"फ़िल्म 'पार्च्ड' : औरत बच्चे पैदा करने की मशीन है क्या ?"
हाँ, कुछ दिन ही पहले की बात है, शाम में बाजार घूमने निकला था । रोड से गुजर रहा था कि बगल से कुछ लड़के , उम्र में बमुश्किल 10 वीं कक्षा में पढ़ने लायक , आपसदारी में जैसे गहन वार्त्ता में लीन हो कह रहे थे - यार, पार्च्ड (parched) देखा !!
मैं चौंका, चूंकि मैंने भी इस फ़िल्म के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, तो मैं इंटेरेस्टवश बात सुनने को अपनी चाल धीमी कर दी, 'छोटे से बच्चों' की बड़े सदृश बातचीत सुनने ।
पहले ने कहा- हां बे, मोबाइल पर देख लिया ! क्या बूब्स है, राधिका आप्टे की, तने-तने ??
दूसरे ने कहा - यार, पर बूब्स काफी छोटे हैं, लेकिन वैसे सुन रखा है, सभी "हीरोइन्स" के बूब्स "सनी लियॉन" की चूतड़ की तरह काफी बड़े-बड़े होते हैं, लटके-झटके लिए ।
वहीँ मैं जहाँ तक इस फिल्म के बारे में सुन रखा था कि इस हिंदी (अन्य भाषाई भी ) फ़िल्म की कहानी महिला प्रधान है और किसी पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में जहाँ राधिका आप्टे ने कहा था , कि किसी कलाकार को हर प्रकार के रोल करने चाहिए , क्योंकि कहानी में अगर ये सब हो तो यह उनकी भी जिम्मेदारी बनती है , कि कहानी की तरह ढलने की कला वो गढ़े, मुझे लगा - खुलापन होगा....पर इन बच्चों की बातों से मुझे लगा , कि नौजवानों को कलाकारी की जानकारी नहीं , सिर्फ 'औरत-मर्द' के रिश्तों को ही बखूबी जानते, पहचानते और परखते हैं ...............।
ऐसा सुन मैं आगे बढ़ गया और कल रात की सुघटना में खो गया.......एक साहित्यक दोस्त के घर 'कवि-गोष्ठी' का आयोजन रखा गया था । वह दोस्त मुझसे उम्र में 10 साल बड़े हैं, वे मुझसे बड़े हैं और मैं उन्हें भैया भी कहता हूँ, पर मेरे से काफी फ्रैंक हैं, कल उनके घर गया था और बातों का सिलसिला शुरू हुआ था । बीच में टोकतेेे उन्होंने कहा-
मनु , अपना SHARE IT तो ऑन करना , मुझे लगा बातों के दौर में मोबाइल से क्या "देंगे-लेंगे" (क्योंकि मेरे मोबाइल में "UPSC" STUDY मैटेरियल के अलावा कोई मूवी भी नहीं है , वे ये जानते हैं, इसलिए मैंने अपने दिमाग से ऐसी बातें निकाली और सोचा वही कुछ देंगे । )
मैंने कहा- भैया, 'बातों की गोष्ठी' में क्या देंगे मुझे ।
उन्होंने कहा - तुम्हें एक मूवी भेज रहा हूँ, देखना है !
मैंने कहा - कौन सी ??
अबे , ऑन कर ! पार्च्ड (parched) भेज रहा हूँ , पर 'एकांत वास' में देखना ।
मैंने सोचा- यहाँ भी पार्च्ड , प्रकट कहा - भैया, इस मूवी कुछ अधिक खुलापन है क्या ?
तभी तो आज कुछ बच्चे खुल कर "आप्टे" के बूब्स पर चर्चा कर रहे थे ..... । उनका जवाब आया- क्या कहूँ , फ़िल्म देखने के बाद तेरी भाभी की याद आ गयी , पता है न मायके गयी है ।
मैंने कहा , भैया कण्ट्रोल कीजिये । मार खायेंगे भाभी जी से , नहीं तो !
'पर गजब की माल है !!'
