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6.28.2018

'एक ब्लॉगर की दास्ताँ'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     28 June     अतिथि कलम     No comments   

पिछले साल 'टूटती लाशें' काफी चर्चा का विषय रहा वाकया यह था कि कैसे इलाज के अभाव में एक औरत मर गयी, लेकिन अस्पताल के लोग इंसानियत को शर्मसार करने वाला काम कर गए ? उस महिला की लाश को तोड़कर पोटरी में बांधकर उसके पति को दे दिया गया ! पति के पास एम्बुलेंस के पैसे नहीं होने के कारण एक रिक्शा में लाश को गांव तक उसने लाया,लेकिन तमाशबीन समाज यह देखता रहा परंतु इस घटना के बाद भी प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया क्योंकि बिहार के अररिया जिले में कुछ महीने पहले एक महिला की लाश पोस्टपार्टम रूम में सड़ती रही, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी 'चुप' की नींद सोई रही भला हो प्रिंट मीडिया का जिन्होंने 'सोते हुए' लोगों को जगाया और सच्चाई से पर्दा उठ पाया लेकिन क्या हमलोग इंसानियत का फर्ज भूल गए है ?आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं लेखक, ब्लॉगर और रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रवीण झा की फेसबुक वॉल से साभार ली गयी आलेख, आइये पढ़ें......


श्रीमान प्रवीण झा

हम मरते हैं, तो हमारे शरीर पर किसका अधिकार होता है ? मुझे अदाकारा ललिता पवार जी याद आती हैं, जिन्होंने हमारे मेडिकल कॉलेज़ को शरीर देने की बात वसीयत में लिखी थी। जब वो मरीं, तो कॉलेज़ वाले दल-बल लेकर पहुँच गए। हमें भी लगा कि एक सेलिब्रिटी कैडेवर की चीड़-फाड़ कर अध्ययन करेंगे, पर आखिर में उनके परिजनों ने एक दूसरी वसीयत निकाल दी और शरीर हाथ से निकल गया।

 कल भूतों के देश आईसलैंड से खबर आई कि वहाँ के हर शरीर पर सरकार का हक है, और व्यक्ति के मरते ही सरकार कोई भी अंग किसी जरूरतमंद के लिए निकाल सकती है। नॉर्वे और यूरोप के 24 देशों में यह नियम पहले से हैं। आप पैदाइशी डॉनर हैं, और आपके मरने (या ब्रेन-डेड होने) के बाद आपके अंग सरकार बिना पूछे निकाल सकती है। बशर्तें कि आप लिखित मनाही कर दें। मनाही नहीं की, तो हर व्यक्ति डॉनर ही है। नतीजतन स्पेन जैसे देश आज विश्व में सबसे अधिक अंग प्रत्यारोपण/व्यक्ति करते हैं। उन्हें न किसी से पूछना होता है, न खरीदना। नॉर्वे में भी मरते ही जरूरत के अंग (किडनी, कॉर्निया) निकाल लिए जा सकते हैं। यही नियम सिंगापुर में भी है। अनिवार्य अंग-दान हर नागरिक के लिए।

जब बेंगलुरु में था, तो इस अंग से जुड़े गोरखधंधे से खूब रू-ब-रू हुआ। बाकायदा एज़ेंट होते और कनकपुरा की ओर एक गाँव से तो पता नहीं कितने किडनी लाए जाते। इस पर अपनी किताब में एक कथा भी लिखी। तीस हज़ार में किडनी खरीद डेढ़ लाख में बेचते। जिस वक्त सुनामी आया था, तब तो एक शरणार्थी कैंप की सारी काम की किडनी कुछ हज़ार रूपए देकर निकाल ली गयी। गर ऐसा कानून हो कि मरते ही आपके शरीर से आपका अधिकार हट गया, तो यह गोरखधंधा बंद हो सकता है। अरबों का देश है, और अंगों की जरूरत इससे कहीं कम है। हम तो फ़ेडेक्स से किडनी विश्व भर में भेज सकते हैं और वो भी बस कुरियर चार्ज़ लेकर। कितने नेत्रदान कर सकते हैं ! यही पुण्य है। यही मोक्ष है।

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email - messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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