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12.03.2018

"हर बीज को बरगद बनाती है, माँ !" [सुश्री शालिनी मोहन की मर्मस्पर्शी कविता]

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     03 December     कविता     No comments   

3 दिसम्बर यानी आज 'अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस' मनाया जा रहा है । सन 1992 से संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिवस की शुरुआत किए थे ! 'दिव्यांग' नाम को 'विकलांग' से सुधारकर गत वर्ष 'मन की बात' में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष रूप से उल्लिखित किये थे, क्योंकि वैसे व्यक्ति, जिनके विकल व बेकार अंग हैं, वही तो कालांतर में उनके लिए अद्भुत व दिव्य अंग है । उनके द्वारा किये गए सुकार्य उन्हें महत्वपूर्ण पद और प्रतिष्ठा तक पहुंचाता है । सच में, ऐसे सुकार्य शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ आदमी भी नहीं कर सकते हैं, इसलिए उन्हें बेचारा नहीं कहना चाहिए । दोनों पैरों से दिव्यांग सुश्री अरुणिमा सिन्हा तो एवरेस्ट शिखर पर चढ़ गई । सभी अंगों से विकल व आधुनिक  अष्टावक्र 'स्टीफेन हॉकिंग' के खगोलीय ज्ञान को पूरी दुनिया मानता है । पूर्व मंत्री एस. जयपाल रेड्डी और ओलंपियन दीपा मल्लिक ने अपने-अपने प्रतिभा का लोहा मनवाए हैं । अभिनेत्री साधना और क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी की एक-एक आँख पत्थर की रही हैं ! हमें दिव्यांगजनों से प्रेम करने चाहिए । वे तो प्यार के भूखे हैं, बेचारगी के नहीं ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं सुश्री शालिनी मोहन की कविता 'माँ ', जो संतान के हरतरह की बेचारगी से परे हैं ! आइये, इसे पढ़ते हैं.......


सुश्री शालिनी मोहन

दुनिया में सबकी प्यारी है माँ, 
सब के दिल की दुलारी है माँ !
ममता की मूरत, भोली एक सूरत,
दुनिया में सबकी ज़रूरत है माँ !
भूख लगे, दूध पिलाती है माँ, 
प्यास में, बारिश बुलाती है माँ !
चोट लगे, मरहम लगाती है माँ, 
दूर रहो, पास बुलाती है माँ !
पास रहो, प्यार जताती है माँ, 
ज़िद करो, आँख दिखाती है माँ !
रूठ जाओ, बहुत मनाती है माँ, 
हँसो, साथ खिलखिलाती है माँ !
आँखों में आँसू, सीने से लगाती है माँ,
अँधेरे में, सौ दीये जलाती है माँ !
घनी धूप हो, आँचल की छाँव बिछाती है माँ, 
हर बीज को, बरगद बनाती है माँ,
हाथों में दुआ, तिलक बन जाती है माँ, 
बददुआ ख़ुद पर आजमाती है माँ !


नमस्कार दोस्तों !

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