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3.04.2021

कालजयी कृति ''पंच परमेश्वर' का पोस्टमार्टम...(लघु प्रेरक समीक्षा)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     04 March     समीक्षा     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की समीक्षा.......


क्या सचमुच में पंच परमेश्वर होते हैं, पर अतीत से लेकर वर्त्तमानकालीन स्थिति-परिस्थितियों में हर रोज 'पंचों' को भ्रष्टाचार में अपादमस्तकीय लिप्त-संलिप्त होते-रहते देखे जा सकते हैं ! रुपये-पैसे लेते व यौन उत्पीड़न करते ये पंच 'हॉफ पैंट' पहनने पर लड़कों पर और लड़कियों के द्वारा जीन्स पहनने पर कहर बरपा देते हैं, तो कहीं 'खाप पंचायत' का वीभत्स रूप देखने को मिल ही जाते हैं ! रुपये लेकर किसी की जमीन को किसी अन्य का कर देते हैं और कहीं तो सवर्ण और दलितों के बीच ऐसे-तैसे अंत:रोध पैदा कर देते हैं कि धर्मनिरपेक्ष-जातिनिरपेक्ष पर ही बट्टा लग जाती है !

जो भी हो, लेकिन हम ऐसे-जैसे फैसले सुनानेवालों को कैसे परमेश्वर कह पाएंगे, फिर तो 'मी लॉर्ड' कहना कितना समीचीन है ? ध्यातव्य है, 'पंच परमेश्वर' प्रेमचंद रचित ऐसी कहानी है, जोकि वास्तविक सच्चाई है यानी रियल कहानी है, किन्तु अब यह वास्तविक सच्चाई पुस्तकीय पृष्ठों तक ही सीमित है, क्योंकि उस काल से लेकर अब भी 'पंच की जुबान से खुदा बोलता है' -ऐसा तकियाकलाम हावी है, पर ऐसी बात नहीं है, भले ही आपवादिक सुकृत्य देखने को अवश्य ही मिल जाएंगे !

काश ! प्रेमचंद इस कहानी में यह भी बता देते कि अलगू ने जुम्मन से 'जिरह' में क्या-क्या सवाल किए, तो कहानी और भी अलंबरदार यानी दमदार बन जाती ! जहाँ यह कथा पशुओं के ऊपर हो रहे दुःखान्त पक्ष को जता रही है, वहीं दो धर्मों को मजबूती से जोड़ती भी है, परन्तु क्या सचमुच में लोग (पाठक) इस कथा से कुछ भी सीख पाएँ हैं या कि यह प्रश्न अब भी प्रतिप्रश्न लिए अब भी अनुत्तरित है ?

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
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