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4.04.2014

''कड़ी 6 : "सफ़ेद नागरिक"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     04 April     कविता     No comments   


"सफ़ेद नागरिक"
सफ़ेद पोशाक, सफ़ेद बाल
चूड़ी सफ़ेद....... छन्-छन्-छन्
पडी कानों........ छन्-छन्-छन्
आँखें खोल दी मैंने --
कुछ आभास हुई / अस्पष्ट
नज़रअंदाज़ कर / आगे बढ़ती / कि
पैरों को ठोकर लगी --
एक बड़ा-सा पत्थर / ना / पत्थर की मूरत
संदिग्ध / परंतु पहचाना-सा / ना / पहचानी-सी
सफ़ेद पोशाक, सफ़ेद बाल
चूड़ी सफ़ेद........ छन्-छन्-छन्
आँखों देखी....... दृश्यन्-यन्-यन्
अरी, अहिल्या ! अभीतक पत्थर की !!
श्रीराम नहीं आये अभीतक ! आश्चर्य !!
किन्तु सफ़ेद लिबास क्यों ?
गौतम मुनि नहीं रहे क्या ??
ये आँसू, अहिल्या की नयनों से.....
सफ़ेद चूड़ी पर पड़ी मेरी नज़र
टूटी-फूटी थी / जगह-जगह
विधवा हो गई हैं अहिल्या
त्रेता के राम / अभी आएंगे भी नहीं
अब यह पत्थर की मूरत
चौक-चौराहों पर ही रहेंगी !
अगले दिन के अखबारों में आयी,
दिल्ली की इंद्रपुरी में--
अहिल्या की मूरत लगाई गयी,
किन्तु प्रश्न छोड़ गयी / हर स्त्रियों के लिए--
गौतमनगर को छोड़,
जगह इंद्रपुरी ही क्यों चुनी गयी ?
××                            ××                         ××
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