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8.03.2020

'चार जुलाई की सुबह दस बजे...' [कविता]

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     03 August     कविता     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में पढ़ते हैं सुश्री रूचि भल्ला जी की फ़ेसबुक वॉल से साभार ली गयी अद्वितीय व रुचिकर कविता...

चार जुलाई की सुबह दस बजे
जब तुम कहते हो नखासकोने की सड़क पर चलते हुए
इलाहाबाद कितना अच्छा है न, रुचि
जी चाहता है कह दें कसम से
यह हमारा दिल है, दिलजले !
इस तरह हमारा दिल न जलाओ
न लो इस तरह से उसका नाम मेरे आगे
क्या यह कम बात है ,अनिर्बन !
तुम्हारे पास इलाहाबाद बचा है लूकरगंज में
बची है 100 लूकरगंज में 
शेखर जोशी की अशेष यादें
जहाँ से चौक का रास्ता है दो फ़र्लांग
चौक से पहले डफ़रिन का अस्पताल
जन्म लिया था जहाँ एक रोज़ मरने के लिए
एक रोज़ के लिए मैं जीती हूँ
मरते-मरते बच गई उन्नीसवें साल में
देखा था कातिल को जब मोहब्बत की आँख से
वह आँख पीछा करती है सन् 2020 में
यह बात कम नहीं आज के समय में
अतरसुईया की पतली गली अब भी वहीं है 
लाल गिरजे के पीछे
नये ज़माने की धूल उस पर चढ़ती नहीं
गली के उस मोड़ पर रोक लेते थे पक्षी 
महादेवी वर्मा का रिक्शा
पक्षियों को नाम मिला महादेवी के हाथों से
बात यह बड़ी है कि दुनिया के जंगल में बच गई गिलहरियाँ गिल्लू के नाम से
गिल्लू का बचना महादेवी के इलाहाबाद का बचना है
इलाहाबाद बस गया बच कर लोकनाथ की गली में
जहाँ तवे पर नाचती है हर शाम आलू टिकिया 
मीर गंज के नशे में
इस नशे की नमक हलाली नहीं उतरेगी शहर की 
ज़ुबान से
न देगी शहर को किसी सूरते हाल मरने
चलाए रखेगी नेतराम की कचौड़ी उसकी साँसें
वह कचौड़ी नहीं वेंटिलेटर है कसम से !


नमस्कार दोस्तों ! 


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