आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, पेशे से अर्थशास्त्र विषय की अध्यापिका और कवयित्री सुश्री दुपिंदर कौर गुजराल जी द्वारा रचित मार्मिक कविता.......
कवयित्री दुपिंदर कौर गुजराल |
क्या मैं अलग हूँ या ख़ास हूँ ?
मुझे अलग मत समझो
मैं तुम जैसा ही हूँ
मेरी मुश्किलें तुम से ज़्यादा है,
लेकिन तुम से अलग नहीं हूँ मैं
भगवान ने मुझे कुछ ख़ास बनाया हैं
मेरे में दिमाग़ की कमी नहीं है
हाँ !
मुझे चीजों को समझने में प्रयत्न करना पड़ता है
जो चीज़ें तुम्हें झट से समझ आतीं हैं,
मुझे उन्हें दिमाग़ में बिठाने में वक़्त लगता है
हिसाब में मेरा हाथ तंग है,
किसी समय तो अंकों में फ़र्क़ करना ही असम्भव हो जाता है
माँ बहुत फ़िक्र करती है
रोते भी देखा है कई बार उसको,
परेशान भी रहती है
कि बड़ा हूँगा तो कौन मेरा सहारा बनेगा-
कैसे सारे काम करूँगा ?
फिर वही माँ मुझे सिखलाती है कि-
मैं विचित्र हूँ, ख़ास हूँ
भगवान मुझे दूसरों से भी ज़्यादा प्यार करते हैं
उन्होंने मुझे कोई ख़ास काम करने के लिए इस संसार में भेजा है
लोग चिढ़ाते हैं मुझे कि बुद्धि नहीं है मुझमें
हर काम धीरे करता हूँ,
कितना बड़ा हो गया
लेकिन अभी भी जूते के तसमे माँ से बंधवाता हूँ
पढ़ते हुए शब्द को सीधा पड़ने की बजाए उल्टा पढ़ देता हूँ
क्या यह एक बीमारी है ? क्या मैं बीमार हूँ ?
माँ बहुत घूमी है मुझे डाक्टरों के पास लेकर
कइयों ने कहा मुझमें आईक्यू कम है
यह आईक्यू क्या है ? मैंने माँ से पूछा,
क्या ईश्वर मुझे आईक्यू देना ही भूल गया है ?
क्या दवाइयाँ खाने से आईक्यू बढ़ता है ?
पर कुछ लोग तो कहते हैं, इसकी दवा ही नहीं है
कुछ बोले मुझे स्कूल मत भेजो
लेकिन मेरी माँ हिम्मत नहीं हारती ना ही मुझे हारने देती है
माँ बतलाती है कि-
टॉम क्रूज डिस्लेक्सिया को पीछे छोड़ते हुए हालीवुड का चमकता सितारा बना
हमारी मुश्किलें ज़्यादा है, तो क्या हमारे हौसले भी बुलन्द है
एक दिन मैं एक ऐसा सितारा बन कर चमकूँगा
जिसे सारी दुनिया देखेगी !
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