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4.08.2019

"क्या आरक्षण जरूरी है ? क्या जाति-कुप्रथा जायज है ?" (एक किताब की समीक्षा)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     08 April     समीक्षा     No comments   

केंद्र सरकार की यह पहल अच्छी है कि वे गरीब सवर्ण को 10 प्रतिशत आरक्षण देने को नीतिगत व संविधानगत बनाने जा रहे हैं, किन्तु गरीब सवर्णों के लिए जो क्राइटेरिया अपनाये हैं, उनमें 5 एकड़ जमीन वाले और 8 लाख रुपये सालाना आय वाले लोगों को गरीब नहीं माने हैं यानी ₹66,666 प्रति माह कमाने के साथ 5 एकड़ जमीन रखनेवाले लोग 'गरीब' कैसे हो गए ? इस आरक्षण से बीपीएल व गरीबी रेखा के सवर्ण लोगों को चुनने में परेशानी होगी । एतदर्थ, इस आरक्षण से समाज में दूरियाँ बढ़ेगी । अगर हम सती-प्रथा के निषेध के लिए कानून बना सकते हैं, तीन तलाक के निषेध के लिए कानून बना सकते हैं, दहेज-निषेध, मद्य-निषेध, बालविवाह-निषेध, पॉलीथिन-निषेध इत्यादि के लिए कानून बना सकते हैं तो क्यों न सरकार जाति-निषेध के लिए भी कानून बनाएँ, क्योंकि आरक्षण तो जाति की ऊंच-नीच को हमेशा ही बनाये रखता है, अतएव हम जाति खत्म करने के लिए ही क्यों न सोचे ? बात-बात पर वे गाहे-बगाहे आरक्षण के बारे में ही क्यों सोचें ? आज  मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं सुश्री शिवांगी पुरोहित की किताब 'आरक्षण : 70 साल' की समीक्षा, जिनकी यथासमृद्ध समीक्षा किए हैं, समीक्षक दिनेश राजपुरोहित जी ने । तो आइये, इसे पढ़ते हैं ---




समयाभाव के बावजूद मैंने यह किताब देर रात जगकर आखिर पूरी पढ़ ही ली, क्योंकि प्रस्तुत किताब अग्रांकित कारणों से मुझे न केवल अच्छी लगी, अपितु भायी भी ! किताब में वास्तविकता का समावेश इस कदर है कि मैं इसकी समीक्षा कर निचोड़ निम्न प्रकार निकाल सका हूँ --

* शिवांगी जी खिलते कमल की पंखुड़ियों के समान नवीन लेखिका हैं, जिन्होंने विवादास्पद 'आरक्षण' विषय पर लिखने की कोशिश की है, उन्हें सबसे पहले हृदय की गहराई से साधुवाद करता हूँ, उन्होंने निडरता के साथ बिना भय के कम शब्दों में जो अधिक बातें रखी हैं यानी गागर में सागर भर दिया हैं।

* यह किताब पूर्ण रचनात्मक वर्णन, जानकारी, तथ्यों से लबरेज एवं आंकड़ों सहित उपलब्ध की गई हैं, जिसमें प्रारंभिक सामाजिक व्यवस्था और प्रारंभिक परिवर्तित व्यवहार, जो आज की पीढ़ी के लिए और भावी पीढ़ी के लिए समस्या का कारण बन गए हैं उस पर प्रहार किया गया है।

* किताब का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय एकता पर दृष्टि केंद्रित करते हुए एकतावादी दृष्टिकोण के विकास की अपील की गई हैं और किताब में उल्लिखित जानकारी कल्पना पर आधारित न होकर वास्तविकता के पटल पर ही लिखी गई हैं ।

* यह किताब आरक्षण के समर्थन या विरोध में नहीं हैं, अपितु कुछ वास्तविक तथ्यों का संग्रह हैं जो देश की नवनिर्वाचित युवा पीढ़ी को आरक्षण के मकड़जाल से बाहर निकालने में मददगार करेंगे .... और न्याय-अन्याय को भी कहानियों के माध्यम से उदहारण सहित दिखाई गई है तथा sc/st के कार्य शैली पर ध्यान आकर्षित करके समझाने की पूर्ण कोशिश भी है 'आरक्षण' में ।

* आरक्षण का असली हकदार कौन हैं और कौन नहीं....., सब दलित लोग गरीब नहीं हैं और सब सवर्ण अमीर नहीं हैं एवम् जातिगत आरक्षण को हथियार बताया हैं और नाली साफ कर रहें गटर में डूबकी लगा रहे, असली दलित की चिंता किसे हैं, उस पर शिवांगी जी ने अपनी चिंता जताई हैं । 

* नेताओं की वोट बैंक की राजनीति पर भड़काऊ भाषण ,जैसे–हरियाणा के एक राजनीतिक पार्टी के नेता द्वारा बयान दिया जाता हैं कि मुझे मुख्यमंत्री बना दो मेरे द्वारा जाटो को 10% आरक्षण दिया जाएगा और दूसरी तरफ माइकल बामशाद द्वारा DNA पर शोध करके सच साबित हुआ कि सभी भारतीयों का डी एन ए एक ही हैं चाहे दलित हो या सवर्ण.... एक बार दलितों को यह शोध अवश्य पढ़ने चाहिए.... ताकि हकीकत समझ सकें।

* शिवांगी जी द्वारा लिखीं गई किताब पढ़कर यह अहसास हुआ की पिछले कई अरसे से आरक्षण के मुद्दे पर अतृप्त चित्त को संतुष्टि पर करार दिया हैं ।


* शिवांगी जी को बहुत खूब प्रयास पर हार्दिक बधाईयां एवं भविष्य की अग्रिम रचनात्मक लेखन पर मेरी ओर से अशेष शुभकामनाएं कि आप हमेशा ऐसे ही लिखती रहिये !


नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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