आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते हैं, कवि श्रीमान विनोद दूबे की कविता........
श्रीमान विनोद दूबे |
कुछ यादों ने सुकून दिया,
और कुछ यादों से डरते रहे,
अच्छी बुरी तमाम स्मृतियाँ,
उम्र बेचकर इकट्ठी करते रहे,
स्मृतियाँ उन रिश्तों की,
जो कभी अपने ही वज़ूद का,
एक फैला हुआ विस्तार लगें,
कभी आँखों की बारिश में गीली,
शिकायतों का एक व्यापार लगे,
स्मृतियाँ उन दिनों की,
जिनके गुजरने की ख़बर ना हो,
यूँ आया और यूँ व्यतीत हुआ,
और कभी एक पल का गुजरना,
साँसों के उखड़ने सा प्रतीत हुआ,
मौत की एक झलक भी,
मन में एक टीस भर जाती है,
रोज़मर्रा के कामों में गुज़ारे,
वक्त पर ख़ीझ सी आती है,
वक्त और स्मृतियों का,
ये कैसा विनमय कर गए,
कितना जीवन गुज़र गया,
कई स्मृतियों से वंचित रहे !
नमस्कार दोस्तों !
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