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3.17.2020

"कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कोरोना हो ?" (कोरोना वायरस जनित महामारी COVID-19 पर हिंदी में पहली कविता)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     17 March     कविता     No comments   

वर्त्तमान में पूरी दुनिया, खासकर 140 से अधिक देशों में कोरोना वायरस लिए COVID-19 नामक संक्रामक बीमारी ही नहीं, मर्मान्तक महामारी द्रुतगति से फैल रही है ! चीन से निकलकर यह महामारी प्रत्येक जगह पहुँच आपदात्मक रूप अख़्तियार कर ली है ! यह सिर्फ़ सरकारी प्रयासों से ही दूर नहीं हो सकती, अपितु इसके लिए जनजागरूकता की जरूरत है। सर्दी-जुकाम जैसी लगनेवाली इस बीमारी को हल्के में नहीं लेनी चाहिए ! सिर्फ़ हाथ-मुँह धोकर, अपने हाथों को मुँह-आँख तक न पहुंचाकर, हैंडशेक से बचकर, व्यर्थ आलिंगन-चूमने से परहेजकर इत्यादि से ही नहीं, अपितु नित्य नूतन जानकारी इकट्ठे कर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क रखते हुए वायरस जनित ऐसी महामारी से हम सुरक्षा पा सकते हैं । 'हरवाकस' पौधे के पत्ते का जूस भी एतदर्थ कारगर साबित हो सकती है ! 

आइये, MoA के आज के अंक में पढ़ते हैं, विशुद्ध हिंदी में कोरोना वायरस जनित महामारी KOVID-19 पर पहली कविता, जिनके कवि हैं-- डॉ. सदानंद पॉल । तो आइये, इनसे हम एतदर्थ सीख लेते हैं और इनसे बचने का उपाय ढूढ़ते हैं.....

डॉ. सदानंद पॉल

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !

तुम तो मेरे लिए वीणा हो, मीना हो और इसी का नाम जीना हो !
क्या फरक पड़ता है, तुम्हें कटरीना कहूँ, रवीना कहूँ या करीना !
तुम तो मेरी जान हो, जौना हो, खुशी हो, क्रोध हो, रोना हो !
तुम अरमान मेरी, गुरुज्ञान मेरी, तुम अर्चना हो, स्वर्णा हो !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !

तुम आराधना, प्रार्थना मेरी; तुम अलौकिक, पारलौकिक हो !
तू पूजा है, तुम्हीं बंदगी, जिंदगी तू; हाँ-हाँ मैं ही गंदगी हूँ !
डॉक्टर तुम, मेरे हिस्से की हरवाकस तुम, हस्पताल तेरी !
तुम मेरी आत्मा हो, परमात्मा भी; रात सोना हो, सुबह खोना हो !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !

तुमसे कोई कहानी छिपी नहीं; यहाँ मेरी प्रतिभा बिकी नहीं !
तुम हो तो मैं आश हूँ, निराश-हताश भी, गले की खराश भी !
फ़्लू भी, छींक भी, जुकाम भी, मलेरिया और लवेरिया भी !
मानता हूँ, तुम शाकाहार हो, मैं निरा लम्पट, कमीना हूँ !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !

तू सर्द कम्पन रूखे-सूखे; मैं गर्म तवा की ताव पर भी हार हूँ !
तुम उषा हो, मैं पसीना भर; प्रात: हो, रात: भी, बात-बेबात भी !
तुम सफर हो, दुनिया देखी भी; मैं तो अंध और अनदेखी भी !
तुम हो तो सिम्पलीसिटी है, तुम न हो तो मॉल-हॉल खिलौना हो !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !

मैं ऋण हूँ, पर तुम रीना हो, मैं सफेद झूठ, तू चना-चबेना हो !
किस, हग, टच से गुस्से में हो, इसलिए दुनिया के हर हिस्से में हो !
तो हैंडशेक ना, हाथ-मुँह प्रक्षालन हाँ; तुमसे प्यार है कहो-ना !
तू 19 उमरिया प्यार मेरी, मैं ही कमीना, तू तो कोविड-कोरोना हो !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें कि तुम मेरे लिए कौन नहीं, मिस कौना हो !

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
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