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7.28.2017

"इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     28 July     इनबॉक्स इंटरव्यू     14 comments   

प्रत्येक माह 'Messenger of Art' में 'Inbox Interview' देने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं । इस बार के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में 'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' ने बहुमुखी प्रतिभा (Multi Talented) की धनी व सांस्कृतिक संवाहिका श्रीमती शशि पुरवार जी से ली गई साक्षात्कार को एतदर्थ प्रस्तुत की जा रही है । विदित हो, शशि जी की माँ भी साहित्यिक अवदान लिए हैं, तो शशि जी की मातृ-परिवार के वरेण्य सदस्य 'स्वतंत्रता सेनानी' थे । इंदौर (म.प्र.) की श्रीमती पुरवार को भागलपुर (बिहार) से 'विद्यावाचस्पति' की उपाधि प्राप्त है, तो पूर्व महामहिम राष्ट्रपति से लंच-इन्विटेशन भी प्राप्त की हैं । ..तो आइए, शशि जी के 14 गझिन प्रश्नोत्तर से रु-ब-रु होते हैं--   



प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र  के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को  सुस्पष्ट कीजिये ? 




उ:-  
मै  स्वतंत्र लेखन करती हूँ, इंटरनेट व सोशल मीडिया, मेरे ब्लॉग सपनें के माध्यम से सीधे पाठकों, आलोचकों व समीक्षकों से जुड़ने का मौका मिला। सामाजिक विसंगतियां, लिंग - जाति भेद, नकारात्मक विचार, दोगली मानसिकता के खिलाफ कलम को तलवार बनाया। कलम अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है जो बिना किसी खून खराबे के अपना प्रभाव दिखाती है। लेखन  मेरे लिए पूजा है, सकारात्मक अभिव्यक्ति समाज से नकारात्मकता को ख़त्म करके सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करती है, संवेदना के हर रंग को शब्दों के माध्यम से  उकेरना पसंद है । किताबें मेरी अंतरंग मित्र हैं। एक अकेला व्यक्ति समाज में बदलाव नहीं ला सकता, इसके  लिए कारवाँ बनना आवश्यक है। भविष्य के लिए कई योजनाएँ हैं जिन्हें  समय आने पर मूर्त रूप देने का प्रयास करुँगी।  


प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?

उ:- 
इंदौर के मध्यमवर्गीय  शिक्षित परिवार में जन्मी हूँ । पारिवारिक पृष्ठभूमि से ही माँ के कारण हम भाई - बहन ने भी किताबों से जुड़ गए। बचपन  मेरे नाना जी के साथ व्यतीत हुआ था। वे सुलझे हुए व्यक्तित्व के स्वामी थे व उनके भाई (बड़े नाना ) स्वतंत्रा सेनानी।  मेरे नाना के विचारों का मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा,  वे मेरे आइडियल थे । उनके मुख से  हमेशा आजादी के किस्से व कथाएँ सुनी। माँ - पिताजी  को भी जीवन की कठनाईयों से संघर्ष करते देखा था । यह कहना उचित होगा कि परिस्थितियों  से झूझने का जज्बा हमें  विरासत में मिला है। हार कर बैठना हमने सीखा ही नहीं है संघर्ष हमारे खून में ही है।  

शांत सादा जीवन - उच्च विचार ही मुझे आकर्षित करतें है। बचपन में कुछ सहेलियों के संग कवितायेँ लिखने का शौक पनपता रहा, जो धीरे धीरे जीवन का अभिन्न अंग बन गया। स्वाभाव थोड़ा चंचल व अंतर्मुखी था, इसीलिए  १३ वर्ष की उम्र से ही अपने  गहन विचारों को डायरी में उकेरने लगी।  



बचपन के एक - दो  मित्रों के अतिरिक्त किताबें ही मेरी सच्ची साथी व मार्गदर्शक बनी हैं । वैसे में हर उस इंसान को धन्यावद देती हूँ जो जाने अनजाने अपने खट्टे - मीठे - तीखे व्यवहार से हमें  कुछ न कुछ सीख दे गए। इंसान अपने अनुभवों से ही सीखता है किन्तु मैंने दूसरों के अनुभव सुनकर ही  बहुत कुछ सीखा है ।

प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किस तरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?



