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1.31.2020

'दहेज' (कविता)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     31 January     कविता     3 comments   

उच्च शिक्षित बेटी को उनकी योग्यता के वर ढूँढ़ कर भी नहीं मिलते ! मिलते भी तो गिफ्ट के रूप में उच्च डिमांड वरवाले की तरफ से किये जाते ! जब यहाँ दहेजनिषेध की बात होती, तो कहते कि यह तो आप अपनी बेटी को ही गिफ्ट दे रहे हो ! ज्यादा जोर देने पर कि गिफ्ट भी जबरन ली जाय, तो यह दहेज ही कहलायेगा ! तब फिर रंगभेद शुरू... कि आपकी बेटी काली है, कुरूप है..... पीएचडी कर लिया तो क्या ? हाँ, भारत में उच्च शिक्षित महिलाओं का अगर सर्वे की जाय, तो 80% महिलाएं अविवाहित ही होंगी ! शादी की योग्यता में वर-वधू के बीच 19-20 का अंतर चल सकता है, किन्तु 10-20 का अंतर तो उन उच्च शिक्षित नारियों के लिए ताउम्र दब्बूपना स्थिति लिए होगी ! ऐसे में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का औचित्य ही क्या है ? फिर तो 'यशवंत' का संवाद ही हावी रहेगा-- "सौ में अस्सी बेईमान, फिर भी हमारा देश महान" । महिलाओं के सबसे बड़े दुश्मन 'महिला' ही है, माँ तो माँ है, पर वह जब सास बन रही होती है... बहन तक ठीक है, पर जब वह ननद बन रही होती है, बुआ बन रही होती है ! इन देवियों को उनकी 'देवी' पद हेतु पुनः सुशोभित करें, तभी 'महिला दिवस' मनाये जाने की सार्थकता अभीष्ट सिद्ध होगी । आइये, आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान अंकित कुमार जी की मार्मिक कविता दहेज पर...


श्रीमान अंकित एस. कुमार

दहेेेज


एक जमाना है बीत गया, खून पसीना कर-कर के,
थोड़ा सा कमाया, उसमें भी बचाया मर-मर के
एक कि जगह आधी खाई, पूरी पूंजी रखी सहेज,
लिया उधार, गिरवी रखा मकान,
फिर भी न पूरा पड़ा दहेज...

बेटी को खुश रखूं, सोच उसके लिये राजकुमार सा लड़का देखा,
उसकी शादी में पानी की तरह पैसा फेंका..

लड़के वालों ने मांग रखी,
गाड़ी चाहिए महंगी वाली,
ख़ुशी की खातिर बेटी की,
हर मांग सर आंखो पे रखी...

जो बन पड़ा,वो सब किया
कर्ज के बोझ तले दब मर-मर कर जिया,
फिर भी कुछ पसन्द न उनको आया,
सुसराल के तानो ने बेटी का दिल रह-रह कर दुखाया,
बेटी की परेशानी को मैं भी समझ न पाया,
उसके पलकों के पीछे का दर्द मुझे न दिख पाया...

पीठ के नीले पड़े निशानों ने,
बेटी को दहेज का मतलब समझाया,
रोज-रोज के दर्द ने उसको इक दिन इतना तोड़ दिया,
फांसी के फंदे पर लटकी, उसने हम सब को छोड़ दिया,
इस कलमुहे दहेज की बेमानी मांगो ने,
मेरी खुशी का रुख मोड़ दिया...

कितनी बेटियाँ, रोंदी जाती है दहेज के लिये,
उन इंसानी राक्षसों को क्यों खुला छोड़ दिये,
बन्द करो ये दहेज के नाटक,
बहुत हो गया है अब आंतक,
समाज को नई दिशा दी जाए,
दहेज-सी कुरीति को मिटा दी जाए,
प्रण करो सब मिलकर,
किसी और की बेटी,फांसी पे न झूल जाए,
किसी और की बेटी, अब फांसी पर न झूल जाए...


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3 comments:

  1. UnknownJanuary 28, 2020

    जय हो

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  2. UnknownJanuary 28, 2020

    बहुत ही शानदार

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  3. Dinesh ChananiyaMay 16, 2020

    Very nyc line bro kash yeh smaj jldi se jldi yeh baat smj jaye

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
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