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6.10.2017

"परीक्षाई-परिणाम भी अच्छे दिनों की सौगात है !"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     10 June     अतिथि कलम     No comments   

दिन तो हर दिन अच्छी ही होती है लेकिन कुछ दिन अच्छे होकर भी अच्छी नहीं होती, वो किसी-किसी के लिए ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री' की आज के परीक्षाई-परिप्रेक्ष्य पर आलेख ...



बच्चों के अच्छे दिन कब आयेंगे !!

 हाँ, यही सवाल है उन भविष्य के कर्णधारों का, जिनकी आँखों में सुनहरे भविष्य के सपने और भारत का भविष्य छुपा है ,आज इस कदर गंभीर हालात हैं कि बच्चे अपने शिक्षा के अधिकार के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं । पढाई का ,माता –पिता, स्वयं की अपेक्षाओं का , गला काट प्रतिद्वंदिता का बहुत दवाब है इन पर।  वर्तमान परिदृश्य अत्यंत भयावह है ,जहाँ परीक्षा परिणाम के आते ही सैकड़ों बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं, बहुत गम्भीर और सोचनीय है ! आखिर हकीकत क्या है ! बच्चों में इस अवसाद और निराशा के कारण क्या हैं ? समग्र रूप यही दृष्टिगत हो रहा है कि कहीं न कहीं शिक्षा पद्धति  और शिक्षा प्रणाली दोष पूर्ण है जो बच्चों के सपनों और जिंदगियों को लील जाना चाहती है। जैसे ही परीक्षा परिणाम आता है, सभी के हृदय उद्देलित और चिंतातुर हो जाते हैं   कि आने वाले पल माता -पिता और समाज को क्या दिखायेगा  ! कोई फांसी से लटकता है तो कोई ट्रेन से कटता है, तो कोई सेवेंटी फोर प्रतिशत आने पर भी होकर जहरीला इंजेक्शन लगाकर आत्महत्या कर लेता है और मां-बाप की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है ।

परीक्षा परिणाम में भी  सफलता का प्रतिशत घटा है और हजारों बच्चे बोर्ड परीक्षाओं में फेल हुए हैं बड़ा ही पीड़ादायक और निराशाजनक परिदृश्य है। प्रयोगात्मक विषयों की शिक्षा क्या वास्तविक रूप से उसी तरह दी जाती है जैसी जरूरी है !  या कि प्रयोगों को भी थ्योरी  की तरह रटवा  दिया जाता है और बुनियाद कमजोर कर दी जाती है! शिक्षकों को व्यावहारिक शिक्षा देने के लिए क्या सचमुच ट्रेनिंग दी जानी चाहिए ! क्या उन्हें उनकी मेहनत अनुसार वेतन मिलता है ! शिक्षकों को मूलतः नियुक्त किया जाता है , बच्चों को शिक्षित करने और उनका सर्वांगीण विकास करने हेतु ,तो उन्हें गैर शैक्षणिक कार्य में व्यस्त करके क्यों शिक्षक और विद्यार्थी  का अमूल्य समय व्यर्थ किया जाता है ! खुदकुशी को रोकने के लिए बनाई गई समितियां और काउंसलर की नियुक्ति सिर्फ दिखावा है या इसका भी कुछ सकारात्मक नतीजा है  !शिक्षा का व्यवसायीकरण, शिक्षा पर करोड़ों का बजट और अनुदान ,योजनाएं,धरने और घोटालों से भरे विश्वविद्यालय कहीं भी पारदर्शिता और नैतिकता नहीं,  गुणवत्ता और उत्कृष्टता  की जगह अयोग्यता और फर्जी डिग्रियां !!

रोजगार मूलक शिक्षा प्रदान की जाए जो उनमें आत्मविश्वास और बौद्धिकता का विकास करें जिस तरह विदेशों में  प्रयोगात्मक और व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है जोकि मनोबल की और आत्मविश्वास की वृद्धि करती है, साथ ही आने वाले भविष्य के लिए बेहतर बुनियाद साबित होती है। बहुत गहन अध्ययन और एक्शन की जरूरत है तभी शिक्षा के गिरते हुए स्तर से छुटकारा प्राप्त होगा और  हमारे भविष्य के कर्णधारों के भविष्य के साथ ऐसा अन्याय नहीं होगा और  सही अर्थों में सुनिश्चित होगा भारत का विकास। अभी भी अपनी शिक्षा का मूलभूत अधिकार पाने के लिए बच्चे पता नहीं कितने मीलों पैदल चलकर स्कूल पहुंचते हैं,  कचरे के बड़े-बड़े मैदान पार करते हैं पोखरे, तालाब पार करते हैं, शौचालय नहीं,  पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है,  शैक्षिक सामग्री नहीं , योग्य शिक्षक  नहीं और हम विश्व के चुनिंदा और मान्यता प्राप्त उत्कृष्ट विश्वविद्यालयों में दिखते नहीं !

सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली और व्यवस्थाओं  में बदलाव की अपरिहार्य आवश्यकता  है   , आखिर क्यों और किसलिए देश के भावी कर्णधारों के साथ खिलवाड़ किया जायेगा !कब उनके भी अच्छे दिन आयेगे !! आमूल -चूल परिवर्तन ही कहीं श्रेष्ठता और उपयोगिता सिद्ध करेगा, फालतू ढोल पीटना और दिखावा नहीं।  ‘ऊँची दुकान फीका पकवान ‘बहुत हुआ अब कार्य और परिणाम  भी उत्तम हो ताकि देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो।

ये नौनिहाल अकाल ,काल के गर्त में जा रहे हैं, मांओं की कोख सूनी हो रही है, दिखावे को सच बता रहे हैं असलियत कड़वी  है और खोखली बातों पर खड़ी है, स्कूलों की जर्जर अधोसंरचना और गिरते शैक्षिक  स्तर की तरह !!
इंटरनेट,सोशल साइट्स ने भी प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष बहुत  समय  और ऊर्जा ली है तो सकारात्मक के साथ नकारात्मक असर भी  हैं। सभी एकांतवासी बन फतांसी दुनिया में बढ़ -चढ़ कर  बातें कर  रहे हैं। और अपनों, परिवार  से बात करने और उन्हें समय देने , उनकी केयर करने का समय नहीं।  
वो सुबह कभी तो  आएगी , जो बच्चों के अच्छे दिन लाएगी । इनके चेहरों पर मुस्काने खिलाएगी, इनका मासूम बचपन फिर लौटाएगी।


नमस्कार दोस्तों ! 



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