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11.06.2019

'ज़िंदगी के मायने... ज़िंदगी खुद समझाती है'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     06 November     कविता     No comments   

ज़िंदगी को समझना आसान नहीं है, लेकिन आज मैसेंजर ऑफ आर्ट लेकर आई है कवयित्री श्रुति जी की कविता ज़िंदगी, जिन्हें पढ़कर हमारे आदरणीय पाठकगण ज़िंदगी की अद्भुत परिभाषा से वाकिफ़ हो पायेंगे...,आइये, इसे हम पढ़ते हैं और लुत्फ़ उठाते हैं ----
सुश्री श्रुति


ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी के मायने 
ज़िन्दगी खुद समझाती है
हर मोड़ पर अपने
नए रंग दिखलाती है
कभी बस में लोगों की 
घूरती नजरों में
हिम्मत से चलने का
एहसास कराती है
तो कभी अंधेरी सड़क
पर बहादुर बनाती हैं।

ज़िन्दगी के मायने तो 
औरत भी सिखाती हैं
जो कभी दुर्गा तो 
कभी काली बन जाती हैं
कभी वह सुषमा स्वराज
तो कभी गीता फौगाट 
में नज़र आती हैं
और हर क्षेत्र में
अपनी जीत का झंडा 
शान से लहराती है।

ज़िन्दगी के मायने तो
वह मां भी सिखाती हैं
जिसकी पूरी ज़िन्दगी 
बच्चों के इर्द-गिर्द 
घूमती जाती हैं
जिसकी रक्षा के लिए वह
सबसे लड़ जाती है
जरूरत पड़ने पर वह
अपना सिंदूर भी मिटाती है
फिर भी काग़ज़ के टुकड़ों
में अपना नाम नहीं पाती हैं।

ज़िन्दगी रोज़-रोज़ नहीं 
पाई जाती है
इसीलिए ज़िन्दगी
अपने मायने दिखलाती
ही नहीं सिखलाती भी है
जब ये सफ़र के कारवां से
जुड़ती चली जाती है
शायद तब ज़िन्दगी
ज़िन्दगी कहलाती है।


नमस्कार दोस्तों ! 

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