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6.30.2019

"श्रीमान प्रेम मोदी है, तो सब मुमकिन है यानी इस माह के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में मिलिए प्रसिद्ध रंगकर्मी व फ़िल्मकार 'प्रेम मोदी' से !"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     30 June     इनबॉक्स इंटरव्यू     No comments   

झारखंड के एक छोटे से गाँव से चलकर रंगमंच व नाटक, फिर फ़िल्म जगत में छा जाना ही उन्हें 'प्रेम मोदी' बनाता है । वह न सिर्फ़ 'प्रेम' है, अपितु 'मोदी' भी है ! पहले भी और आज भी 'प्रेम' शब्द अपने-आप में विस्तीर्णता लिए रहा है, तो वहीं 'मोदी' शब्द देशभर ही नहीं, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक 'ब्रांड' बन गई है यानी मोदी है तो मुमकिन है । भले ही यह पंचलाइन प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी के लिए प्रयुक्त है, तथापि श्रीमान प्रेम मोदी भी न केवल रंगकर्मी व नाटककार, अभिनेता, निर्देशक व फिल्मकार हैं, अपितु इस क्षेत्र के प्रबुद्ध चिंतक भी हैं ! वे अभिनय के माध्यम से प्रकृति और गाँवों को जीना चाहते हैं । उनका सपना है, भ्रष्टाचार पर समुचित प्रहार को लेकर नियमित फ़िल्म बनती रहें। हर माह की तरह इस माह भी 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' प्रबुद्ध पाठकों के लिए धारावाहिक की तरह लेकर आई है, अपनी सबसे चर्चित कॉलम 'इनबॉक्स इंटरव्यू' को, जिनमें रूबरू होंगे-- रंगकर्मी, नाट्यकर्मी और फ़िल्मकार श्रीमान प्रेम मोदी से, जिन्होंने MoA के 14 गझिन सवालों को बिल्कुल सरल और बोधगम्य जवाब देकर मन अत्यधिक प्रसन्न कर दिए हैं ! .... तो इसे पढ़ आप सुविज्ञ पाठक-परिवार भी प्रसन्न हो जाइए ! आइये, हमसब मिलकर इस 'इंटरव्यू' का लुत्फ़ उठाते हैं....


श्रीमान प्रेम मोदी


प्र.(1.)आपके कार्यों को इंटरनेट / सोशल मीडिया / प्रिंट मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र  के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ? 



उ:-
हमारे गाँव में मनोरंजन का कोई साधन नहीं हुआ करता था, लेकिन हर साल सर्दियों में कभी-कभी हमारे गाँव या फिर आस-पास के दूसरे गाँवों में मेला लगा करता था और मेले में गांववालों के मनोरंजन के लिए रामलीला,रासलीला और नौटंकी वालों का दल आया करता था, जो रात भर चला करता था, उन कार्यक्रम में प्रस्तुति कर रहे कलाकारों के साथ हर बार दोस्ती हो जाती थी, क्योंकि वो स्वभाव के बड़े ही सरल और आत्मीय हुआ करते थे। यही वह समय था जब मैं भी प्रभावित हुआ कि मुझे भी कुछ ऐसा ही करना है और हमने भी मनसूबे बना लिए और फिर स्कूल और गाँव में दोस्तों को इकठ्ठा कर छोटे-छोटे नाटक की प्रस्तुति करनी शुरू कर दी, कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह नाटक, नौटंकी की पहली और मजेदार नींव थी और यही शौक आगे चलकर फिल्मों में भी बदल गया।

प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?

उ:-
मेरी पृष्ठभूमि ‘नोनीहाट’ नामक गाँव की बिल्कुल मध्यमवर्गीय परिवार से हुई है,यह वर्तमान में झारखण्ड के दुमका ज़िले में है। मुझे यहाँ तक लाने के लिए मैं मार्गदर्शक तो नहीं कहूँगा, लेकिन आशीर्वाद बहुत लोगों का रहा है। 
मेरे माता-पिता, मेरे भाई, भाभी, दोस्त व मेरे शुरुआती दिनों में मेरे नाटकों को देखने वाले दर्शक रहे, क्योंकि अगर ये सारे लोग मुझे प्रोत्साहित नहीं किये होते, तो शायद ही मैं कभी ऐसा मुकाम हासिल कर पाता !

प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?

