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4.18.2019

'करो मतदान, हो राष्ट्रकल्याण'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     18 April     कविता     No comments   

भारत की जनसंख्या संसार में दूसरी आबादी लिए है, किंतु भारतीय लोकतंत्र संसार में सबसे बड़ी लोकतंत्र है । यहाँ के लोकतंत्र में सबसे बड़ा पर्व चुनाव होता है और चुनावों में लोकसभा चुनाव महापर्व कहलाता है । भारत के निर्वाचन आयोग ने सात चरणों में अर्थात 11 अप्रैल से 19 मई 2019 तक सम्पादित होगी तथा 23 मई को एतदर्थ मतगणना सम्पन्न होकर 17वीं लोकसभा का गठन हो जाएगा । इस घोषणा के साथ ही देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो गयी है, वैसे आज दूसरे चरण का मतदान भी है, आइये मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान डॉ.संगम वर्मा की लोकतंत्र के महापर्व यानि चुनाव पर विशेष कविता...
डॉ. संगम वर्मा
मेरी पहल

वोट ! 
हूँह...
तुम्हें मेरी ज़रा सी भी परवाह है
या मेरे होने का मतलब स्वाह है
तुम...!
तुम सब के सब मेरे हत्यारे हो
मेरे वजूद के, मेरी आत्मा के, मेरी देह के
मेरे हर एक भाव के
दम घोंट देते हो सब के सब
तुम्हें नहीं पता मैं तुम्हारे लिए कितना ज़रूरी हूँ
जितना भूख के लिए भोजन
नवजात शिशु के लिए पहला स्तनपान
उतना ही ज़रूरी हो जाता है मतदान
जितना ज़रूरी है सुबह सुबह व्हाट्स एप्प का गुड मॉर्निंग का forwaded fake faded मैसेज, 
उतना ही ज़रूरी समझकर मुझे सही सत्ता में लाकर
सबका जीवन करो perfect fantastic phrases
बड़े सभ्य बने फिरते हो सभ्य समाज के प्राणी
ओ बटन दबाती संस्कृति बटन को तो सही दबाओ
जो सही है सत्य है उसे सही सत्ता में लेकर आओ
ग़लत के चक्कर में गफ़लत न कीजिये
मेरे दोस्त मेरे मित्र सही वोट तो कीजिये
मैं किसी धर्म का नहीं हूँ जाती का नहीं हूँ
कौम का नहीं हूँ सरहद का नहीं हूँ
प्रत्येक मानव जाति का हूँ
माँ कसम मैंने कोई फ़र्क़ नहीं किया वो हिन्दू है मुसलमान है सिख है ईसाई है
फिर क्यों सब एक दूसरे के लिए यहाँ बनते कसाई हैं
मुझे दोषी ठहराते हैं मुझे कोसते हैं मुझपर फब्तियां कसते हैं
एक ही नाव में सवार होकर उन्हीं नावों में छेद करते हैं
मैं कोई पाठ्यक्रम का कोई बुनियादी सवाल का 5, 10 या 15 अंक का सवाल नहीं हूँ
जिसे उत्तर पुस्तिकाओं पर लिखकर आप आगे बढ़ जाएं...!
मैं ज़रूरी हूँ, ज़रूरी हूँ या ज़रूरी हो जाऊँगा जब तक आप अम्ल में नहीं लाते, 
औरों को नहीं बताते --
अरे पूछो ! 
उस किसान से जिसे आत्महत्या करनी पड़ जाती है
ग़लत शासन की ग़लत नीतियों के ग़लत निर्णय से
बख़्श दीजिये, बख्श दीजिये मुझे इस तरह से दुरूपयोग करने से
पूछो, पूछो उस आम वर्ग के आम व्यक्ति से जिसे अपने घर की कारगुज़ारी करनी होती है
महंगाई बढ़ते ही सबके चेहरों पर मायूसी उदासी झलकने लगती है
कमर तोड़ महंगाई सबको खटकती है
इसीलिये घर घर में मानवता की फाँसी लगती है
मेरी ताक़त को पहचानिए --
मैं अपने आप में आपका पूर्ण बहुमत हूँ
और आपके अधिकारों का सौमित्र हूँ
जब ग़लत और सही का निर्णय न होने पाए
इसीलिये बन्धु वोट करना ही है अचूक उपाय
यूँ हाथ पर हाथ धरे मत रहिये
जाइये ! जाइये तो सही !
वोट तो कीजिये
जागरूक बनिये मेरे लिए नहीं, अपने लिए
अपने समाज के लिए, अपने देश के लिए
अपनी संस्कृति के लिए, अपने अधिकारों के लिए
अपनी माँ-ए-वतन के लिए ।

नमस्कार दोस्तों ! 


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