मैंने कहा- भाभी न ! (हँसते हुए)
उन्होंने एक चपाट लगाया और कहा बदमाशी और मुझी से ।
भैया, अब मैं चलता हूँ , 'कवि गोष्ठी' अब अगले दिन ही ।
.......हम बौद्धिक वर्ग इसे भले कला कह ले, किन्तु हर कोई तो यहाँ सिर्फ जिस्म की बात कर रहे हैं , कला की कोई नहीं !
कला का मतलब ये नहीं है कि आप 'लहंगा-चुनरी' खोल कर कहीं भी 'सेक्सालाप' शुरु कर दें । कुछ लोग कहते है कि यह कहानी की मांग है तो इसका मतलब यह की हम 'विधि-विधान' की क्रिया को सरेआम करने लगे , क्योंकि विधि (कानून) में भी कहा गया है कि किसी 'महिला' को आप '14 सेकंड' तक घूर नहीं सकते ! यहाँ तो तीन घंटे घूरते हैं । अब घूरना किस अर्थ में है , मालूम नहीं !!
कहानी के मांग के कारण , यदि कोई भी डायरेक्टर 'निर्भया' पर फ़िल्म बनाये तो इसका मतलब मूवी में वही सब खुले आम सीन परोसा जायेगा , जैसा हमलोगों ने अख़बारों में पढ़ा और tv पर देखते आया है यानि दर्दनाक rape की पटगाथा ! क्या कोई हीरोइन ऐसे रोल करेंगी ?
आंसर जो भी हो, पर अधिक फिल्में न मिलने के कारण , पैसों की कमी के कारण नायिकाएं अपनी कलाकारी में "सेक्स" को भी कला मानने लगी है ।
लेकिन 'PARCHED' की महिला ने जिस तरह से 'सेक्स' को आमजन के सामने लाया है और लोगों के सामने सेंसर बोर्ड ने इसे हरी-झंडी दिया है इसे कोई क्या कहेगा, पता नहीं !! परंतु अपने वीर्य के ही बच्चे पानेवाले के लिए सबक तो है ही !
क्योंकि एक और 'हमारा कानून' ही कह रहा है कि आप किसी 'महिला' को घूर नहीं सकते और दूजे ओर ऐसे कहानी को आगे बढ़ाया जा रहा है जहाँ अंग प्रदर्शन के रूप में खुले आम 'सनी लियॉन' की तरह फ़िल्में जिनमें 'हीरोइन' तो वे नहीं लेकिन "मांझी : दी माउंटेनमैन" की 'राधिका आप्टे' , जिन्होंने 'PARCHED' के माध्यम से "नग्नता" को 'मकबूल फ़िदा हुसैन' की कलाकृत्य को कला से आगे कह..... पता नहीं "सेक्स कब से कला" में शामिल हो गया है । लेकिन फ़िल्म देखने के बाद मेरा "कौमार्य ज्ञान और गालियों के ज्ञान के डिक्शनरी" में काफी बढ़ावा हुआ , इसके लिए थैंक्स कहना चाहूँगा, फिल्मकारों को ।
यदि कला का मतलब "आह-आहू" करने से है तो हमारे समाज में "वेश्या" भी है , फिर उन्हें हम "कलाकार" क्यों नहीं मानते !! जिस तरह आज के फ़िल्मों में वासना को दिखाया जा रहा है, इस अनुसार कोई किसी का rape कर ही दे, तो ऐसी फिल्मों के कारण भी तो हो सकता है ,इसे हम क्या कहेंगे ??
लड़के की गलती या फिल्मों में इन हीरोइन का 'खिलंदड़' रूप ।
ये फ़िल्म सिर्फ बालिगों के लिए है , लेकिन मोबाइल के मार्फ़त इसे नाबालिग भी देख ही लेते हैं।
क्या "राधिका आप्टे" खुद अपनी पूरे परिवार के साथ ये मूवी देख सकती हैं, अगर हाँ, मूवी अच्छी है, इसे सबको देखने चाहिए ! प्रश्नवाचक के साथ हम परिवार के साथ इसे देख ले तो इस कलाकार को पुरस्कार मिलना कहेंगे ?
