आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की टटका कड़ी में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी खून सफेद की अद्भुत समीक्षा.......
प्रेमचंद की कहानी 'खून सफेद' !
क्या बाल्यावस्था से 14 वर्ष तक की उम्र में आए व्यक्ति का चेहरा नहीं बदलता है ? क्या 14 वर्ष बाद कोई व्यक्ति किसी को इतनी आसानी से पहचान लेता है ? क्या छोटे से बच्चे को सांसारिक बातों का वृहद ज्ञान हो सकता है ? क्या उस काल में बाल्यावस्था की बेहूदगी पूर्ण हरकतों की सजा जवानी में मिल जाया करते थे ?
जो भी हो, तिलचट्टे का खून 'सफेद' होता है, किन्तु प्रेमचंद रचित कथा 'सफेद खून' उस समय की सच्चाई हो सकती है, परंतु वर्त्तमान समय में यह कहानी सिर्फ कोरी कल्पना है !
नमस्कार दोस्तों !
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