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4.09.2017

'एक सवाल : डर या नफरत !'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     09 April     अतिथि कलम     No comments   

शहर में वैसे ही कुँवारे छात्र के लिए रूम ढूँढ़ना, किसी प्रतियोगिता परीक्षा निकालने जैसा महान कार्य है, परंतु आज के प्रस्तुतांक में प्रसारित हो रही लघ्वालेख से सुस्पष्ट हो जाता है कि अब रूम ढूँढ़ना कोई उन दो मित्रों के लिए भी आसान नहीं है व नहीं ही है कि जिनमें अगर एक मित्र छात्र मुस्लिम हो और दूजे हिन्दू ! ऐसे मित्र-द्वय के लिए लॉज या कमरे खोजने का अनुष्ठान 'नासा' द्वारा किसी नए ग्रह की खोज करने से भी महान कार्य है । फिर ऐसे छात्र समाज से दूर और झुग्गीनुमा रूम में ढूँढ़ कर रहने को विवश हो जाते हैं और 'ट्रैप्ड' जैसी हॉरर फिल्म का हिस्सा बन खुद के जीवन को रहस्यमय बना डालते हैं । आश्चर्य है, मुस्लिम राजमिस्त्री के बनाये मकान में हिन्दू रहेंगे, किन्तु वे किसी मुस्लिम छात्रों को रहने के लिए रूम नहीं देंगे । कोई मुस्लिम मकान वाले हिन्दू पेंटर को भगस्ट कहाँ हैं ! तब तो पॉल साहब की पैरोडी इस परिप्रेक्ष्य में सटीक है, यानी:- "मज़हब वही सिखाता, आपस में बैर रखना; जिस ओर सर किसी का, उस ओर पैर रखना "। सत्य और अहिंसा के महान प्रवर्त्तक जैन संत श्री महावीर की जन्म-जयन्ती की शुभकामना सहित पढ़िए, मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में अभियंता और शायर सेराज उद्दीन  का लघु आलेख:--






एक सवाल : डर या नफरत !


आज मैं वो प्यार और सम्मान से भरा दिल ढूँढ़ रहा हूँ, जो डर या नफरत में इस तरह बदल गए हैं, जैसे:- भादो मास में अब बारिश नहीं होती, सूखा पड़ता है !

ऐसा कहा गया है-- छात्रों के कोई धर्म और जाति नही होते हैं, उनके लिये तो उसका ज्ञान ही सर्वस्व होता है !

*एक हिन्दू छात्र किसी लॉज या मकान में अपने रहने का आसरा ढूँढ़ता है और वो लॉज या मकान अगर किसी मुस्लिम का है, तो वह उन्हें रहने के लिए रूम नही देते हैं । मेरा सवाल है, क्यों ? आखिर क्यों ??

*ठीक इसी तरह, कोई मुस्लिम छात्र रहने के लिए हिन्दू मकान वाले से जगह मांगता है, तो उन्हें नाम पूछते ही यथाप्रस्तुत मकान मालिक व मालकिन उनके यहाँ सीट या रूम खाली नहीं है-- कहकर मना कर देते है ! मेरा फिर सवाल है,क्यों ? ऐसा क्यों ??

अगर ये डर है, तो किस बात का और नफरत भी है, तो किस लिए ? पंथनिरपेक्ष व धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा क्यों, उनमें 'बिहार' व 'पटना' में भी ऐसा क्यों ??

मगर कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो छात्र को सिर्फ छात्र ही समझते हैं,, उसे किसी भी धर्म या जाति से नहीं जोड़ते हैं, किन्तु ऐसे भले लोगों की तादाद शायद बहुत कम ही होंगी, क्योंकि ऐसे किराए में मकान लगाने वाले लोग मुझे अबतक नहीं मिला है ! मैं और मेरे अज़ीज़न हिन्दू दोस्त रुम पार्टनर के रूप में रहने के लिए अभीतक आशियाना ढूँढ़ने में लगा हूँ ।

भाई, सोच बदलो, तभी देश बदल पायेगा !

जय हिंद । जय भारत ।


नमस्कार दोस्तों ! 


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