MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

3.13.2019

'मुहब्बत को जुदा करने की तरकीब में, बसी-बसाई दुनिया उजड़ जाती है' (कवयित्री प्रतिभा अग्रहरि की कविता)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     13 March     कविता     No comments   

मुहब्बत यानी प्यार के बारे में कहा जाता है कि यह किसी योजनाबद्ध तरीके से किये नहीं जाते, अपितु अकस्मात हो जाती है ! परंतु 21वीं सदी में जब महान यांत्रिक उपकरण 'कंप्यूटर' भी काफी परिपक्वता हासिल कर लिए हैं, तब मुहब्बत भी होने को लेकर नहीं, किया जाने को लेकर पूर्णत: योजनाबद्ध हो गई है ! यह किया जाने लायक नहीं, अपितु परिपक्वता के बावजूद यह 'नालायक' हो गई है । युवा-युवती के बीच का प्रेम 'स्नेह' लिए कम, 'वासनात्मक' ज्यादा ही हो गई है । अगर शादी के पहले 'देह' प्राप्ति के बगैर स्नेह लिए  प्रेम हो भी जाय, तब भी 'ऑनर किलिंग' पीछा नहीं छोड़ता ! अगर इनसे उबर भी गए अथवा कोर्ट-मैरिज सम्पन्न भी हो गया, तब अब प्रेम व गंधर्व-विवाह के बाद परिवार, ससुराल और अंततः समाज में उन जोड़ी को हेय दृष्टि से देखा जाता है। उलाहना व प्रताड़ना जारी ! अगर प्रेमी-युगल दबंग है तो सिर्फ खुसुर-फुसुर बात चलती है, अन्यथा कमजोर प्रेमी-जोड़ी के आगे समाज 'खुला खेल फर्रूखाबादी' की ढोल तबतक पीटते हैं, जबतक वह युगल समाज या अपने-अपने देह को ही नहीं छोड़ दें ! आइये, आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री प्रतिभा अग्रहरि की 'मुहब्बत पर फेल-व्यवस्था' लिए जानदार कविता ! ..... तो इसे पढ़ ही डालिए, न !


सुश्री प्रतिभा अग्रहरि
फेल व्यवस्था
 मुहब्बत को जुदा करने की तरकीब में,
 कामयाब होने के बाद ज्ञात है तुम सबको,
 उजड़ती है बसी बसाई,
 एक पूरी गृहस्थी --
 एक संसार,
 एक छत,
 एक परिवार,
 एक सुहाग --
 एक पूरा घर,
 अजन्मे बच्चे,
 दुनिया में सबसे सुखी रहने की बनी बनाई योजना,
 तेज रफ्तार में,
 हॉर्न बजाती दौड़ती मेरी ज़िंदगी में सबकुछ है --
 नाम, काम, परिवार और मुहब्बत,
 बीते कुछ दिनों से,
 किसी रेलवे क्रासिंग के इस पार --
 रुकी मेरी ज़िंदगी ने चाहा है,
 रेल की पटरियों पर सीधा खड़ा हो जाना,
 या 
 घुटने के बल बैठ पटरी की सीध में देखना,
 या 
 फिर टांग और खोपड़ी को पटरी के दोनों तरफ फिट करना,
 बीच में धड़ को इस तरह सजाना,
 मेरी अर्थी सजी हो जैसे धड़धड़ाती रेल की रफ्तार में सन्नाटे सी --
 मेरी जिंदगी,
 इस बार मिले तो कहूंगी महबूब से,
 अपनी अंजुरिओ में,
 मेरा चेहरा भरने की बजाय भर ले गर्दन,
 और
 केंद्रबिंदु पर ज़ोर लगाकर मुझे,
 आज़ाद कर दे किवंदती है --
 बच्चा फेल होता है तो पूरी व्यवस्था फेल होती है,
 और 
 मुहब्बत के मामले में फेल मुहब्बत नहीं व्यवस्था हुई है,
भारतीय, पुरातन,जातीय आदर्श परिवार व्यवस्था ।

नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg
    Newer Post Older Post Home

    0 comments:

    Post a Comment

    Popular Posts

    • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
    • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
    • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
    • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
    • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
    • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
    • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
    • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
    • 'कोरों के काजल में...'
    • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
    Powered by Blogger.

    Copyright © MESSENGER OF ART