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10.21.2018

'करूँ पूजा, करूँ अर्चन रे !' (कवि अवध की एक प्रार्थनाजन्य कविता)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     21 October     कविता     No comments   

यह देश विश्वास में श्रद्धा रमाये पूजा-अर्चना में ही परिणाम ढूढ़ते हैं, तभी तो कोई पर्व-त्योहार आते ही सनातन धर्मावलम्बी पूजा-पाठ करने लग जाते हैं । हम भारतीय पूरी तन्मयता से इस प्रसंग हेतु लग जाते हैं और लगे भी क्यों नहीं ? ....क्योंकि इसी बहाने ही हम दोस्तों, रिश्तेदारों और अन्य लोगों को समय दे पाते हैं ! समय की साध इसके सापेक्ष ही फलदायी हो पाता है । आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, इंजीनियर अवधेश कुमार 'अवध'जी रचित महत्त्वपूर्ण प्रार्थना, जो कि माँ दुर्गा देवी को समर्पित है ! आइये, इस काव्य-प्रसून को पढ़ते हैं और चाहे तो श्रद्धा से लबरेज़ होते हैं.......


कवि अवधेश कुमार 'अवध'


'माँ'

माँ  दुर्गा, माँ   सरस्वती  है, माँ कल्याणी,  काली | 
दुश्मन जब भी आँख दिखाये हो जाती मतवाली || 

माता  के  पैरों  में  जन्नत, दिल है नेह समन्दर | 
शिव बनकर वह भर लेती जग का दुख अपने अन्दर || 

पन्ना बन वह मातृभूमि पर, अपना लाल लुटाती | 
राजवंश  की  रक्षा में, बेटा  चंदन कटवाती || 

जब  राधा  ने  दरिया    में  बहते बच्चे को पाया | 
वात्सल्य की चरम शक्ति से ही पयपान कराया || 

अपरिणीता   कुंती   को   कोई   कैसे   बिसराये | 
सामाजिक  मर्यादा  पर   अपनी संतान  भुलाये || 

अवधपुरी की माताओं के, सम्मुख सभी अधूरे | 
वन  में भेज पुत्र को माँ ने, वचन  किये सब पूरे || 

दोनों सुत को त्याग हुईं वो, बिना पुत्र की माता | 
मातु सुमित्रा के सम्मुख श्रद्धा से सिर झुक जाता || 

जीजाबाई  की  शिक्षा  है, वीर  शिवा की  थाती | 
कहकर सुनकर सब माताएँ, आदर से इठलातीं || 

मातु हिडिम्बा ने सुपुत्र को,  ऐसा  पाठ  पढ़ाया | 
'कमजोरों का साथ निभाना',अद्भुत धर्म निभाया|| 

पुतलीबाई ने मोहन से कहा  कि  झूठ न बोलो | 
बंदर - त्रय की उपादेयता, आओ मिलकर तौलो || 

परशुराम ने माता का सिर, क्षण भर में ही काटा | 
पितृभक्ति माँ ने सिखलाई,माँ का सिर धड़ बाँटा || 

ध्रुव  माता से अनुमति पाकर, किया साधना ऐसी | 
ईश्वर  ने  आ  गोद  उठाया,जग  हो गया हितैषी || 

दुर्योधन माँ के कहने पर, अमल नहीं कर पाया | 
केशव  की लीला  में उसने, अपने को  मरवाया || 

माता की आज्ञा सुन अर्जुन, बाँट दिये निज नारी | 
सकल ग्रंथ  में  नहीं मिलेगी,  ऐसी  पत्नी प्यारी || 

धन्य मातु जो मातृभूमि पर, अपनी गोंद लुटाती | 
पाल पोसकर अपने सुत की, कुर्बानी   करवाती || 

नमन शहीदों की माता को,नमन मातु की महिमा | 
नमन यशोदा, गांधारी,सिय,नमन मातु की गरिमा || 

ईश्वर की अनुपम कृति होती, जग के भीतर नारी | 
अपना  सर्व  समर्पण  करके, बनती  है महतारी || 

महतारी को सम्मुख पाकर, होता धन्य विधाता | 
महतारी से  मिलने  वह सौ बार धरा  पर आता || 

महतारी  अनुसुइया  ने  तो तीन  देव  को  पाला | 
बच्चे की खातिर देती माता ही प्रथम निवाला || 

दुनिया की विपदा हर ठोकर,सह करके मुस्काती | 
बच्चे की किलकारी में ही,स्वर्गिक सुख वो पाती || 

माता नर की हो या हो पशु- पक्षी, देव -निशाचर | 
माता की महिमा के आगे, नत हैं सब सचराचर || 

अपनी सुध- बुध को खोकर ही, अपना सर्व लुटाकर | 
नाम, रूप, वय  खो  देती है, अपना बच्चा पाकर || 

जाग- जाग गीले बिस्तर पर,  बच्चा पाला करती | 
बच्चे पर खुद को अर्पित कर,वह जीती या मरती || 

माता  का  पर्याय  नहीं  जग  में   है  कोई दूजा | 
सभी तीर्थ माँ के पग-तल में, माँकी कर लो पूजा || 

माँ  ही  गीता, माँ  कुरान  है, माँ  ही  गुरु की बानी |
'अवध' कहे कर जोड़ मातु ही, गुरु शिव शक्ति भवानी || 

हर साँसों के साथ जपो माता का नाम सुहावन | 
कट जाये त्रय ताप मातु का नाम ईश सम पावन ||

नमस्कार दोस्तों ! 

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