हाँ, कुछ दिन ही पहले की बात है, शाम में बाजार घूमने निकला था । रोड से गुजर रहा था कि बगल से कुछ लड़के , उम्र में बमुश्किल 10 वीं कक्षा में पढ़ने लायक , आपसदारी में जैसे गहन वार्त्ता में लीन हो कह रहे थे - यार, पार्च्ड (parched) देखा !!
मैं चौंका, चूंकि मैंने भी इस फ़िल्म के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, तो मैं इंटेरेस्टवश बात सुनने को अपनी चाल धीमी कर दी, 'छोटे से बच्चों' की बड़े सदृश बातचीत सुनने ।
पहले ने कहा- हां बे, मोबाइल पर देख लिया ! क्या बूब्स है, राधिका आप्टे की, तने-तने ??
दूसरे ने कहा - यार, पर बूब्स काफी छोटे हैं, लेकिन वैसे सुन रखा है, सभी "हीरोइन्स" के बूब्स "सनी लियॉन" की चूतड़ की तरह काफी बड़े-बड़े होते हैं, लटके-झटके लिए ।
वहीँ मैं जहाँ तक इस फिल्म के बारे में सुन रखा था कि इस हिंदी (अन्य भाषाई भी ) फ़िल्म की कहानी महिला प्रधान है और किसी पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में जहाँ राधिका आप्टे ने कहा था , कि किसी कलाकार को हर प्रकार के रोल करने चाहिए , क्योंकि कहानी में अगर ये सब हो तो यह उनकी भी जिम्मेदारी बनती है , कि कहानी की तरह ढलने की कला वो गढ़े, मुझे लगा - खुलापन होगा....पर इन बच्चों की बातों से मुझे लगा , कि नौजवानों को कलाकारी की जानकारी नहीं , सिर्फ 'औरत-मर्द' के रिश्तों को ही बखूबी जानते, पहचानते और परखते हैं ...............।
ऐसा सुन मैं आगे बढ़ गया और कल रात की सुघटना में खो गया.......एक साहित्यक दोस्त के घर 'कवि-गोष्ठी' का आयोजन रखा गया था । वह दोस्त मुझसे उम्र में 10 साल बड़े हैं, वे मुझसे बड़े हैं और मैं उन्हें भैया भी कहता हूँ, पर मेरे से काफी फ्रैंक हैं, कल उनके घर गया था और बातों का सिलसिला शुरू हुआ था । बीच में टोकतेेे उन्होंने कहा-
मनु , अपना SHARE IT तो ऑन करना , मुझे लगा बातों के दौर में मोबाइल से क्या "देंगे-लेंगे" (क्योंकि मेरे मोबाइल में "UPSC" STUDY मैटेरियल के अलावा कोई मूवी भी नहीं है , वे ये जानते हैं, इसलिए मैंने अपने दिमाग से ऐसी बातें निकाली और सोचा वही कुछ देंगे । )
मैंने कहा- भैया, 'बातों की गोष्ठी' में क्या देंगे मुझे ।
उन्होंने कहा - तुम्हें एक मूवी भेज रहा हूँ, देखना है !
मैंने कहा - कौन सी ??
अबे , ऑन कर ! पार्च्ड (parched) भेज रहा हूँ , पर 'एकांत वास' में देखना ।
मैंने सोचा- यहाँ भी पार्च्ड , प्रकट कहा - भैया, इस मूवी कुछ अधिक खुलापन है क्या ?
तभी तो आज कुछ बच्चे खुल कर "आप्टे" के बूब्स पर चर्चा कर रहे थे ..... । उनका जवाब आया- क्या कहूँ , फ़िल्म देखने के बाद तेरी भाभी की याद आ गयी , पता है न मायके गयी है ।
मैंने कहा , भैया कण्ट्रोल कीजिये । मार खायेंगे भाभी जी से , नहीं तो !
'पर गजब की माल है !!'
