौकरी मिल गयी। इससे पहले मैं पटना के एक वेब पोर्टल के लिए पत्रकार रहा । इसके अलावा सृजनात्मक कार्यों में मैं सिने सोसाइटी का उप-संयोजक हूँ। साहित्यिक संस्था का उप-सचिव और खुद एक लेखक हूँ। मेरे इन कार्यों से परिवार के लोगों किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है। देखिये, आप अगर अच्छी जगह काम कर रहे हैं, तो परिवार के बाकी लोगों को आपकी किसी अन्य कार्यों पर विशेष रूचि नहीं दिखती हैं । उन्हें बस इस बात की चिंता होती है कि नौकरी सही-सलामत करते रहे और शेष जो कर रहा है वो अच्छा कार्य ही करें !
प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
लेखन का कार्य अकेले करता हूँ। एक कहानी संग्रह (प्रकाशित), दो उपन्यास (अप्रकाशित)। पाटलिपुत्रा सिने सोसाइटी में फिल्मकार प्रशांत रंजन के संयोजन में कार्य होता है। प्रशांत रंजन जी पटना विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं। सिने सोसाइटी कार्य में सहयोग के लिए छ: लोगों की टीम है। हर व्यक्ति का अपना-अपना कार्य बंटा हुआ है। एक साहित्यिक संस्था 'लेख्य-मंजूषा' में अध्यक्ष के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार विभा रानी श्रीवास्तव जी के देख-रेख में कार्य सुसंचालित हो रही है।
प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
एक शिक्षक के तौर पर यह जिम्मेदारी होती है कि आने वाली पीढ़ी में देशभावना का पुट भरना हमारा कर्तव्य बने ! वहीं सिने सोसाइटी में हमारा प्रमुख उद्देश्य यह है कि फिल्मों के जरिये जो कि अपनी संस्कृति, सभ्यता के खिलाफ जो ग़लत अवधारणा फैलाई गयी है, उसे खत्म किया जाए। इसके लिए हमारी सिने सोसाइटी उन फिल्मों को अधिक प्रोमोट करती है, जिनमें भारतीय संस्कृति या क्षेत्रीय संस्कृति के बारे में बताती हो। हम ऐसे कलाकारों को मंच पर लाने की कोशिश करते हैं, जो भारतीय संस्कृति को फिल्मों या कला के अन्य कोई भी क्षेत्र से अधिक लोगों तक ले जाने का प्रयत्न करता है।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में सबसे पहला योगदान शिक्षा का है, इसलिए बतौर शिक्षक यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि अपने विद्यार्थियों को मैं इस तरह तैयार करूँ कि भविष्य में वह इस तरह की चीजों का प्रतिकार करें और खुद भी इस तरह की गतिविधियों में शामिल ना हो। सिने सोसाइटी में अच्छी और संस्कृतिवाली फिल्मों को दिखाना, उनपर चर्चा-सत्र का आयोजन करना इसका उद्देश्य है यानी हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सके या फिर बात कर सके ! हमारे साहित्यिक संस्था का उद्देश्य भी यही है कि लोगों में साहित्यिक चेतना का विकास हो। मेरा मानना है अगर आपमें कला, संगीत, साहित्य इन तीनों में किसी चीज़ में रूचि नहीं है, तो मानव-जीवन निरर्थक है।
प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
सृजनात्मक क्षेत्रों में कोई आर्थिक लाभ प्राप्त नहीं हुए हैं।
प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
एक-दो विसंगतियाँ नज़र आती है कि लोग समय पर कार्य कर के नहीं देते हैं। केस या मुकद्दमे जैसी स्थिति कभी नहीं आई है।
प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे?
उ:-
एक कहानी संग्रह “पटना वाला प्यार” समदर्शी प्रकाशन, मेरठ से 2018 प्रकाशित हो चुकी है। इसी साल इसी प्रकाशन से पहला उपन्यास भी प्रकाशित होने वाला है।
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
इस मामले में अभी बहुत पीछे हूँ। इस बात का अफ़सोस होता है। हाँ, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला का गहमर गाँव में आयोजित होने वाले 'गहमर साहित्य सम्मेलन 2019' में 'युवा साहित्यकार सम्मान' प्राप्त हुए । हाँ, अनेक प्रमाण-पत्र अवश्य प्राप्त हुए हैं।
प्र.(14.) कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
आजीविका हेतु प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हैं। समाज और राष्ट्रसेवा हेतु मेरा यही संदेश है कि आप कोई भी कार्य करें, उनमें देशहित ही सर्वोपरि हो, क्योंकि आप देश से हैं, देश आपसे नहीं हैं।धन्यवाद।
आप यूँ ही हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
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