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12.03.2021

'अजब थी वो आग जो ज़माने से लगी.......'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     03 December     कविता     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते हैं, श्रीमान सुहास भटनागर रचित अद्वितीय कविता.......
श्रीमान सुहास भटनागर

अजब थी वो आग जो ज़माने से लगी
क्या जल रहा है आग को पता न था
क्या जल गया ज़माने को ख़बर न थी
आग सब तबाह करके बुझ भी गयी
राख में तो कुछ शोले सुलगते ही रहे

सुलगी तो मुझमें भी थी एक आग
वो सुलगती आग तो बुझ न सकी
उसमें ही सुलगते हैं जज़्बात
बस उनका ज़िक्र नहीं होता !


नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
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