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9.04.2016

'बेचैन चील,गिद्ध और कौवे - बटा शिक्षक'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     04 September     आलेख     No comments   

देश के द्वितीय, किंतु अद्वितीय राष्ट्रपति डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस (5 सितम्बर) को प्रतिवर्ष 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाये जाने का प्रचलन है।
हमें सिर्फ '5 सितम्बर' को ही याद आता है कि आज 'राष्ट्र निर्माण धारक' का जन्मदिवस है !! राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री और 'बड़े-छोटे' नेतागण को 'बस' आज ही याद आते है कि अच्छे शिक्षकों को सर्टिफिकेट दिये जाने चाहिए !! 'सर्टिफिकेट' देने के समय 'इतनी अधिक मात्रा' में योग्य 'शिक्षकों' को 'अवॉर्ड' दिया जाता है कि वे '1 शब्द' भी नहीं कह पाते ! यानी मंच पर राष्ट्रपति / राज्यपाल से सर्टिफिकेट लो और खिसको...आया राम, गया राम । ये शिक्षक सम्मान पानेवाले लगभग जुगारू शिक्षक होते हैं, जो शिक्षक कम, शिक्षक नेता ज्यादा होते हैं ।

उनसे पहले 'बड़े लोग' इनके हालात को 'नजरअंदाज' कर देते है , ये लोग 'दिन रात' मेहनत करके 'युवा सोच' को बाहर लाते है पर मेहनत करने के बावजूद 'इन्हें' इनका मासिक मजदूरी भी 6 माह से सालभर बाद ही इनके savings  ACCOUNT में आ पाता है, यहाँ 'माननीय' लोगों को क्या 'बस अपने पेट' भरने से मतलब है, सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा से मतलब है ??????
मैं पूछना चाहूँगा , क्या ऐसे होने चाहिए 'शिक्षकों' का अपमान या इनसे भी बुरा हमारे 'सरकारों' ने इनके बारे में 'सोच' लिया है । नील बटा सन्नाटा । उन्हें अपमान में भी छात्र के बारे में सम्मान सोचना पड़ता है ।

आज के नौजवान जो हमेशा 'फेसबुक,what's app, ट्विटर और अन्य सोशल नेटवर्किंग साईट' (जिसमे मैं भी शामिल हूँ) पर बिजी रहते है , पर जब 'स्कूल' और 'कॉलेज' जाते हैं, तो हर दिन 'अच्छे हो या नाअच्छे टीचर' उनका तो वे 'हूटिंग' से स्वागत करते हैं, लेकिन "Teacher's day" के दिन एक हाथ में केक और दूजे में गिफ्ट लिए "इस" दिन को विशिष्ट बनाने की कोशिश करते हैं और ' TEA  CHEER ' कह Teacher भी सोचते हैं । चलो इसी बहाने तो 'गिफ्ट के साथ' पेट पूजा भी हो जाता है , लेकिन ये सोचने का इनका तरीका नहीं होता कि 'सिस्टम' की 'मार' और 'पैसों की बदहाली' के कारण वे 'इन चीजों' का शिकार हो जाते हैं ।
बाद में 'स्टूडेंट्स' ये चर्चा करते है  या उलहाना  देते रहते हैं कि 'मास्टरजी' को  'गिफ्ट' में दिया 'टाई या घड़ी' आज पहनकर आये हैं ।
एक ओर जहाँ सावित्रीबाई फुले  ने 'कन्याओं को पढाने और स्कूल' खोलने के दौरान गन्दगी , कीचड़ , गोबर तक उनपर लोगों ने फेंके, वहीँ दूजे तरफ आज के युग में यदि कोई 'महिला शिक्षक या शिक्षिका' पढ़ाने के लिए 'स्कूल' में जाय , तो उन्हें 'लोग' के साथ "उनके स्टूडेंट्स" भी उन्हें 'लाइन मारने' को बाज़  नहीं आते, लेकिन ये घटनायें सिर्फ 'युवा वीमेन टीचर' के साथ नहीं , बल्कि 'शादी-शुदा' टीचर्स के साथ भी देखने को 'दृष्टिगोचर' होते रहते हैं , इन मामलों में 'बुराई' सिर्फ 'ब्वाय स्टूडेंट्स' का नहीं बल्कि 'कभी - कभार' गर्ल्स भी 'सर' को लाइन देती ही नहीं, मारती भी हैं !!
क्योंकि भारत जैसे देश में 'मटुक-जुली' के एक नहीं कई किस्से सुनने , पढ़ने और देखने को मिलते हैं हमें । क्या यह पाप है या रिश्तों की स्वच्छंदता ? 

जहाँ  सावित्रीबाई फुले एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं । अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती थी वही आज 'स्टूडेंट्स' 'वीमेन टीचर्स' के 'साड़ी को खोलने' के प्रयास में 'मौका पर चौका' मारने का प्रयास करते हैं ।
क्या ऐसी होनी चाहिये 'स्कूली' माहौल, जहाँ 'बच्चा' यही सब सीखे !! न केवल लेक्चरर के पॉकेट में 'कंडोम' रहते हैं, तो छात्राएं भी अपने पर्स में 'कंडोम' रखती हैं ।
दिल्ली में 'कोचिंग' में पढ़ रहे मेरे मित्र  'आकाश' ने मुझे हाल-फिलहाल ही फेसबुक पर 'मेसेज' किया , यार 'बढ़िया' किया की तुमने  'IAS'  के लिए कोचिंग नहीं लिया ।
मैंने पूछा क्यों भई तुम भी तो ' MADE  EASY ' में पढ रहे हो ??
तो ऐसा क्यों कह रहे हो ?
कुछ देर में जवाब आया ।
अरे यार 'सब्जी मंडी' की तरह 'कोचिंग' खुल गया है यहाँ,  हर कोई कहता है 'topper' मेरे यहाँ से ही निकला है , और हर 'टीचर' को 'योग्य' बताते है और जब मैं पढ़ने गया तब पता चला की कुछ 'टीचर' तो 'मुझसे भी बेकार' पढाते हैं । मैं तो कई गुना अधिक उनसे पढ़ा दूंगा यदि 'मौका' मिले तो !! और मैंने बस यही कहा , तेरे पर मुझे भरोसा है , मेरे दोस्त !!

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