MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

7.02.2017

"अनिर्वचनीय ध्येयों से मिश्रीघोल कविताओं की मल्लिका : आरती स्मित"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     02 July     कविता     No comments   

भारत के महान राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम साहब ज़िन्दगी में अप्राप्य स्थितियों पर अक्सर कहा करते थे-- "सपने वे नहीं हैं, जो आप सोने  की अवधि (Sleeping Period) में देखते हैं, अपितु सपना तो वह है, जो आप जागते हुए देखते हैं और जो आपको सोने तक नहीं देती ।" कुछ बनने के लिए सनक, पागलपन, ज़ज़्बा, जुनून इत्यादि तो होने ही चाहिए, साथ ही परिवार और सामाजिक जोश के मद्देनज़र 'अनिर्वचनीय सुख' भी मिलने चाहिए ..... ऐसी ध्येयों से मिश्रीघोल कविता-द्वय लेकर आई है, 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' के प्रस्तुत अंक में । आइये, बिहार के कटिहार जनपद की विदुषी  कवयित्री आरती स्मित की अग्रांकित कविता-द्वय को पढ़ते हैं--




क़ैद में हैं सपने                                  

उसके सपने क़ैद हैं 
जूठे बर्तनों, गंदे कमरों, 
मुँह चिढ़ाते / बास करते कपड़ों में । 

वह--  
छिपी नज़र से देखती है,
मालिक के बच्चों को--
वे भी तो हैं उस-जैसे ही
फिर यह अंतर क्यों  ?
कि
उसके हाथ में 
जूठे बर्तन और झाड़ू 
उनके पास किताबें ।

वह चीख पड़ती है 
सपनों की चुभन से,
सपने ; जो बिखर गए 
टूटे शीशे की तरह । 

वह चीख-चीखकर 
पूछना चाहती है-- 
माँ-बाप से 
क्यों ?
धरती पर लाकर छोड़ दिया 
हर रोज मरने के लिए 
‘सपनों’ की तरह । 

😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴

अनिवर्चनीय सुख   
                                       
सड़क किनारे 
अधनंगा 
घुटने के बल 
घिसटता, तो 
कभी बैठता,
गाड़ियों की आवाजाही से मिली 
मुफ्त की धूल 
और धुएँ से सना
वह नन्हा शिशु 
मुस्कुराया ।

मज़दूरन माँ 
उसपर नज़र टिकाए 
बोझे ढोती रहीं
वह गर्द की गुबार-सा 
गर्द में लोटता
गर्द उलीचता 
फिर मुस्कुराया !

दृष्टि मिली-- 
उसकी कोमल स्मिति 
मेरे होठों पर फैल गई 
और मेरे हाथ का बिस्कुट 
उसके पोपले मुँह में ।

वह खिलखिलाया
और खिल आए-- 
सपाट मसूड़ों में दो नन्हें दाँत 
अंदर ब्रह्मांड समाया था ;
वह तल्लीन हुआ 
बिस्कुट के 
अनुपम आनंद में 
और मैं-- 
दर्शन उलीचती रही
‘अनिवर्चनीय सुख’
इतना सहज ! कैसे ?

                               

नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।                          
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
Newer Post Older Post Home

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

  • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
  • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
  • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
  • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
  • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
  • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
  • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
  • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
  • 'कोरों के काजल में...'
  • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
Powered by Blogger.

Copyright © MESSENGER OF ART