उ:- 
अभिव्यक्ति का अपना विस्तृत क्षेत्र  हैं , कला का कोई भी क्षेत्र हो, रचनाधर्मिता, कलाकृतियां अपनी अपनी रूचि अनुसार, लोगों को जीवन की जटिलताओं से रूबरू कर उन्हें सहज भाव प्रदान करती हैं । आम आदमी मित्रों - परिजनों के अतिरिक्त अख़बार - पत्रिकाओं में भी सुकून के कुछ पल तलाशता है। जैसे सुबह की चाय का स्वाद समाचार पत्र के साथ ही मिलता है, उसी प्रकार रचनाएँ जीवन की जटिलताओं को  समझने का एक माध्यम हैं।  बात बहुत पुरानी है मैंने  एक आलेख लिखा था, जीवन के विषम पलों में  सकारात्मक कैसे जीना चाहिए ?  एक दिन आशीष व दुआओं से भरा  ८० वर्ष के  बुजुर्ग का खत मिला, मेरा लेख पढ़कर उन्हें जीवन के अंतिम  पड़ाव में भी आशा की किरण नजर आयी। उस खत ने  मुझे लेखन करने के लिए प्रोत्साहित किया। यही मेरी सफलता का पहला चरण था।  बदलाव की  चिंगारी  का संकेत भी  हमें कर्म करने  हेतु प्रेरित करता  है ।  मेरा यही प्रयास है समाज में व्याप्त  विसंगतियों के खिलाफ  व नारी सशक्तिकरण हेतु आमजन की  आवाज बनकर  अपना सार्थक योगदान दे सकूँ। यह सफर व प्रयास जारी है। 

प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?

उ:- 
परम सत्य है कि आलोचना के बिना कोई कार्य पूर्ण नहीं होता है।  किसी भी उपलब्धि को हासिल करने के लिए हमें परेशानियों के जंगल से गुजरना पड़ता है, मै भी गुजरी हूँ। इसीलिए बात एक या दो कथ्य में  पूर्ण नहीं हो सकती।  लिंग  - जाति- भेद, दोगली रूढ़िवादी मानसिकता जगह - जगह बिखरी पड़ी है। कहने को हम विकास की बातें करतें हैं किन्तु ऐसी विसंगतियाँ आज भी समाज में व्याप्त हैं। सहृदयता भी कई बार मुखौटा का जामा पहने हुए रहती है।  मै आलोचनाओं से कभी नहीं घबराती अपितु आलोचनाएं मुझे दुगनी शक्ति से लड़ने की प्रेरणा देती है। मैंने ऐसी बातों को अब  तब्ब्जों देना छोड़ दिया है। ऐसी विचार धारा विकृत मानसिकता की घोतक हैं। हालांकि मै किसी की आलोचना नहीं करती हूँ, सभी से मित्रवत व्यवहार होता है किन्तु ऐसे भावों को स्वयं पर हावी भी नहीं होने देती। आत्मविश्वास और मेहनत ही सफलता की कुंजी हैं। योग - ध्यान मेरे  मन को शांत  व एकाग्र  रखने में सहायक है।   

प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?  



उ:- 
नहीं, अभिव्यक्ति, लेखन करने के लिए आर्थिक धन की नहीं शब्दों व संवेदनाओं का भंडार होना आवश्यक है।  अंतरजाल, ब्लॉग सपने पर कार्य करने हेतु थोड़ा बहुत खर्च हम वहन कर सकतें हैं। वृद्धजन व बेटियों के लिए सदैव कुछ करने की चाहत थी।  आर्थिक समस्या उन योजनाओं को मूर्त रूप देने में है जिसे भविष्य में समयानुसार ही कार्यान्वित  करने का प्रयास करुँगी। फिलहाल इन कार्यों हेतु किसी संस्था से भी नहीं जुडी हूँ। सफलता का मापदंड हम अभी तय नहीं कर सकतें हैं। 

प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !

