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8.27.2018

"नारी को अबला कह अपमानित मत कीजिये, अभियान #justice4राखियाँ उन्हें बना रही हैं 'सबला''

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     27 August     अभियान, समीक्षा     No comments   

#justice4rakhiyan : एक अतिमहत्वपूर्ण अभियान, जिसे विदेश के एक चर्चित रिकार्ड्स बुक ने इसे यूनिक अभियान कहते हुए अपनी बुक (आगामी अंक ) में जगह दी है।

वैसे यह अभियान आप सभी दोस्तों के प्यार के बिना सफल नहीं हो पाएंगे, पर काफी दोस्तों ने अपने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपने-अपने विचार तो रखें ही, साथ ही रक्षाबंधन पर राखी बांधकर इस मुहिम को आगे भी बढ़ाये । 

इस मुहिम के लिए इतनी अच्छी और सच्ची वैचारिक-प्रसार के लिए आप सभी प्रत्यक्ष और परोक्ष चिंतक मित्रों के प्रति हृदयश: आभार । इस मुहिम पर जहाँ भाइयों ने बहनों की कलाई पर राखी बाँधकर नई परंपरा की शुरुआत किये, वहीं सोशल मीडिया पर बहनों ने खुलकर अपने भाइयों से मिले इस प्यार को फ़ोटो के साथ शेयर भी किये ! कहीं एक बहन ने दूजे बहन को, तो कहानी भाभी ने ननद को, मामा ने भांजी को ! 

यह मुहिम अभी शुरुआत भर है, लेकिन काफी लोगों ने जब इस मुहिम के प्रसंगश: अपने-अपने विचार रखें, तो हमें लगा कि इन लोगों के चुनिंदा विचारों को मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में जगह दूँ । ध्यातव्य है, कुछ दोस्तों ने हमारे फेसबुक पोस्ट पर विचार रखें, तो किसी ने मैसेज बॉक्स में, तो किसी ने अपने टाइमलाइन पर ! सभी मित्रों को आभार सहित उनके वक्तव्य यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं ! आइये, इन सबके समंजित रूप पढ़ते हैं............




उदास मुस्कान की सुन्दर कवयित्री सुश्री स्वर्णलता विश्वफूल जी अभियान के बारे में लिखती हैं--




पिछले साल से एक ऐसी अभियान ने मुझे और मेरी मीमांसा को बाँधे रखी, जो मैं यहाँ शेयर करना चाहती हूँ, यह मुझे सामाजिक अभियानों में न केवल बेहतर लगी, अपितु सामयिक मुहिम में सर्वोत्तम लगा, यह अभियान यानी  #justice4राखियाँ  :-

इस अभियान के अंतर्गत भाई ही बहनों की कलाइयों पर 'रक्षा-सूत्र' यानी राखी व रक्षा-बंधन बाँधते हैं । इतना ही नहीं, अभियान-प्रेरक व विचार-सूत्रक विगत 12 वर्षों से न केवल समोदर बहनों को, अपितु धर्म बहनों को रक्षा-सूत्र बाँधते आ रहे हैं । मेरे भाई भी पिछले कई वर्षों से ऐसा ही करते आ रहे हैं, पहले तो हमारे घरवाले सहित आस-पड़ोस के लोगों को भी यह अजीब लगता था, किन्तु अब सब ठीक है । अगर हम इसके theme को जानेंगे, तो लगेगा, यह परंपरा को तोड़ना नहीं, जोड़ना है ! क्या हम नहीं चाहते कि हमारी बहू-बेटी 'अबला' ज़िन्दगी से निजात पाए और 'सबला' बने ! हमारी सोच इन महिलाओं को कोमलांगी कह उनकी दायरा को सीमित कर रहे हैं... महिलाओं को पुरुष और उसपर भी उसके परिवार के पुरुष ही कमजोर और कायर बनाते हैं ! ...तो हमें इन महिलाओं को ताकतवर बनाने के लिए उन्हें 'जनानी' नहीं, 'मर्दानी' बनाइये!


मैं सहमत हूँ, इस अभियान के विचारसंवाहक से । कोई बहन रक्षा करने के लिए भाइयों से क्यों आग्रह करे, यह तो भाइयों का दायित्व है वे ही इस संबंध में पहल करें ..... बिल्कुल ही यह अभियान काबिल-ए-तारीफ है । जिन बहनों के समोदर भाई नहीं हैं, ऐसी बहनों के लिए धर्म भाइयों को आगे आने ही होंगे । हम बहनों को भी भाई को राखी बाँधने की परंपरा तोड़ ऐसे अभियान को प्रोत्साहित करने चाहिए ।

उनके भाई ने मिस विश्वफूल को गिफ्ट के रूप में #justice4rakhiyan नाम को सुंदर रूप में हाथ में मेहंदी रचाकर दी ! तस्वीर देखिए--



श्रीमती पूजा प्रणति राय जी लिखती है -- 'लो भइया, मैंने राखी बांध ली ।' 

सुश्री पूजा प्रणति राय जी लिखती हैं कि उनके दोनों बच्चों ने एक दूसरे को भी राखी बांधी ।




सुश्री प्रियंका रावत जी लिखती हैं-- 
'रक्षाबंधन की बधाई भाई, उज्ज्वल भाविष्य की कामना करती हूँ । 

