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3.07.2014

''कड़ी 2 : "कविता के तुक्के"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 March     कविता     No comments   


"कविता के तुक्के"
दाग थी वहीं-कहीं, पता चला यहीं है,
इशारे भद्दे लिए, आँखें उनकी / यहीं-कहीं है,
सोची, बधाई दूँ, नववर्ष की / एक गुलदस्ता
पर, उन्होंने कहा- तुम खुद गुलदस्ते हो !
××                      ××                     ××
एक पत्थर तबियत से उछाला / हवा को फाड़ गयी
दूजे पत्थर मैंने उछाली / नदियाँ विभाजित हो गयी
तीजे पत्थर ने / मेहँदी रंगायी
चोथे ने दिल को कर तार-तार / बदनाम कर गयी ।
××                      ××                     ××
आज न ईद है, ना ही दीवाली,
जश्ने आज़ादी / इस पार - उस पार,
तोप उगल रहे शोले, ए.के. की तड़तड़ाहट,
चौकीदार है, सोची थी / खून भरे गुब्बारे निकले ।
××                      ××                      ××
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