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1.31.2017

'ब्लैकहॉल में सफ़ेद-आत्मा'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     31 January     कविता     No comments   

साइंस 'मंगल' पर बस्ती बसाने को दृढ़ोत्सुक व जद्दोजहद में है, पर प्रेम ,अकेलापन ,दर्द, प्यास, तड़प इत्यादि शे'र, ग़ज़ल, नज़्म बन न केवल 'स्पेस', अपितु हर जगह , यहांतक की ब्लैकहॉल में भी अपनी बस्ती बगैर पूछे ही बसा लेती है, क्योंकि 'रूह' अगर पूछे, तो किनसे पूछे ? रूह तो रूह हैं, ऊर्जा के संरक्षण-सिद्धांत सहित 'ब्लैक-हॉल' में भी जगह बना लेती है । हम आज  मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट के अंक में लेकर आएं हैं :- सयाने सफ़र को ढूंढ़ती बस्ती की अनसुनी कविता 'मेरी रूह', जो कवयित्री नंदिता तनुजा से प्यार पाकर वे कभी ख़ामोशी में, तो कभी खुद में क्या ढूढ़ रही हैं , तो आइये आप खुद निदान ढूंढकर इसे  पढ़िए:- 



'ब्लैकहॉल में सफ़ेद-आत्मा'




मेरी रूह 
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आ गये हम कहां ?

ख़ामोशी तेरे-मेरे दरम्यां
बीते लम्हों की कसक यहां
फासलों से मिला सूना जहां 
देख बिछड़ ,आ गये हम कहां !

क़बूल कर हर सितम-ए-वफ़ा 
मुस्करा के भी दर्द लिया यहां
विघ्न काँटो  से सीखा सहना
दर्द को  ले, आ गये हम कहां !

कभी इक नज़र के लब प्यासे
ले जाय तुमसे बहुत दूर कहाँ
तिश्नगी बन तू यूं साथ चलना
इश्क़ बन, आ गये हम कहां !

हक़ीक़त क्या बयां  करे अपना
कहो तो खामोश हो जाये यहां
चाहा जब कभी  तुमसे कहना
रोक लिए कदम, आ गये हम कहां !

भुलाने से भी न भूले वो दास्तां
सजा बनी वक़्त की रज़ा यहां
सारी उम्र इंतज़ार इन्तेहां यहां
यादों को छेड़, आ गये हम कहां !

बेशक ! बेरुखी में नाराज़ यहां
अपनी राहें नसीबन  जुदा यहां
वक़्त की बात है जवाब अपना 
पूछेंगी वफ़ा , आ गये हम कहां !

होता न तय 'गर इश्क़ का सफां
एकबारगी रूह तन्हा करते यहां
होगा तो कबूल , इश्क बन यहां
'नंदिता' कहती ,आ गये  हम कहां !


नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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