सुश्री दिव्या श्री |
वह जो अभी-अभी रोई है न
उससे नहीं पूछना रोने की वजह
हो सके तो दे देना अपना कंधा
जहाँ वह पूरी तसल्ली से रो सके
उससे नहीं पूछना रोने की वजह
हो सके तो दे देना अपना कंधा
जहाँ वह पूरी तसल्ली से रो सके
तुम जानते हो
उसके रोने पर भी बंदिशें लगी है
उसकी मुस्कान तो देखो
हंसी की लेप चढ़ाये आखिर कब तक हँसती रहेगी वह
उसके रोने पर भी बंदिशें लगी है
उसकी मुस्कान तो देखो
हंसी की लेप चढ़ाये आखिर कब तक हँसती रहेगी वह
वह जो खूब बोल रही है न
उसे बोलने देना मन भर
मत टोकना बीच में
बस उसकी कुंठा भरी बातों को सुनना
उसे बोलने देना मन भर
मत टोकना बीच में
बस उसकी कुंठा भरी बातों को सुनना
तुम जानते हो
उसे नहीं दिया जाता है बोलने
नहीं सुना जाता उसकी बातों को विचार विमर्श में
आखिर कब तक अपने हक के लिए चुप रहेगी वह
उसे नहीं दिया जाता है बोलने
नहीं सुना जाता उसकी बातों को विचार विमर्श में
आखिर कब तक अपने हक के लिए चुप रहेगी वह
वह जो अपने मन का कर रही है न
करने देना उसे अपने मन का
हो सके तो उसकी ख्वाहिश को समझना
लेकिन उसका कभी हाथ मत पकड़ना
करने देना उसे अपने मन का
हो सके तो उसकी ख्वाहिश को समझना
लेकिन उसका कभी हाथ मत पकड़ना
तुम जानते हो
वह नहीं करती विश्वास किसी पर
जरूर किसी से ठोकर खा चुकी है
आखिर कब तक ठोकर और विश्वास के द्वंद में उलझी रहेगी वह।
वह नहीं करती विश्वास किसी पर
जरूर किसी से ठोकर खा चुकी है
आखिर कब तक ठोकर और विश्वास के द्वंद में उलझी रहेगी वह।
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