फूल, पत्ते, डॉगी, पुसी इत्यादि से प्यार होते हैं । माता-पिता, भाई-बहन आदि में भी प्यार के कई कोण देखने को मिलते हैं । प्यार को ढाई आखर में समेटा गया है, इन ढाई आखरों में यह एक शब्द है, परंतु प्यार के लिए निकली ध्वनि 'निःशब्द' रहती है । यही निःशब्द प्यार सच्चे प्रेमी-प्रेमिका के बीच पनपते हैं । सच्चा प्यार को देह की चाह नहीं रहती, वो तो बिखड़ने में भी प्रेम तलाशते हैं, वो भी ज़िंदगी भर ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट लेकर आई है, श्रीमान सौरभ शर्मा की प्रसिद्ध प्रेम-कविता, जो हृदय को आकर्षित करती है, किन्तु देह को अनाकर्षित । क्योंकि देह तो प्रेम का प्रतिलोम शब्द है । आइए, प्रस्तुत कविता पढ़ते हैं:---
वो लड़की न जाने क्या-क्या कह गयी,
मैं जानने की कोशिश ही करता रहा,
कि क्या है उसके अन्तर्मन में,
क्यों कहा उसने वह सब ?
शब्द उनके, अन्तर्मन में मेरे तूफां-सा,
ले आयी बेचैनी औ' बनकर एक बात
हलाहल-सी किये जा रही मुझे, व्याकुल,
वो विहँसती, चिड़ियाँ-सी चहकती लड़की !
क्यों सब कह गयी, आज वह मुझसे ?
अपनेपन लिए वो मेरी जो ठहरी,
हक रखती है तभी, मुझपर अपना,
कि हर बात कह देती है, मुझसे ।
सुन लेती है, हर बात मेरी,
जान लेते हैं जाने कैसे, एक दूजे को हम,
दुख क्या, क्या खुशी, पहचान लेते हम,
पर जाने क्यों, उनके शब्दों ने भेद डाला मुझे ?
वो सब उसने क्यों कहा, किसलिए कहा ?
आज इन्हीं सवालों से गुजरेगी मेरी पूरी रात,
फर्क नही पड़ता अब, ये रातें होंगी कितनी लंबी,
मुझे इसलिए जागना है, जानना है, उनके जवाब ?
मेरे अन्तर्मन में उत्पन्न कर गयी जो, वो आज,
वो खास है मेरी, उसकी मुस्कुराहटों के बीच,
दुआ मांगी है मैंने, कि नहीं देख सकता घुटते उसे,
खुश रहे सदा वो, यही दुआ है मेरी...!!
नमस्कार दोस्तों ! 'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
वो लड़की न जाने क्या-क्या कह गयी,
मैं जानने की कोशिश ही करता रहा,
कि क्या है उसके अन्तर्मन में,
क्यों कहा उसने वह सब ?
शब्द उनके, अन्तर्मन में मेरे तूफां-सा,
ले आयी बेचैनी औ' बनकर एक बात
हलाहल-सी किये जा रही मुझे, व्याकुल,
वो विहँसती, चिड़ियाँ-सी चहकती लड़की !
क्यों सब कह गयी, आज वह मुझसे ?
अपनेपन लिए वो मेरी जो ठहरी,
हक रखती है तभी, मुझपर अपना,
कि हर बात कह देती है, मुझसे ।
सुन लेती है, हर बात मेरी,
जान लेते हैं जाने कैसे, एक दूजे को हम,
दुख क्या, क्या खुशी, पहचान लेते हम,
पर जाने क्यों, उनके शब्दों ने भेद डाला मुझे ?
वो सब उसने क्यों कहा, किसलिए कहा ?
आज इन्हीं सवालों से गुजरेगी मेरी पूरी रात,
फर्क नही पड़ता अब, ये रातें होंगी कितनी लंबी,
मुझे इसलिए जागना है, जानना है, उनके जवाब ?
मेरे अन्तर्मन में उत्पन्न कर गयी जो, वो आज,
वो खास है मेरी, उसकी मुस्कुराहटों के बीच,
दुआ मांगी है मैंने, कि नहीं देख सकता घुटते उसे,
खुश रहे सदा वो, यही दुआ है मेरी...!!
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