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4.07.2017

'एक नज्म : कई ज़िन्दगियाँ'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 April     फेसबुक डायरी     No comments   

मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट के प्रस्तुतांक में  श्रीमान सागर श्री गुप्ता की कुछ नज्में, जो प्रेम, जीवन, इलज़ाम, कठिनाइयाँ, ऊप्स, रिश्ते का मानसून इत्यादि के बारे में है । ऐसे तत्त्व सभी के ज़िंदगी में ज़रूर आते हैं, तो आइये, इसे हम पढ़ते हैं:-- 






 कुछ नींद उधार दे दो ना,
तुम होगी और सुकून होगा !

एक पुड़िया होगी बेपरवाही की,
बेफ़िक्री का ज़रा चूरन होगा,
तसल्ली का कतरा टपका कर,
तुम्हारा अकेला एक हुजूम होगा !

कुछ नींद उधार दे दो ना,
तुम होगी और सुकून होगा !

कापूस सी तुम्हारी गोद होगी,
अलसाया सा मेरा सर होगा,
एक नज़र होगी मुझपे अपनो सी,
वो नज़र ही मेरा घर होगा !

कुछ नींद उधार दे दो ना,
तुम होगी और सुकून होगा !

🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵

बंद करते है ना ये खेल अब,
कितने थक चुके हैं दोनों देखों !

कभी तुम कटघरे में आती हो,कोई इलज़ाम ढोते,
कभी मुझपे कोई इलज़ाम चढ़ जाता है बेवजह !

हासिल कुछ नहीं आता,
कोई जुर्म साबित नहीं होता !

बस एक रिश्ता की फ़ज़ीहत होती है,
टूटता रहा है मैं, टुकड़ा-टुकड़ा !

रिश्ते अपनी मौत कभी नहीं मरते,
रिश्तों का तो क़त्ल होता है !

🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌎

एक टुकड़ा बादल उछाल है तुम्हारे जानिब,
कूद कर तुम उस बादल को लपक लेना,
मरोड़ना उसे और उसे निचोड़ना,
उसकी हर नमी से भिगो देना !

बहुत सुखा देख चूका हूँ.
मौसम को इस मानसून ने तर किया है
और ज़िन्दगी को,
तुमने, मुझपर 
अपनी बारिश यूँ ही करते रहना !


नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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