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3.20.2017

"जीवन के ऑक्सीजन को बचाने को उद्धत एक कविता"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     20 March     कविता     No comments   

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा को समझना 'ज़िन्दगीनामा' के रैपर उघाड़ने जैसा है ! तभी तो जीवन के इस सफर में दोस्त बनते हैं, छूटते हैं और उल्कापिंड की भाँति टूटते भी हैं। मौत के सौदागर भी नहीं जानते कि मौत के बाद 'क्षिति-जल-पावक-गगन-समीर' से गुजरते हुए जीवन के ऑक्सीजन कहाँ जा पहुँचते हैं । प्रस्तुतांक की कवयित्री 'कुम्हार' से चाक लेकर उनमें माटीजन्य पिंडलियाँ को अँगुली में घूमाते हुए अपनी हाथों की प्यारी-स्पर्श देकर नीलकंठ बन वृत्त की जीवा बनाये जाकर एक 'अनोखी-रूप' में यादगार करा जाती हैं । आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई हैं, कवयित्री रेणु मिश्रा की अग्रांकित कविता, जिन्हें पढ़ने के बाद ज़िन्दगी की सच्चाई जानने के लिए हम चाक की मानिंद घुमते रह जाएंगे । आइये, प्रस्तुत कविता का वाचन करते हैं :-- 




"जीवन के ऑक्सीजन को बचाने को उद्धत एक कविता"


इससे पहले कि हमारे हर लम्हे गुज़र जाएँ । 
आओ हम-तुम कहीं, छाँव में ठहर जाएँ । ।

भूल कर हम हर तरह की शिकायतें-रुसवाइयाँ ।
कुछ पल खुद में, कि खुद को ही जिए  जाएँ । ।

मिट जाएगा तब नामों निशाँ हमारा, इस जहाँ से ।
आओ कुछ अपने ही, किस्से-कहानियाँ गढ़ जाएँ । ।

मिलेंगी दुशवारियाँ हर पग, ये जिंदगी ही है ऐसी ।
साथ चलो कुछ पल, सफर खुशनुमा कर जाएँ । ।

जख्म हैं दिल पर, तभी सौगात जो मिले यहाँ ।
आओ  दोस्तों से रफ़ू, पैबंद पर कराए जाएँ । ।

आसाँ नहीं है सफ़र यहाँ, कि जानते सब यहाँ ।
बरस जाओ बदरी ! कि रूह तर कर जाएँ । ।

मंजिल मिल जाए यहाँ, कब-किसकी क्या पता ?
चलो इस जहाँ में, अपने कुछ निशाँ बनाए जाएँ । ।

अभी तक  जारी  है, चाक से रस्साकशी मिट्टी का ।
न जाने कब उस कुम्हार की, नीयत ही बदल जाए । ।


नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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