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1.07.2017

"5 राज्यों में चुनावी ढोल : आइये समझते हैं, उ.पी. के झोल"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 January     अतिथि कलम     No comments   

राजनीति 'सामान्य मानव' के दिमाग के परे का चीज होवत है , भाई । यदि वे समझने की कोशिश करे भी तो'उत्तर प्रदेश' के 'साइकिल' की दौड़ में फंस जाते हैं क्योंकि जब अच्छे-अच्छे 'राजनीतिज्ञों की नींद' 'पिता-पुत्र' के 'प्रेम-सम्बन्ध' को समझते-समझते 'निंदास्तान' में घूम गए ।
हास्य-व्यंग्य पढ़ाने को दृढ़ोत्सुक आलेखक श्री सौरभ द्विवेदी ने हालाँकि अपने प्रस्तुत आलेख में साहित्य की वर्जनाएं तोड़ी हैं और शब्द, वाक्य, संकेत-चिह्न-संबंधी त्रुटियाँ की हैं, तथापि यह पढ़ने में मज़ा देगा और messenger of art के पाठकों को यह पढ़ने में विभोर करेगा । भूमिका को यहीं विराम देते हुए लीजिये पढ़िए । श्रीमान् के चिरायु कलम से निःसृत  प्रस्तुतालेख:-





"5 राज्यों में चुनावी ढोल : आइये समझते हैं, उ.पी. के झोल" 
_____________________________________________ 

उ.पी. चुनाव का समय चल रहा है। इस चुनावी समय में टिकट बंटवारे से पूर्व बड़ा दिलचस्प नजारा देखने को मिल रहा है। प्रदेश की प्रमुख पार्टियों में दावेदारों की भीड़ नजर आती है। सपा, बसपा और कांग्रेस को छोड़कर भाजपा की बात की जाये तो यहां 33 करोड देवता नजर आते हैं ।

संघ और उसके अनुवांशिक संगठन के पदाधिकारियों सहित भाजपा के जिला स्तरीय और प्रादेशिक पदाधिकारियों की पौ-बारह नजर आती है । इस समय कोई भी पदाधिकारी किसी छोटे-मोटे देव से कम महत्व नही रखता है। प्रदेश कार्यालय मे अपने-अपने जुगाड़ के लिये टिकटार्थी गणेश परिक्रमा करते हुए नजर आते हैं। 

वहीं प्रमुख नेताओ की एक झलक मिलने और गुजारिश के चंद शब्दों के लिये इंतजार कर रहे टिकटार्थी का धैर्य देखते बनता है। वास्तव मे नेता असीम धैर्य व साधना से ही आगे बढ़ते हैं । घंटो कार्यालय के बाहर खडे रहना और दिल की धड़कन बढती रहना आम बात है।
वहीं एक टिकटार्थी आवेदन पत्र फाडते हुए देखे गये। जनाब धैर्य खो चुके थे। कहने लगे कि भाड मे जाये चुनाव। ऐसा होना आम बात है, क्योंकि एक नेता से हाथ जोडना। उनकी चरण वंदना करना किसी साधारण आत्मा के वश की बात नहीं !

कुछ नये चेहरे अच्छी सोच और विकास के सम्पूर्ण विजन के साथ देखे गये हैं। किंतु उनकी सोच और विकास का विजन कितना काम आयेगा। यह अभी गर्भ का विषय है। क्यूंकि सबकुछ होने के बावजूद भी जुगाड़ पद्धति हावी रहती है। जिनकी सेटिंग है चुपचाप चैनल के अंदर भी पहुंच जाते हैं। शायद ये वर्षों की गणेश परिक्रमा का परिणाम है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का भी अपना मानना भी है कि जिसने वर्षों से समय दिया है। पार्टी के लिए मेहनत की है। त्याग और तपस्या की मूर्ति बने है तब इतना तो बनता है कि आराम से अंदर बाहर हो सकें। कुलमिलाकर के बात रिश्तों की भी है। मन में जगह बना लेने की भी है।

तमाम जुगाड़ू पद्धति के बावजूद भी यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि भाजपा मे लोकतंत्र है। पूछताछ का लोकतंत्र है। यहां हर किसी के पास टिकटार्थी को जाना पडता है। अपनी बात कहनी पडती है। कुछ प्रमुख पदाधिकारियों से रिपोर्ट भी ली जाती है। कुलमिलाकर के पूछताछ का लोकतंत्र टिकटार्थी के धैर्य का परिचय तो लेता ही है। 
जो नये नये है। उनको रिश्ता बनाते, परिचय देते ही काफी समय लग जाता है। इसलिये कुछ प्रमुख नेताओ के पीए के भी अच्छे दिन चल रहे होते हैं। उनकी भी पूछ इस कदर बढ जाती है कि फीलिंग अवेसम होता है। 

