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3.08.2020

'औरतें केवल देह नहीं होती...'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     08 March     विविधा     No comments   

एक तरफ हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं, वहीं दूजी ओर एक महिला होलिका को जला भी रहे हैं... क्या संस्कृति के नाम पर हम इस कुप्रथा को बंद नहीं कर सकते ?
आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री दिव्या शुक्ला जी की फ़ेसबुक वॉल से साभार ली गयी कविता....


सुश्री दिव्या शुक्ला

औरतें केवल देह नहीं होती 

इसी देह में इक कोख होती है 
जो तुम सबका पहला घर है 
अपने रक्त मांस से पोस कर जन्मती है तुम्हें
और तुम ईंट पत्थरों का घर बनाने के बाद 
भूल जाते हो अपना पहला प्रश्रय 
गाली देते हो उसी कोख को जहाँ ली थी तुमने पहली सांस 
तुम्हारी माँ बहनें बेटियां भी तो एक देह ही है 
ये सारी औरतें देह धरम निभाते निभाते भूल गई थी अपना अस्तित्व 
और मात्र देह बन कर रह गई थी--
चल रही थी दुनिया ये सारी सृष्टि एक भ्रम में जीते हुये 
और चलती ही रहती न जाने कब तक--
पर तुमने जगा दिया बार बार इन्हें लज्जित कर के 
यह जता कर औरत तुम सिर्फ एक देह हो 
सौ दिन की हो या सौ साल की हो--
आज फिर सृष्टि के बड़े आंगन में औरतों की महापंचायत जुटी 
सब ने समवेत स्वर में कहा--
यदि हम देह है तुम्हारे लिये तो तुम भी तो देह ही हो 
अंतर इतना है तुम कह देते हो हम कहते नहीं 
वरना तुम खड़े भी नहीं हो सकते किसी औरत के सामने 
अचानक गूंज उठा दिगदिगान्तर उनके ठहाकों से 
जिनसे प्रतिध्वनित हो रहा था बस एक ही स्वर 
यदि हम मात्र देह है तो तुम भी तो देह ही हो !

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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