उ:- 
इस राह को मैंने नहीं  चुना अपितु इस राह ने मुझे चुन लिया, लेखन मेरी हॉबी थी ।मुझे सदैव साहित्य में असीम सुख की अनुभूति होती थी ।

मेरी माँ को भी साहित्य से जुड़ाव है।  परिवार में सभी ने अपनी अपनी पृथक राहें चुनी व सभी उच्च पदों को आसीन किया।  बचपन में छत पर एकांत में बैठकर  चुपचाप लेखन करना मुझे प्रिय था।  शादी के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों व अस्वस्थता के चलते  लेखन कम हुआ।  पारिवारिक प्राथमिकता की वहज से नौकरी नहीं की ,किन्तु बेटी के कारण ही लेखन ही सर्वोपरि हो गया। उसकी ख्वाहिश  थी मै सफल लेखिका बनूँ।  ५-६  वर्ष की उम्र से ही उसने कहना शुरू कर दिया - मेरी मम्मी  writer  है।  मेरी हाँ सुनने के लिए वह मचल जाती थी। जो कार्य मै शिथिल गति से कर रही थी उसे गति देकर  मैंने उसकी ख्वाहिश को पूर्ण करने का मन लिया। लेखन और किताबों का संग मेरा पसंदीदा कार्य है, जिससे मुझे सदैव ताजगी और रोमांच का अनुभव होता है। अनुभूतियों के संसार में जितना भी डूबें हर बार नयी ताजगी महसूस होती है।  एक विद्यार्थी के रूप में मेरा सफर अभी भी जारी है।    



मैंअपने कार्य पूर्णतः संतुष्ट हूँ, परिवार मेरी प्राथमिकता है। अपनों का साथ हमें प्रोत्साहित करता है किन्तु  हमारे कर्म जी हमारे भविष्य का निर्माण करतें हैं। मेरे कार्य से परिवार में कभी कोई बाधा नहीं आयी।  पाठकों का असीम स्नेह मिला, लोगों का मुझ पर विश्वास बढ़ता गया जो आज मेरी पूँजी है ।पढ़ने लिखने का नशा एक ऐसा नशा है जिससे किसी को हानि नहीं होती है।

प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !



उ:- 
परिवार से इतर इस क्षेत्र में सफलता अर्जित करने वाली  मैं परिवार की पहली सदस्य हूँ। इस सफर में प्राप्त उपलब्धियों को परिजनों व अन्य मित्रों द्वारा सराहा गया । परिजनों के अतिरिक्त मै उन सभी हस्ताक्षरों को  नमन करती हूँ जिन्होंने  इस सफर में  मुझे प्रोत्साहित किया।  हर उस छोटे बड़े व्यक्ति को नमन,  जो जाने अनजाने  मेरा उत्साहवर्धन करते थे। उन लोगों को भी नमन जिन्होंने आलोचना करके मेरे  हौसले को कभी टूटने नहीं दिया।  मैंने अपने आत्मविश्वास व संघर्ष द्वारा  जीवन की हर परिस्थिति का सामना किया है , जिसे परिजनों व मित्रों द्वारा भी सराहा गया है।

प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ?  इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?



उ:- 
कला का कोई भी  क्षेत्र संस्कृति व संस्कार से पृथक नहीं है।  हम जो गढ़ते हैं , रचतें हैं उनमे  कहीं न कहीं हमारी संस्कृति व संस्कारों की झलक होती है। अभिव्यक्ति समाज का दर्पण है जो अच्छाई- बुराई दोनों उजागर करती है ! हम विसंगतियों व रूढ़िवादी मान्यताओं के खिलाफ हैं, जिससे संस्कृति प्रभावित नहीं होती है।  संस्कारों व  मूल्यों  में परिवर्तन हो सकता है किन्तु इससे कोई हानि नहीं होती, भारतीय संस्कृति अपनी छाप हर जगह छोड़ती है।  यही  हमारी पहचान है ।

प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !



