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1.18.2017

'एक कविता ज़िंदगानी' : अनूप शर्मा

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     18 January     अतिथि कलम     3 comments   

मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में आज के अंक में कवि अनूप शर्मा की एक ज़िंदगानी वाली कविता पढ़िये और स्वयं संपादक और पाठक बन कविता के जज्बे को सलाम कीजिये ... तो पढ़ ही डालिये ...


"क्या तुम वही हो"


बचपन के स्वप्न मेरे ,स्वपनिल-अनुभूति कैसा ??
रूप का एहसास जैसा ,चकित हूँ  मैं हुआ कैसा ??
उत्साह की नूतन प्रवर्तक सी मुझे तुम लग रही हो !
सत्य मिथ्या से परे मैं पूछता, क्या तुम वही हो ??

तर्क बुद्धि क्षीण मेरी हो रही कैसे अचानक !!
चेतना को छेड़ती है , आज फिर कैसे कथानक !
ख्वाब के सत्यांश से मैं ,डर रहा हूँ फिर भयानक !
मौन हो सागर के जैसी ,फिर भी तुम कह रही हो
सत्य मिथ्या से परे मैं पूछता ,क्या तुम वही हो ??

लिख रहा था अब तलक मैं ,प्रेम के ही गीत सारे
सोच कर तुमको तुरत ही , गूंजने थे शब्द प्यारे ।
क्या कहूँ उस रूपसी पर, थे कभी सुख चैन हारे
रात की जैसे हिफ़ाज़त ,कर रहे हो, चाँद-तारे ।
अब स्वयं के ही गगन का ,सोचता था मैं रवि हूँ
पर तुम्हारी प्रेरणा से,हो गया छोटा कवि हूँ ।
लग रहा है मुखर नयनो को मेरे तुम ,पढ़ रही हो
सत्य मिथ्या से परे मैं पूछता, क्या तुम वही हो ??


इस धरातल में चिरंतन कब से तुमको गढ़ रहा था
स्वप्न की  कितनी  कहानी ,में तुम्हे मैं  पढ़ रहा था
भावना पथ पर निरंतर ,मैं अकिंचन चढ़ रहा था
कैसे कर लू मैं भरोसा, हुबहु बिल्कुल वही हो
सत्य मिथ्या से परे मैं पूछता , क्या तुम वही हो ??
  

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email - messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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3 comments:

  1. UnknownJanuary 18, 2017

    Adbhut rachana

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  2. UnknownJanuary 18, 2017

    Adbhut rachna

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
  3. UnknownJanuary 18, 2017

    Great poetry, quite impressive Mr anup sharma

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
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