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7.05.2018

"सवाल दागों, पर दगा देनेवाला नहीं, बल्कि दमदार और सार्थक'' (श्री शिवम त्रिपाठी के लघ्वालेख)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     05 July     अतिथि कलम     1 comment   

स्वामी विवेकानन्द 'मैकाले' द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अंग्रेजी शिक्षा-व्यवस्था के विरुद्ध थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बाबुओं की संख्या बढ़ाना ही रह गया था। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे, जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके ! बालक व बालिकाओं की शिक्षा का उद्देश्य आत्मनिर्भरता के साथ-साथ अनुशासन और ज्ञान भी होना चाहिए । स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को 'निषेधात्मक शिक्षा' की संज्ञा देते हुए कहा था-- "क्या आप उस व्यक्ति को ही शिक्षित मानेंगे, जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो ! परन्तु वास्तविकता यह है, जो शिक्षा 'जनसाधारण' को जीवन-संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र-निर्माण नहीं करती, जो समाज-सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस नहीं दे सकता, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ ?"
सत्यश:, आज की शिक्षा 'सवालों' से घिर चुकी हैं । इसपर स्वयं को परिमार्जित कर ही विविध सवाल पूछे जा सकते हैं । ऐसे ही सार्थक सवालों के एक पैरोकार को और उनकी पैरोकारी की बातों को आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, जो हैं दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक  श्रीमान शिवम त्रिपाठी, आइये पढ़ते हैं हम, उनके लघ्वालेख.....


श्रीमान शिवम त्रिपाठी

अगर आप सवाल पूछ कर यह साबित करना चाहते हैं कि आप सवाल पूछ सकते हैं, तो आपको थोड़ी शर्म और थोड़े ज्ञान की अर्जेंटली जरूरत है ।

सवाल पूछना बुनियादी हक़ है, जो संविधान ने आपको दिया है, जिसके लिए सदियों से कइयों ने कोड़े खाये हैं,अँगलियों में कीलें ठुकवाई हैं, तो 3×3 फ़ीट के कमरे में बिना रोशनदान के पूरी उम्र गुजारी हैं ।


सवाल पूछना एक रचनात्मक प्रक्रिया है और अंतरात्मा की आवाज से लिए छटपटाहट भी ! युवाओं का बड़ा तबका आज सवाल पूछ रहे हैं, ये तो बहुत बड़ी बात है, किन्तु इससे लोकतंत्र तब ही मजबूत हो पायेगा, जब उस निःसृत सवाल से सृजन हो, बेहतरी की बात हो और कुछ नया कर गुजरने की कसक हो। अगर ऐसा नहीं होगा, तो आप आलोचना और बुराई के अंतर को भूलकर इस समाज को कुछ भी दे नहीं पाएंगे !


आज के युवजन सवाल का इस्तेमाल सिर्फ़ किसी एक संस्था या व्यक्ति को निजी खुन्नस लिए उन्हें नीचे गिराने की नीयत से कर रहे हैं, जो कि समाज के हर अंग के लिए परेशानी का सबब व सोचने की बात है ! आपके पास मौलिक अधिकर तो है, पर इन नैतिक अधिकारों में कितनी मौलिकता बची हुई है, ये आपको तय करना है। ध्यातव्य है, आजकल सोशल मीडिया में सवालों के नाम पर असम्मान, ईर्ष्या, वैमनस्यता और विष-वमन हो रहे हैं ।



नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email - messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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1 comment:

  1. UnknownJuly 05, 2018

    Bohot badiya 👌👌

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