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2.02.2017

'ज़िन्दगी : एक इंटरव्यू'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     02 February     कविता     1 comment   

ज़िन्दगी न खाई है, न जलाशय , न लीक में जमे पानी ! ज़िन्दगी  समंदर भी नहीं है कि उनमें डूबूँ, उतराऊँ या बहते-बहते छितराऊँ !! ज़िन्दगी तो ज़िंदगानी है, जैसा कि मनुष्य की नियति है । परंतु इस नियति का कोई किनारा नहीं है । तब जिस सुख का एहसास होता है, उसका अनुभव वही कर सकता है, जो कि इन हालातों से 'पैंतीस-छत्तीस' हुए होंगे !!! 'ज़िन्दगी-- तू कैसी है पहेली, कभी तू हँसाये , कभी तू रुलाये ! लेकिन जब कोई चीज किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है, तो कई सवाल एक साथ पूछ बैठते हैं ! याद है न, अज्ञेय का शेखर 'दर्शन' से भी आगे की पहेली थे, जिसे हम रोमांटिक अहसासों में 'देवदास' होना कहेंगे ! हम कवयित्री, लेखिका अमृता प्रीतम रचित 'ज़िन्दगीनामा' को भूल से गए हैं । तो आइये,आज मैसेंजर ऑफ़ आर्ट लेकर आई है -- ये ज़िन्दगी , तू क्या है ? इसे समझने की कोशिश करते हुए सुश्री अलका श्रीवास्तव की कविता को हम पढ़ते हैं, जो कि स्वयं से ठिठोली  कर रही होती है ! तो आइये और प्रस्तुत कविता को मन से पढ़िए......


'ज़िन्दगी : एक इंटरव्यू'


जिन्दगी में बहुत-बहुत खोया,
पाया मैंने,  बहुत-बहुत कम,
जो पाया उसकी खुशी है,
खोया है जो, गम जरूर है !

कहते हैं खोना औ' पाना 
जिन्दगी का एक हिस्सा है,
पाने भर से ओठों पर मुस्कुराहट है, 
खोने से आंखे, नम जरूर है !

जिन्हें पाया वो मेरे अपने हैं,
जिन्हें खोया वो मेरे और अपने थे,
जो पास है, वो मेरी किस्मत है,
जो दूर हो गये, वो मेरे नसीब थे !

बहुत बरसती हैं मेरी ये आंखें,
जब खोये का ख्याल आता है,
ह्रदय पाने को व्याकुल हो जाती, 
जिन्दगी जब मुझसे सवाल करती हैं !


नमस्कार दोस्तों ! 

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1 comment:

  1. शब्दजालFebruary 03, 2017

    वाह...अलका माँ बहुत बहुत बधाई

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