अर्थात छुटभैये से लेकर बडे भैया तक टिकट फाइनल होने से पहले सबकी येनकेन प्रकारेण पौ बारह रहती है और टिकटार्थी का खून पसीना एक हो जाता है। बुंदेलखण्ड मे एक कहावत प्रचलित है की "लाइसेंस बनवाते बनवाते पनही खिआ जात हि"  वैसे ही भाजपा मे टिकट की लाइन मे लगे लगे घर का आगन खाली हो जाता है और दिल के अरमां आंसुओ मे उस वक्त बहते है जब अपना नाम लिस्ट मे नही दिखता है, पनही की तो बात ही छोडिये। 
यहां एक अनार सौ बीमार वाली कहावत है। टिकट किसी एक व्यक्ति को ही मिलना है, किंतु इश्कबाज इतने हैं कि टिकट बेचारा सहमा-सहमा-सा हो जाता है। जिनकी कलम से टिकट फाइनल होना है। उनका मान सम्मान भगवान कृष्ण से कम नही है किंतु मिलने की ज्यादातर संभावना उसे भी रहती है जो सखा रूप मे सुदामा होता है। 

मुझे अन्य पार्टियों का ज्ञान नही है किंतु इतना आभास है कि किसी भी पार्टी से दिलचस्प और कठिन टिकट तो भाजपा का ही है। जिसमे अंततः टिकट न पाने वाले टिकटार्थी के देवदास बनने की संभावना शेयर और निफ्टी के धडाम होने की खबर के सरीखे कम नही होती है। 

जैसे आधी रात को पेट्रोल और डीजल के दाम बढते ही आम जनता की हर्टबीट बढ जाती है। वही हाल आजकल जनाब टिकटार्थियों के हैं। सबकी हर्टबीट बढी हुई है। अब देखिये भाजपा खेमे से किसकी किस्मत चमकती है। किंतु अंततः नये युवाओं के लिए प्रार्थना करूगा जो बेशक पार्टी की नजरों मे नये हो सकते हैं। हाल ही मे आये हुए हो सकते हैं। लेकिन उनकी सोच राष्ट्र को समर्पित है। विकास करने के उनके अपने दावे हैं। वो पीढियों के राजनीतिज्ञों की करनी से दुखित हैं और गांव गली मुहल्लो के विकास के साथ परिवर्तन की गाथा "सबका साथ सबका विकास" की सोच से करना चाहते हैं। ऐसे लोग हीरा होते हैं और हीरा दिखते ही भला किसका मन नही करता कि उसे अपनी हथेली मे ले ले। 

मेरी संवेदना है कि अच्छी सोच के युवाओं को निराशा हाथ न लगे और पूर्ण उम्मीद से कहता हूं कि पार्टी से भी उन्हे निराशा हाथ नही लगेगी। किंतु सबकुछ अंतर्यामियो के हाथ है। एक तुच्छ प्राणी अंतर्यामियो से सिर्फ प्रार्थना कर सकता है। वरदान देना न देना उनका मन है। 
कहा भी गया है कि "कर्मण्येवाधिकारस्ते मांफलेषु कदाचने" इसलिये कर्म करो फल की इच्छा मत करो। आजकल यही फिट बैठ रहा है। टिकट के मामले मे कर्म के साथ किस्मत भारी दिखती है। जल्द ही पिटारा खुलने वाला है। कुछ का सीना 56 इंच का हो जायेगा तो कुछ का ठंड की ठिठुरन से और सिकुड जायेगा। उन बुजुर्गो के लिए भी एक प्रार्थना जिन पर उनकी उम्र भारी पड रही है और युवाओं को तरजीह मिल रही है। कडाके की सर्द मे बुजुर्ग वंचित टिकटार्थी के लिए बेहद संवेदना व्यक्त करनी होगी। 


परिवर्तन प्रकृति का नियम है और पार्टी के विचार मंथन नामक समुद्र मंथन से देखिये कौन कहां से हीरे निकलते हैं जिनके चुनाव परिणाम के आने के बाद हीरे और कोयले की पहचान हो सकेगी।
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