आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री भूमिका जैन भूमि जी की अद्वितीय रचना......
दबे आँसू बहाना चाहती हूँ
मैं फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ
कोई उससे मेरी बातें करो ना
मैं उसको याद आना चाहती हूँ
मुझे कुछ भी नहीं कहना था उससे
उसे इतना बताना चाहती हूँ
वो बस इक बार कह दे,भूल जाओ
मैं सबकुछ भूल जाना चाहती हूँ
ज़माना ताक पर रखकर मैं
फिर से उसी के गीत गाना चाहती हूँ
उसी के प्यार के आगे दोबारा
मैं अपना सिर झुकाना चाहती हूँ
जो दिल के पास था,महफ़ूज़ भी था
ठिकाना वो पुराना चाहती हूँ
मैं उसकी रात का बनकर सितारा
फ़लक पर झिलमिलाना चाहती हूँ
मुझे ऐ ज़िंदगी! आग़ोश में ले
मैं जीने का बहाना चाहती हूँ !
नमस्कार दोस्तों !
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