मैंने कहा- भाभी न ! (हँसते हुए)
उन्होंने एक चपाट लगाया और कहा बदमाशी और मुझी से ।
भैया, अब मैं चलता हूँ , 'कवि गोष्ठी' अब अगले दिन ही ।
.......हम बौद्धिक वर्ग इसे भले कला कह ले, किन्तु हर कोई तो यहाँ सिर्फ जिस्म की बात कर रहे हैं , कला की कोई नहीं !
कला का मतलब ये नहीं है कि आप 'लहंगा-चुनरी' खोल कर कहीं भी 'सेक्सालाप' शुरु कर दें । कुछ लोग कहते है कि यह कहानी की मांग है तो इसका मतलब यह की हम 'विधि-विधान' की क्रिया को सरेआम करने लगे , क्योंकि विधि (कानून) में भी कहा गया है कि किसी 'महिला' को आप '14 सेकंड' तक घूर नहीं सकते ! यहाँ तो तीन घंटे घूरते हैं । अब घूरना किस अर्थ में है , मालूम नहीं !!
कहानी के मांग के कारण , यदि कोई भी डायरेक्टर 'निर्भया' पर फ़िल्म बनाये तो इसका मतलब मूवी में वही सब खुले आम सीन परोसा जायेगा , जैसा हमलोगों ने अख़बारों में पढ़ा और tv पर देखते आया है यानि दर्दनाक rape की पटगाथा ! क्या कोई हीरोइन ऐसे रोल करेंगी ?
आंसर जो भी हो, पर अधिक फिल्में न मिलने के कारण , पैसों की कमी के कारण नायिकाएं अपनी कलाकारी में "सेक्स" को भी कला मानने लगी है ।
लेकिन 'PARCHED' की महिला ने जिस तरह से 'सेक्स' को आमजन के सामने लाया है और लोगों के सामने सेंसर बोर्ड ने इसे हरी-झंडी दिया है इसे कोई क्या कहेगा, पता नहीं !! परंतु अपने वीर्य के ही बच्चे पानेवाले के लिए सबक तो है ही !
क्योंकि एक और 'हमारा कानून' ही कह रहा है कि आप किसी 'महिला' को घूर नहीं सकते और दूजे ओर ऐसे कहानी को आगे बढ़ाया जा रहा है जहाँ अंग प्रदर्शन के रूप में खुले आम 'सनी लियॉन' की तरह फ़िल्में जिनमें 'हीरोइन' तो वे नहीं लेकिन "मांझी : दी माउंटेनमैन" की 'राधिका आप्टे' , जिन्होंने 'PARCHED' के माध्यम से "नग्नता" को 'मकबूल फ़िदा हुसैन' की कलाकृत्य को कला से आगे कह..... पता नहीं "सेक्स कब से कला" में शामिल हो गया है । लेकिन फ़िल्म देखने के बाद मेरा "कौमार्य ज्ञान और गालियों के ज्ञान के डिक्शनरी" में काफी बढ़ावा हुआ , इसके लिए थैंक्स कहना चाहूँगा, फिल्मकारों को ।
यदि कला का मतलब "आह-आहू" करने से है तो हमारे समाज में "वेश्या" भी है , फिर उन्हें हम "कलाकार" क्यों नहीं मानते !! जिस तरह आज के फ़िल्मों में वासना को दिखाया जा रहा है, इस अनुसार कोई किसी का rape कर ही दे, तो ऐसी फिल्मों के कारण भी तो हो सकता है ,इसे हम क्या कहेंगे ??
लड़के की गलती या फिल्मों में इन हीरोइन का 'खिलंदड़' रूप ।
ये फ़िल्म सिर्फ बालिगों के लिए है , लेकिन मोबाइल के मार्फ़त इसे नाबालिग भी देख ही लेते हैं।
क्या "राधिका आप्टे" खुद अपनी पूरे परिवार के साथ ये मूवी देख सकती हैं, अगर हाँ, मूवी अच्छी है, इसे सबको देखने चाहिए ! प्रश्नवाचक के साथ हम परिवार के साथ इसे देख ले तो इस कलाकार को पुरस्कार मिलना कहेंगे ?
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
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