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3.14.2014

"कड़ी 3 : "कर्ण का क्या दोष"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     14 March     कविता     No comments   


"कर्ण का क्या दोष"
सूरज भी जानता था अनछुई है कुंती,
कुंती भी जानती थी अपनी सीमाएँ,
परंतु यह प्यार थी या बलात्कार या प्रबल कामेच्छा
या भूकंप का आना या तूफाँ कर जाना ।
सूरज तो दर्प से चमकते रहे
कुंवारी कुंती को गर्भ ठहरनी ही थी
दोनों मज़े लिए-दिए या जो कहें
या कुंती की लज़्ज़ा के आँसू बहे ।
किन्तु कर्ण का क्या दोष था,
सूर्यांश होकर भी सूर्यास्त क्यों था,
क्यों वे कौन्तेय नहीं थे,
देवपुत्र होकर भी / सूतपुत्र क्यों कहलाये ?
सूरज बलात्कारी थे
या कुंती अय्याशी थी
या 'मंत्रजाप' ही बहाना था
या धरती की सुंदरी से, देवों का मन बहलाना था ।
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