उ:- 
बिलकुल कारगर साबित होतें है। लोगों को जागरूक करने से पहले हमें स्वयं जागरूक होना चाहिए। दूसरों पर एक उँगली उठाने के लिए ४ उँगलियाँ हमरी तरफ भी उठती हैं। लोगों में जागरूकता फैलाना ही हमारा काम है, देश का हर नागरिक यदि यह प्रतिज्ञा करें कि वह भ्रष्टाचार नहीं करेगा और ना किसी को करने देंगे।  तो समस्या आधी से ज्यादा मिट जाएगी।  हर जागरूक नागरिक समाज व देश को विसंगतियों से मुक्त रखने में अपना सहयोग दे सकता है। कलमकार सोई हुई चेतना को जागृत करने का प्रयास करता है।  कलम मन के अँधेरे में आशा की एक किरण दिखाती है।  हमारी चेतना की सकारात्मक ऊर्जा ही इन विसंगतियों का नाश कर सकती है।  

प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।



उ:- 
जी नहीं, न कभी मिला है, न मिलने की चाहत है लेकिन पूर्व राष्ट्रपति से लंच खाने की पेशकश हुई ... निस्वार्थ भाव कार्य कर रही हूँ।  लेखन मे वैसे भी ऐसा कुछ नहीं मिलता कि सामाजिक कार्य हेतु कोई संस्था शुरू कर सकूँ।  ईमानदारी से अपना कार्य करने हेतु कटिबद्ध हूँ। 

प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?


उ:- 
नहीं ! हर  क्षेत्र की अपनी खामियां भी होती हैं।  मै विसंगतियों की इतर बातों को छोड़कर अपने कार्य में एकाग्रचित्त रहती हूँ।

प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?





उ:- 
नहीं, फिलहाल मैंने अभी तक रचनाएँ संगृहीत नहीं की हैं। पत्र - पत्रिकाओं में  सतत प्रकाशन होता है। आशा है  कभी तो कोई प्रकाशक मिलेगा जो मेरी किताबों को मूर्त रूप प्रदान करेगा। 

प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?

उ:- 
जी हाँ !  मैने सिर्फ कर्म किया समयानुसार मुझे मेहनत का फल भी मिला है। सम्मान मिलने के बाद मेरी जबाबदेही और बढ़ गयी है।  विचारों के प्रवाह पर अहम् व संतुष्टि  का बाँध नहीं बना सकती हूँ। मेरे लिए यह सम्मान अनमोल हैं क्यूँकि यह मेरी  ईमानदारी  से की गयी मेहनत के फल हैं।  जो  मुझे सतत ईमानदारी से ही कर्म करने हेतु  प्रेरित करतें है। रचनाकार के लिए रचना धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है।  

मुझे प्राप्त सम्मान व पुरस्कार इसप्रकार हैं:---  

सम्मान/ पुरस्कार --

@ हिंदी विश्व संस्थान और कनाडा से प्रकाशित होने वाली 'प्रयास' के सयुंक्त तत्वाधान में आयोजित देशभक्ति प्रतियोगिता में 2013 की विजेता।

@ 'अनहद कृति' काव्य प्रतिष्ठा सम्मान - 2014-15

@ 'राष्ट्रभाषा सेवी सम्मान' अकोला- 2015


@ हिंदी विद्यापीठ भागलपुर : 'विद्यावाचस्पति सम्मान' -2016


@ 'मिनिस्ट्री ऑफ़ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट' द्वारा भारत की 100 महिला अचीवर्स सम्मान 2016 सम्मान। महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी  के कर कमलों द्वारा सम्मान।  


@ 'हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान' 2016 










प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ? 

