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2.12.2019

'धूप आँगन की' : एक कॉपीराइट समीक्षा (सुश्री शशि पुरवार की कलम से)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     12 February     समीक्षा     No comments   

साहित्य न सिर्फ कल्पनाओं से जगमगाती दुनिया है, अपितु यहाँ वास्तविकता भी चिरनीत है, जो सीधे प्रहार न कर झूठ की विद्रूपता को अट्टहास वातावरण देकर व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है, लेकिन ऐसी निनाद जो हो, परंतु यहाँ वैचारिक तर्क अब विवाद का रूप लेती जा रही है । जिस तरह दुनिया गोल है, ठीक इसी भाँति यानी साहित्य को शब्दशः व अक्षरशः समझना बेहद मुश्किल है । आज 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में पढ़ते है, सुश्री शशि पुरवार की साहित्यिकता लिए यात्रा से जन्मी एक अजीब किताब ! आइये, इस किताब के बारे में जानते हैं, उन्हीं की लेखनी से ---




"धूप आँगन की" (सम्प्रति साहित्यकार की पुस्तक) जैसे आँगन में चिंहुकती हुई नन्ही परी की अठखेलियां, कभी ठुमकना तो कभी रूठ जाना, कभी नेह की गुनगुनी धूप में पिघलता हुआ मन है, कभी यथार्थ की कठोर धरातल पर पत्थरों सा धूप में सुलगता हुआ तन है । कभी बंद पृष्ठों में महकते हुए मृदु एहसास हैं, तो कहीं मृगतृष्णा की सुलगती हुई रेतीली प्यास है। कहीं स्वयं  के वजूद की तलाशती हुई धूप है, तो कहीं विसंगतियों में सुलगती हुई धूप की आग है ।  हमारे परिवेश में बिखरे हुए संवेदना के कण है ---धूप का आँगन।

जहाँ आदमी की दरकार है, वहीं धड़कनों से तकरार है। कहीं वेदना के स्वर है तो कहीं चिलचिलाती धूप पाँवों  में बेड़ियाँ डालती है।  जहाँ हवाओं में नमी है, वहीं हौसलों से प्यार भी  है। कहीं आँखों में टिमटिमाते ख्वाब है, तो कहीं ख़ामोशियों को तोड़कर मंजिल बनाता हुआ नया आकाश है । हमारे परिवेश में बिखरी हुई संवेदना के इन कणों को, क्यों न अपने स्नेह की नरम धूप से सहला दें। आओ इक सुन्दर सा आकाश बना ले।

हमारे प्रयास है, आपके दिलों में इक छोटी-सी जगह बना लें । आंगन की धूप को आप अपने हृदय से लगा लें । हम आपके प्यार को अपना आकाश बना लें । आंगन की धूप से सुप्त कणों को जगा दें !


नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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