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3.17.2020

'अनंत आकाश' [कविता]

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     17 March     कविता     No comments   

आइये,
आज मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रबुद्ध पाठकगण पढ़ते हैं, सुश्री किरण यादव के फेसबुक वॉल से साभार ली गयी कविता...

सुश्री किरण यादव

मध्य रात्रि में तेरी वीणा के तार शांत है 

मैं एकाग्र हो समस्त दिशाओं को निहारती हूँ 
कभी सप्तर्षि कभी ध्रुव तारा देखती हूँ 
जिनकी ज्योति धीमे-धीमे दीप्त हो रही है
ये अनंत आकाश आज मुझे देख प्रसन्न है 
मैं देख मुस्कुराती हूँ 
और आज आकाश ने अपनी बाँहें खोल दी है 
आओ समा जाओ मेरी अनन्त सीमाओं में
तुम्हारे विशाल ह्रदय में असीम प्रेम है 
मैं इस अनन्त गहराई में डूबना चाहती हूँ 
निहारते निहारते मैं विचरती हूँ आकाश में 
जहां सप्तर्षि ग्रंथ लिये बैठे है 
देख मुझे पास बुलाते हैं
मैं शांत मन से अपनी अंतरात्मा के पन्ने पलटती हूँ 
देखती हूँ हर पन्ना सुसज्जित है प्रकृति के सम्पूर्ण रंगों से 
ये रंग मेरी मुस्कुराहट के है 
सत्य प्रेम करूणा के है 
जिससे सम्पूर्ण ब्रह्मांड आज खिल उठा है 
पुष्प बरस रहे हैं दिव्य अद्भुत हार में गले में सुसज्जित है
देखते-देखते मैं अनंत आकाश की सीमाओं में समा जाती हूँ 
जिन स्वरों को मैंने अपने ह्रदय में दिन रात साधा है 
वही वीणा के तारों में आज बज उठे है 
सभी दिशायें इस झंकार से जागृत हो नाच उठी है 
आनन्दमयी तरंगों से आकाश गूंज उठा है।


नमस्कार दोस्तों ! 

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