उ:-
फिल्म-मेकिंग एक बेहतरीन किस्म की विधा है। यह एक कहानी कहने का माध्यम भी है। हम अपने अंतस में बसी कई सारी कहानियों को (जो आपको झकझोरती भी है) रचने की कोशिश करते हैं और उसे फिर दर्शकों तक लेकर आते हैं । मेरी कोशिश यह भी रहती है कि भारतीय-साहित्य की कहानियों पर फिल्म बनाए जाए, न कि सिर्फ पश्चिम की नक़ल की जाए, हम सबके पास कई सारी कहानियां हैं।

प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?

उ:-
मुझे लगता है, संघर्ष ही जीवन है, संघर्ष न हो तो जीवन नीरस है। यहाँ हर दिन कुछ नया सोचना व अर्थपूर्ण करना ज़रूरी है और ख़ुशी तब दुगुनी हो जाती है जब आपकी कहानी दर्शकों तक पूर्ण रूप से संप्रेषित हो पाती है। कहानी को अपने फिल्मों में कह पाने की जद्दोजहद ही एडवेंचर है मेरे लिए !

प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?  

उ:-
दिक्कतों से दो-चार होना ही पड़ता है, लेकिन इन सारी दिक्कतों में भी मेरे दोस्तों व गुरुजनों का खूब प्यार और साथ बना रहा। इसी वजह से सब कुछ ठीक होता गया ।

प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !

उ:-
जैसा कि आपको बताया कि मैं गाँव में होने वाली नौटंकी, रामलीला, रासलीला से काफी प्रभावित हुआ था। आगे चलकर थिएटर में दिलचस्पी कायम हुई । घरवालों में मेरे कार्य को सराहे ही है, हमेशा ।

प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !



उ:-
सहयोग तो मेरे माता-पिता का हमेशा मिलता रहा है,मेरी पत्नी भी मुझे काफी सहयोग करती है। इसके साथ -साथ फिल्म मेकिंग के कार्य में मेरा मित्र राकेश जी, जो खुद एक बेहतरीन पटकथा लेखक है, मेरा पुत्र ‘अमन’ जो फिल्म क्षेत्र का एक विद्यार्थी है, इनसे भी अक्सर फिल्म की नई तकनीक, शॉट सिलेक्शन पर बातचीत होती रहती है और यकीन मानिये इनसे सीखने को भी बहुत कुछ मिलता है।

प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ?  इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?

उ:-
संस्कृति नदी की धारा की तरह प्रवाहमान है। मैं गाँव से काफी ज्यादा जुड़ा हुआ हूँ, इसीलिए मेरी फिल्मों में गाँव एक केंद्र बिंदु की तरह उभरता है। फिल्मों में अब गाँव खत्म हो रहा है. हमें गाँव की मासूमियत, सुलझे हुए लोगों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे मानवीयता भी बची रहेगी और संस्कृति भी !

प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !

उ:-
फिल्म एक अच्छा माध्यम है, लोगों को जागरूक करने के लिए ! आने वाले समय में यदि, अवसर लगा तो ज़रूर ही भ्रष्टाचार पर भी फिल्म बनाना चाहूँगा, जिससे समाज को कुछ दे पाऊँ ,जिससे बेहतर समाज का निर्माण हो सके ।

प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये ।

उ:-
झारखण्ड सरकार अपने राज्य में बन रही फिल्मों को प्रोत्साहित कर रही है, वो हम सब फिल्मकारों के लिए ज़रूरी भी है, जो सिनेमा में नयापन रचना चाह रहे हैं !

प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी  धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?

उ:-
जी कभी नहीं ।

प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?

उ:-
जी नहीं ।

प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?



उ:-
अभी हाल ही में रेणु जी की कहानी पर बनी फ़िल्म "पंचलैट" को हरियाणा इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में चार पुरस्कार मिले हैं, साथ ही कई और फेस्टिवल्स में फ़िल्म का सेलेक्शन हुआ है । नाटकों में कई बार राष्ट्रीय स्तर व राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है, पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से 1995 में रंगमंच के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता ।

प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ? 

उ:-
मैं एक फिल्म निर्देशक हूँ,जो सोचता हूँ, जो समझता हूँ , देश-काल परिस्थिति के बारे में, उसे अपनी फिल्म में रचने-गढ़ने की कोशिश करता हूँ। आने वाले वक़्त में चाहता हूँ कि युवा फिल्म निर्देशक हिंदी साहित्य की कृत्यों पर भी फिल्म बनाएं । बहुत-कुछ मिलेगा, हमें अपने साहित्य में ।



"आप यूं ही हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !


नमस्कार दोस्तों !

मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो  हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों  के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !

हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
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