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2.09.2018

कर्पूरी ठाकुर को मिले 'भारत रत्न'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     09 February     फेसबुक डायरी     No comments   

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को भारत रत्न मिले कई अरसे बीत गए, किन्तु उसके बाद बिहार के व्यक्तित्व व कृतित्व को भारत रत्न नहीं मिल सका है । विगत साल बिहार सरकार, खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के तीन दिवंगत विभूतियों के नामों को भारत रत्न अलंकरण के लिए भारत सरकार को प्रस्तावित व प्रेषित किया है, जिनमें वंचित, शोषित, पिछड़े वर्गों के मसीहा व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर, वहीं काम और जुनून के पक्के तथा 20 सालों तक पहाड़ काटकर रास्ता बनानेवाले दलित चेहरा दशरथ माँझी सहित गाँधी जी को सत्याग्रह और असली आज़ादी के आंदोलन दिखाने के लिए उन्हें बिहार लानेवाले चम्पारण के अंग्रेजी नीतियों से त्रस्त किसान राजकुमार शुक्ल के नाम भारत रत्न प्राप्तार्थ सूची में शामिल हैं, किन्तु केवल यही तीन नाम ही बिहार से भारत रत्न के क्यों ? बिहार में कई शूरमायें हो गुजरे हैं, जैसे- महान संत महर्षि मेंहीं, बाबा नागार्जुन, राष्ट्रकवि दिनकर, भोला पासवान शास्त्री, ललित नारायण मिश्र इत्यादि भारत रत्न अलंकरण के लिए सर्वोत्तम नाम हैं । इसके साथ ही कई जीवित किंवदंती भी हैं । अपेक्षा है, भारत के इस सबसे बड़े अलंकरण के लिए देश के प्रत्येक भागों से राष्ट्रसेवकों के नाम चुने जाएंगे ! आइये पढ़ते है मैसेंजर ऑफ आर्ट में...



सिर्फ पिछड़े वर्ग के नहीं, हर धर्म-जाति में प्रताड़ित शोषित-वंचित लोगों के मसीहा थे- कर्पूरी ठाकुर । बिहार के दो बार मुख्यमंत्री बने और जनमानस में छा गए । वे पार्टी-पॉलिटिक्स से ऊपर की चीज हो गए, क्योंकि वे मानवता से प्यार करने लगे थे । तभी तो उन्हें 'जननायक' कहा जाने लगा था । जिसप्रकार आध्यात्मिक क्षेत्र के जननायक गोस्वामी तुलसीदास थे, उसी भाँति सामाजिक विषमता को पाटने को कर्पूरी ठाकुर भी जननायक के रूप में उभरे । उनका जन्म भले ही चिह्नित पिछड़ा वर्ग में हुआ था, किन्तु वो सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय के बीच भी शोषित-वंचितों के उपास्य थे । वे अंगरेजी से नफ़रत नहीं करते थे, किन्तु हिंदी को हाशिये में डालकर उस अंगरेजी के हिमायती वे कभी नहीं रहे । जनवरी माह के 24 तारीख को उनकी जयन्ती हर वर्ष मनाई जाती है, आजादी के बाद के इस मसीहा को किसी भी प्रसंग में हाशिये में नहीं रखा जा सकता ! ऐसे में इस  शख्सियत को भारतवंद्य बनाने के लिए उन्हें 'भारतरत्न' दिया जाना जरूरी हो गया है ।


-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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