उ:- 
जी, मुझे तो सिर्फ एक कोने में  मेज -कुर्सी -कागज - कलम की आवयश्कता होती हैं ।  मै ज्यादातर ऑनलाइन अपना कार्य करती हूँ व फ़ोन का उपयोग करती हूँ।  अंतरजाल  के माध्यम से अपना ब्लॉग सपने को संचालित करती हूँ , देश - विदेश  की पत्र - पत्रिकाओं के माध्यम से पाठकों तक अपने विचार पहुचाँती हूँ। कभी कभी काव्य गोष्ठियों में समयानुसार ही शिरकत करती हूँ. अन्यथा नहीं। क्यूंकि परिवार प्राथमिक है।  समय मूल्य वान है। मेरा कर्म ही मेरी पहचान है। 



मै सिर्फ यही कहना चाहती हूँ कि अच्छाई व सत्य के मार्ग पर चलना उतना मुश्किल नहीं है जितना बुराई में डूब कर उससे बाहर निकलना। जब खुद पर विश्वास हो तो हम आधी जंग  यूँ ही जीत जाते हैं। मन की हार ही हमें हराती है। इसीलिए सदैव सकारात्मक रहें, फल की चिंता किये बगैर ईमानदारी से अपना १०० प्रतिशत ध्यान अपने कर्म पर रखें, सफलता खुद ही आपके समीप आ जाएगी। अहम् से पतन की शुरुआत होती है, हरसंभव इससे बचने का प्रयास करें।

                  आप यू ही हँसते रहे , मुस्कराते रहे , स्वस्थ रहे-सानन्द रहे 
 ----- 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामना ।



नमस्कार दोस्तों ! 

मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो  हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों  के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com

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14 comments:

  1. लोकेश नदीशJuly 28, 2017

    बहुत बढ़िया

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    1. shashi purwarJuly 30, 2017

      hardik dhnyavad

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      Replies
        Reply
    2. Reply
  2. कल्पना रामानीJuly 28, 2017

    बहुत बढ़िया

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    Replies
    1. shashi purwarJuly 30, 2017

      hardik dhnyavad

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      Replies
        Reply
    2. Reply
  3. UnknownJuly 29, 2017

    Awesome

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    Replies
    1. shashi purwarJuly 30, 2017

      thanks

      Delete
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    2. Reply
  4. Pammi singh'tripti'August 27, 2017

    बहुत बढिया..
    बधाई स्वीकार करें।

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    Replies
    1. shashi purwarFebruary 17, 2018

      hardik dhnyavad

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    2. Reply
  5. रेणुJune 18, 2018

    आदरणीय शशि जी --- बहुत ही प्रेरक साक्षात्कार | अनेक बिंदु प्रेरणा भरे हैं |आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला | बेहद पारदर्शिता से सवाल जवाब हुए | मेरी अनंत शुभकामनायें | सस्नेह ---

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  6. सुशील कुमार जोशीJune 24, 2018

    बहुत सुन्दर। शुभकामनाएं।

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    Replies
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  7. azadJuly 09, 2018

    very nice , god bless your pen,

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  8. shashi purwarJuly 18, 2018

    aap sabhi ka hardik dhnyavad

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      Reply
  9. https://www.kavibhyankar.blogspot.comAugust 24, 2018

    आपका ब्लॉग पढा बहुत ही अच्छा लगा मुझे आप विषय को जिस ढंग से समझाती है उस ढंग से लिखना हर किसी के बस की बात नही

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    Replies
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  10. अनूपMarch 21, 2020

    बहुत सुंदर। आपने ऐसी प्रतिभा को आज इस कालम में पेश किया जो शत प्रतिशत इसके लिए योग्य है।
    आपकी प्रस्तुति भी कम कमाल नहीं।
    साधुवाद।।

    ReplyDelete
    Replies
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