प्रेम क्या है ? प्रेम कैसे होता है ? क्या प्रेम में पड़ा व्यक्ति सही में नकारा होता है ! यह जो प्रेम है, जहाँ भी जाता है, अजीबो-गरीब सवाल छोड़े चला जाता है । कभी 'रिश्तों' को जोड़ने वाला सवाल, तो कभी तोड़ने वाला सवाल ! परन्तु प्रेम के चक्कर में पड़ प्रेम ने अपना परिभाषा नित्य बदलते हुए गढ़ा है, जो प्रेम की अँगड़ाई से लेकर बदचलन तक में प्रेम को पाता है । इस प्रेम व प्यार को अँधा भी कहा गया है । ऐसा कहावत है, परंतु 'काबिल' नामक हिंदी फिल्म में अंधे को भी प्यार होता है, ऐसा हास्य लिए कहा गया है । नारी होलिका भी किसी से प्यार करती होंगी, किन्तु उनके भाई तक ने उन्हें 2.5 आखर प्रेम तक करने नहीं दिए और भ्रातृभक्तिन बन वह आग में झुलसकर जल-भून गयी ! उसे श्रद्धांजलि देते हुए आज के अंक के लिए मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, सुश्री मंजुला बिष्ट की प्रेम-कविता ! आइये, इसे हम सोत्साह पढ़ते है:---
"प्रेम अगन, प्रेम में मगन"
उनके बीच,बातें करने का कोई वक़्त नही होता !
प्रेम में भला, घड़ी की सूइयों का क्या काम ?
घण्टों बतियाते,लड़ते फिर एक हो जाते,
वह अकसर अपने ख्वाबों के नक्शे बना, उसे दिखाती,
वह नक्शे की अनदेखी कर,उसे ही तकते रहते !
पूछने पर कहता-- मेरा घर तुम्हारे साथ होने में हैं ।
उसने थककर,उसे दिखाना छोड़ दिया,अपने लिये ही बनाती रही ।
वह हमेशा नक्शे में, दो पत्थर रखती,रंगहीन,
ख़ुद को अतृप्त महसूस करती ।
अकसर परात में,आटा गूँथती हुई पीहर ही बसाने लगती,
और अनायास ही,घर के मुखिया को गोले में ढालती,
तभी, वह लापरवाह-सा सामने आ जाता तो,
उसमें ही मुखिया को ख़ौजने लगती,
अब भी अतृप्त ही रहती !
थककर तय किया,आज उससे कुछ माँगेगी,
भला प्रेम में भिक्षा कैसी ? शर्म कैसी ?
आज उसने, आटे के गोले
और उन दोनों पत्थरों को उसके सामने रख दिया,
आज एक पत्थर नीला था और दूसरा गुलाबी,
उसने गोले को अनदेखा कर कहा-
"मुझे गुलाबी रंग की दरकार नही,तुम हो ना"
वह गोले को भूल, कुछ तृप्त हो चली ।
पर, फिर भी गाहे -बगाहे,
गोला अपना वजूद अपने साथ लिये उसके चौड़े,
कंधों और सीने के आस-पास मौजूद रहता,
जो सिर्फ वही देख सकती थी,
"मेरा टॉवल देना"
"बाथरूम के दरवाजे से बाहर मुस्कराता चेहरा"
"साथ क्यों नही लेकर जाते हो"
"हमेशा माँ देती थी न ! अब तुम हो न !!"
वह फिर गोले को भूल कुछ ज्यादा तृप्त हो चली ।
आखिर उसने तय किया है ,
आज बाजार जाकर, बड़ी बिंदी,
जो उसे खास पसन्द नही, खरीदेगी,
और साथ ही,एक गुलाबी घेर वाली लॉन्ग स्कर्ट ,
और फिर कभी आटे से गोले नही बनायेगी ,
ना जाने क्यों,वह उसकी ओर जाती हुई,
अब पूर्ण संतुष्ट हो चली है ।
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
"प्रेम अगन, प्रेम में मगन"
उनके बीच,बातें करने का कोई वक़्त नही होता !
प्रेम में भला, घड़ी की सूइयों का क्या काम ?
घण्टों बतियाते,लड़ते फिर एक हो जाते,
वह अकसर अपने ख्वाबों के नक्शे बना, उसे दिखाती,
वह नक्शे की अनदेखी कर,उसे ही तकते रहते !
पूछने पर कहता-- मेरा घर तुम्हारे साथ होने में हैं ।
उसने थककर,उसे दिखाना छोड़ दिया,अपने लिये ही बनाती रही ।
वह हमेशा नक्शे में, दो पत्थर रखती,रंगहीन,
ख़ुद को अतृप्त महसूस करती ।
अकसर परात में,आटा गूँथती हुई पीहर ही बसाने लगती,
और अनायास ही,घर के मुखिया को गोले में ढालती,
तभी, वह लापरवाह-सा सामने आ जाता तो,
उसमें ही मुखिया को ख़ौजने लगती,
अब भी अतृप्त ही रहती !
थककर तय किया,आज उससे कुछ माँगेगी,
भला प्रेम में भिक्षा कैसी ? शर्म कैसी ?
आज उसने, आटे के गोले
और उन दोनों पत्थरों को उसके सामने रख दिया,
आज एक पत्थर नीला था और दूसरा गुलाबी,
उसने गोले को अनदेखा कर कहा-
"मुझे गुलाबी रंग की दरकार नही,तुम हो ना"
वह गोले को भूल, कुछ तृप्त हो चली ।
पर, फिर भी गाहे -बगाहे,
गोला अपना वजूद अपने साथ लिये उसके चौड़े,
कंधों और सीने के आस-पास मौजूद रहता,
जो सिर्फ वही देख सकती थी,
"मेरा टॉवल देना"
"बाथरूम के दरवाजे से बाहर मुस्कराता चेहरा"
"साथ क्यों नही लेकर जाते हो"
"हमेशा माँ देती थी न ! अब तुम हो न !!"
वह फिर गोले को भूल कुछ ज्यादा तृप्त हो चली ।
आखिर उसने तय किया है ,
आज बाजार जाकर, बड़ी बिंदी,
जो उसे खास पसन्द नही, खरीदेगी,
और साथ ही,एक गुलाबी घेर वाली लॉन्ग स्कर्ट ,
और फिर कभी आटे से गोले नही बनायेगी ,
ना जाने क्यों,वह उसकी ओर जाती हुई,
अब पूर्ण संतुष्ट हो चली है ।
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क्या बात...!
ReplyDeleteबधाई
शुक्रिया !
Deleteमंजुला जी की कविताएं हमेशा एक नए आयाम को छूती हैं। बहुत खूब !
ReplyDeleteबिल्कुल !
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