(नोट:- उपरवर्णित भाई और भइया शब्द MoA के संपादक के लिए प्रयुक्त हुआ है! )

ऐसे ही कई तरह के विचार उभरकर सामने आये हैं । कुछ भाइयों और बहनों ने राय के रूप में 'एकलव्य का अंगूठा' भी प्राप्त कराए । आइये, इस अभियान पर कुछ दोस्तों के कमेंट , जो उनके ही शब्दों में हैं, जो उनके पोस्ट से साभार लिए गए हैं, अग्रांकित हैं:--

श्रीमती रचना भोला यामिनी जी की शब्दों में:- 
'यह रक्षा का सूत्र है, केवल भाई-बहन का त्योहार नहीं । मैं अपने बेटे को राखी बांधती हूँ ।'

सुश्री प्रेरणा जी की शब्दों में :-
'वह जरूर बांधेंगी ।' 
....और फ़ोटो में प्रेरणा जी राखी बांधती दिख भी रही हैं :-



पूर्व आईपीएस श्रीमान ध्रुव गुप्त जी के शब्दों में यह अभियान 'बहुत खूबसूरत' है ।

सुश्री सुषमा व्यास राजनिधि जी की शब्दों में:-
'जरूर, बहन का आशीर्वाद और ढेर सारा प्यार ।' (उन्होंने यह प्यार MoA को दी है)

सुश्री पूजा कुमारी जी की शब्दों में:- '
'सराहनीय पहल, घर में सबसे बड़ी होने के नाते भाइयों की रक्षा का दायित्व मैं ही निभाती हूँ । मुझे राखी बंधवाना पसंद है, भाई तो नहीं बांधते पर बहनों से बँधवा ही लेती हूँ पर इस बार भाई से भी बंधवाएँगे ।'

श्रीमान राज शर्मा जी लिखते हैं -- 'very good thought' 

सुश्री निशा हुसैन जी फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपने दोस्तों को राखी बांधती नजर आ रही हैं, देखिए साभार तस्वीर:-




इंजीनियर अशोक कुमार जी कहते हैं:- 
'रक्षाबंधन तो सबके लिए जरूरी हैं आपके इस मुहिम के लिये सत सत नमन् ! मैं भी इसको अपनाता हूँ।'

श्रीमती सुलक्षणा जी फेसबुक पोस्ट में लिखती हैं, वह ननद के घर गयी राखी बंधवाने:-


सुश्री त्रिपाठी प्रियंका जी की शब्दों में :-

'मेरी दृष्टि में बहन जब भाई को राखी बांधती है, तो वह रक्षाबन्धन रक्षासूत्र ही होता है।
अर्थात  it's for the safety of brother....!

प्राचीनकाल में आज के दिन पुरोहित यजमानों को रक्षासूत्र (रक्षाबन्धन ) बाँधते थे और उनकी रक्षा हेतु ईश्वर से प्रार्थना करते थे। कदाचित ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह परंपरा है। भाई बहन दोनों एक-दूसरे को रक्षाबन्धन बांधे और दोनों के स्वास्थ्य और आयुष की प्रार्थना करें।'

और बहुत सारे दोस्तों ने हमें शुभकामनायें दिए हैं, जिनमें हैं --

डॉ. प्रीति सुराना,
लेखिका प्रियंका ओम,
इंजीनियर प्रमोद रंजन,
इंजीनियर सेराज उद्दीन,
सुश्री जसवीर आनंद,
कवयित्री रुचि भल्ला,
कवि सौरभ शर्मा,
सुश्री सुप्रिया सिन्हा,
कवयित्री कात्यायनी सिंह,
सुश्री अनिता कुबेर पंचाल,
कवयित्री पंखुरी सिन्हा,
सुश्री पूजा पांडेय,
सुश्री आकृति विज्ञा 'अर्पण',
श्रीमान कुवंर शेखावत बन्ना,
इत्यादि !

काफी दोस्तों ने अभियान पर  26 अगस्त से पहले तक अपनी राय रखी और बहुतों ने बहनों की कलाई को खाली न होने दी, लेकिन कुछ दोस्तों ने इस अभियान को चुनौती भी दे डाली, लेकिन नकारात्मक बातों पर ध्यान न देते हुए सकारात्मक सोच के साथ, थोड़ी-सी आलोचना से goal से डिगना क्यों ?  

किन्तु इतने दोस्तों के विचारों से जहाँ यह अभियान इस बार अत्यधिक आशा के साथ खूब ही फलीभूत हुए,इसे खत्म तो नहीं कहूँगा, लेकिन अगली बार हर भाई अपनी बहनों की कलाइयों पर राखी बांधे,तब लगेगा कि justice हुआ है मुहिम #justice4राखियाँ  के प्रति कि रूढ़िवादी परंपरा में कथ्य का लोच आ गया है और तथ्य ने खाँटी उछाल मारा है !

[नोट:- उपरवर्णित सभी मित्रों व FB मित्रों के शब्द-विवरण इस आलेख को तैयार करने के लिए साभार लिए गए हैं और वैसे भी मित्रों से क्या छुपाना, उनके अच्छे कार्यों के गाहक तो बनना ही चाहिए ! सादर अभिवादन !]

---
प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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