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5.05.2017

'"धरती, जो सबको क्षमा करती है" -- सुप्रिया सिन्हा (कवयित्री)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     05 May     कविता     1 comment   

धरती यानी पृथ्वी अपना बर्थडे हर वर्ष 22 अप्रैल को मनाती है । इस वर्ष पृथ्वी 4.54 अरब साल की हो गयी है, बावजूद अब भी जवान है, लेकिन मोटी हो गयी है, क्योंकि 597290000000000 अरब किलोग्राम भार पृथ्वी की हो गयी है, यह मनुष्य, पशुओं सहित सामानों की है । परन्तु वास्तविक मोटाई में कोई चेंजिंग नहीं हुई है, वो तब भी 6371 KM थी । अब भी उतनी है । 

आपके पिता सूर्य कितने बड़े निर्मोही निकले कि तुम्हे ब्याह दी 149,500,000,KM दूर, जहाँ रिश्तेदार में भी कोई नहीं है आस-पास । एक भाई है चन्द्रमा वो भी है 370,300 KM दूर..!! जो पिता के निर्मोहिता भरी गर्मी के कारण भाई होकर बहन को शीतल करना फ़र्ज़ मानता है । हो भी क्यों नहीं इकलोती बहन जो ठहरी ...!! तुम्हारी बर्थडे डे पर एक वो ही दिल से गिफ्ट भेजता है कि 'तुम जियोगी 2.4 अरब साल या उससे भी अधिक' और बच्चों के तरफ से मिलती है तुम्हे गिफ्ट के रूप में PESTICIDE की पुड़िया, जो तुम्हे बाँझ बना रही है और POLYTHENE की नमकहरामी, जो तुम्हारी आँसू छीन रही है । 

तुम्हारे बच्चे मामा की शीतलता को स्वीकार नहीं करते, क्योंकि बच्चों ने बना लिए REFRIGERATOR, जिनमें होते हैं-- खतरनाक रसायन । जो करते है तुम्हारी ममतामयी परतों को कमजोर, बावजूद तुम धारण करती हो, नदियों के पानी को । जो देती है मिठास भरी ज़िन्दगी इंसानों को । तुम्हारी 1.4 करोड़ प्रजातियाँ बच्चे काट रहे हैं, तुम्हारी सहेली पेड़ों को । ताकि हो सके, उनकी खानापूर्ति ..!! 

तुम्हारे बच्चे 6 अरब किलोग्राम कूड़ा रोज समु्द्र में डालते है, पर कोई तुम्हारी आँसू नहीं देख पाते है, इस उफनाती समुद्री तूफान के रूप में ..! यहाँ प्रति 8 सेकंड में एक बच्चा गंदा पानी पीने से मर जाते हैं और धरती माँ बस दूसरे बच्चों को समझाने में रह जाते हैं । तुम्हे हर कोई अलग-अलग नाम से पुकारते हैं,कोई तुम्हे भूमि , तो कोई तुम्हे अन्नदात्री, कोई तुम्हें धरा ,तो कोई बिना नामधारण के ही, पर तुम्हे मैं माता या माँ या ग्लोबमाता ही कहूँगा, क्योंकि माँ ही समझ पाती है दर्द बच्चों के, चाहे बच्चे सुपुत्र हो या कुपुत्र ..!! 

आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है कवयित्री सुप्रिया सिन्हा की कविता 'हमारी धरती' आदि कविताएं....आइये पढ़ते हैं----



      हमारी धरती

हमारी धरती अन्नपूर्णा....
नीर,नदियाँ....
प्रदायिनी वसुंधरा
जिसकी मिट्टी में 
बसता जन-मानस
का जनजीवन ।

फिर क्यूं .... 
नित... मिट्टी में समाहित 
कर रहे हैं कूड़े-कचरे,
क्यूं गंदा कर रहे हैं 
उसका वसन ।

प्लास्टिक बैग-जैसे 
खतरनाक रसायन
का अम्बार लगाकर
क्यूं कमजोर कर रहे हैं , 
उसका तन ।

जिस धरा पर हम
सबने चलना सीखा,
जिसकी मिट्टी पर
हम सबने अपना 
आशियां  बनाया,
आज उसी को तबाह 
करने में लगे हुए हैं सब,
उसकी वेदना, उसकी मौनता 
को कुचलने में लगे हुए हैं हम सब ।

कसूरवार है पूरी की पूरी 
मानव-जाति  
कि यदि धरा कांप उठी
तो खत्म हो जाएगी 
पूरी सृष्टि ।

सिसक रही है वो
घबरा रही है वो ....,
सुनो उसके क्रंदन को
समझो उसकी वेदना को 
मत दूषित करो उसे 
अवनि सिर्फ प्रकृति-प्रदत्त 
धरोहर नहीं.....
बल्कि हम-सब के लिए
अमोल धन है ।

👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼                                    
    
 हैरत  होती  है 

हैरत होती है / देखकर 
पत्थर को मोम बनानेवाली
आंसूओं की कद्र भी 
छोटी  होने  लगी है,
क्यूंकि / लोग अब उन आंसूओं को
भी अपने हंसने का जरिया
बनाने  लगे   हैं  ।

हैरत होती है / देखकर
जिंदगी की कसौटी पर
उड़ गए रिश्तों के परखच्चे
क्यूंकि / लोग अपने ही रिश्तों 
का  सबूत  मानने लगे हैं ।

हैरत होती है / देखकर
क्षीण हो रही मानवीय 
संवेदनाओं की ताकत,
क्यूंकि / लोग अब अमानवीय
कृत्यों को अपनाने लगे हैं ।

हैरत होती है / देखकर
लोग अपने मतलब के लिए
मतलब  रखने  लगे  हैं,
क्यूंकि / लोग इन्सान से ज्यादा
पैसों को अहमियत देने लगे हैं ।

हैरत होती है / देखकर
विश्वसनीयता,भरोसे की 
नींव डगमगाने लगी है,
क्यूंकि / लोग अब निज
स्वार्थ की भावना को 
तवज्जो देने लगे हैं ।

हैरत होती है / देखकर
सत्य  का  आस्तित्व   भी 
गुमनामी के अंधेरे में खोने लगा है,
क्यूंकि / लोग अब सच से ज्यादा
झूठ  को  हवा  देने  लगे हैं  ।

नमस्कार दोस्तों ! 


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1 comment:

  1. AnonymousMay 05, 2017

    बहुत खूबसूरत कवितायें।

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