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10.13.2018

'माँ ! मुझे फिर से बचपना लौटा दो, न !' : सुश्री आकांक्षा डी. की एक मार्मिक कविता'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     13 October     कविता     No comments   

बचपना यानी बाल्यावस्था जिंदगी की वह सच्चाई है, जिसे हर कोई दुबारा, तिबारा या यूं कहें तो हमेशा ही जीना चाहते हैं, लेकिन जीवन की अन्य सच्चाई की तरह यह सच्चाई ज्यादा ही स्मरणीय और जीवंत है, जिसे कोई भूलना नहीं चाहते हैं और वैसे भी कोई भूले भी क्यों ? वैसे ज़िंदगीनामा के खुशनुमा कारनामे तो हम इसी अवस्था में करते हैं। 

आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, शिक्षिका सुश्री आकांशा डी. को, जोकि बचपन और बचपना को समर्पित अपनी कविता के माध्यम से बहुत कुछ कह देती हैं ! आइये, देर न करते हुए पढ़ते हैं और खोते हैं, हम अपने-अपने बचपनों के माया और मोहजाल में ---


सुश्री आकांशा डी.



! मुझे बच्चा फिर से बना दो, न !

बचपन में सुनाया करती थी,
माँ लोरी वही सुना दो फिर --
पानी में जो हिलता था,
माँ चाँद वही दिखा दो फिर --
कुछ पाने की जिद सी की है,
माँ फिर से मुझको डाँटो ना --
गिरते-पड़ते कदमों की,
माँ उँगली फिर से थामो ना --
बहुत रो चुका है मन,
फिर से टॉफी वही थमा दो माँ --
थक जाती हूँ हर शाम,
मुझे बच्चा फिर से बना दो, न।  

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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