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9.02.2020

'वह जो अभी-अभी रोई है न...'(कविता)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     02 September     कविता     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं सुश्री दिव्या श्री की फ़ेसबुक वॉल से साभार ली गयी नवीन कविता....
सुश्री दिव्या श्री

वह जो अभी-अभी रोई है न
उससे नहीं पूछना रोने की वजह
हो सके तो दे देना अपना कंधा
जहाँ वह पूरी तसल्ली से रो सके
तुम जानते हो
उसके रोने पर भी बंदिशें लगी है
उसकी मुस्कान तो देखो
हंसी की लेप चढ़ाये आखिर कब तक हँसती रहेगी वह
वह जो खूब बोल रही है न
उसे बोलने देना मन भर
मत टोकना बीच में
बस उसकी कुंठा भरी बातों को सुनना
तुम जानते हो
उसे नहीं दिया जाता है बोलने
नहीं सुना जाता उसकी बातों को विचार विमर्श में
आखिर कब तक अपने हक के लिए चुप रहेगी वह
वह जो अपने मन का कर रही है न
करने देना उसे अपने मन का
हो सके तो उसकी ख्वाहिश को समझना
लेकिन उसका कभी हाथ मत पकड़ना
तुम जानते हो
वह नहीं करती विश्वास किसी पर
जरूर किसी से ठोकर खा चुकी है
आखिर कब तक ठोकर और विश्वास के द्वंद में उलझी रहेगी वह।

नमस्कार दोस्तों ! 


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