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9.06.2019

'मेरी भी पुकार सुनो तो जरा'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     06 September     कविता     No comments   

दुनिया काफी आगे बढ़ गयी है, लेकिन कुछ लोग अब भी 'बेटा-बेटी' में भेदभाव करते हैं, हमें उनलोगों की सोच बदलने की जरूरत हैं। आइये, आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं सुश्री मधुलता त्रिपाठी की कविता...यह कविता हमारे आदरणीय पाठकगण को भावुक तो करेंगे ही, परंतु सोचने पर मजबूर भी करेंगे...


सुश्री मधुलता त्रिपाठी

'अजन्मी बेटी की पुकार'

इक कली हूँ मैं
खिलने दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी जीने दो मुझे
मैं भी पंख पसार लूं
चाहत है
जिंदगी सवार लूं
मुझसे मेरे सपने ना छीनो
कुछ नए रंग दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी जीने दो मुझे ।

मैं भी तुम्हारे जीवन का
अमूल्य एक अंश हूँ
अपना मानो मुझे
मैं भी तुम्हारी वंश हूँ
कुछ और नहीं मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूं
आप के खून के बराबर
अधिकार चाहती हूँ
मुझसे मेरा अधिकार ना छीनो
मेरा अधिकार दो मुझे
ना छीनो जिंदगी मेरी
जीने दो मुझे ।


नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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