नवनीत वर्ष 2022 में 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' के आदरणीय पाठकगण ! आइये, पढ़ते हैं, भागलपुर के रहवासी श्रीमान कमलेश झा की अद्भुत रचना 'अहंकार'.......
श्री कमलेश झा |
अहंकार का दीमक जब जकड़ लेता है मानव को खास।
घुन लगता है सुविचार पर पर्दा चढ़ाता आंखों पर खास।।
अहंकार वो ऐसा खंजर जो घायल करता अपने को आप।
नुकसान पता तब चलता है जब स्वाहा हो जाते हैं आप।।
अहंकार मद जब छाता है जग स्वामी लेते बावन अवतार।
अन्तिम पग छाती नपता है चाहे राजा बलि हो आप।।
अहंकार मद उस बाली का जिसके न बल की थी थाह।
अपने सगे समन्धि को प्रताड़ित करना हीं समझा अधिकार।।
बाण खाये जब अपने तन पर तब जाकर हुआ एहसास।
प्रेश्चित कर अपने पापों का प्रभु शरण को माना आधार।।
अहंकार मद में डूबकर जब रावण हर ले जाता जानकी को साथ।
अजानबहु के धनुष टंकार में भस्म कर लेता अपना साम्राज्य।।
कितने दंभी का नाम कहूँ जिसने पाले थे अहंकार।
अहंकार की बलि वेदी पर मर मिटने को थे तैयार।।
एक अहंकारी था दुर्योधन जिसने जिसके अंदर था अहंकार।
लीला धर को भी उसने बांधने का कर लिया दुःसाहस मात्र।।
सुई नोक पर बात टिकाकर आमंत्रित किया काल को आप।
अपने सहित कुल परिवार को भेज दिया फिर काल ग्राश।।
इतिहास के ऐसे पुरुषों से अहंकार पर लेना सिख।
जब अहंकार इसका सगा नहीं तो आपको क्या देगा भीख।।
यह तो बस एक मकड़जाल है जिसमे फँस जाते हैं आप।
फिर इसमें उलझ उलझ कर प्राण त्यागने को विवश हो जाते आप।।
नमस्कार दोस्तों !
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