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12.24.2018

"स्वयं को कर्म की वेदी पर रखो तो जरा" [कवयित्री सुश्री आकांक्षा डी. की कविता]

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     24 December     कविता     2 comments   

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी ने कविता के माध्यम से कहा था -- 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'!' भारतवर्ष के पाँच  प्रांतों के विधानसभाओं के चुनाव-परिणाम से ऐसा लगा कि जनता किसी की नहीं होती, किन्तु 'गर होती है तो सिर्फ जनसेवा के विहित मानवसेवा करनेवालों की । वैसे मोहब्बत और जंग में सब जायज है, किन्तु यहाँ मोहब्बत और जंग नाजायज भी हो सकता है, परंतु इसके बावजूद हमें ऐसे प्रसंगों के तत्वश: खामोश व मौन रहना ही श्रेयस्कर है । आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री व शिक्षिका सुश्री आकांक्षा डी. की लघु, किन्तु प्रसिद्ध कविता ! आइये, इस कविता को पढ़ ही डालते हैं----


सुश्री आकांशा डी.


'मानव धर्म की वेदी पर'

सुनो !
खामोश रहना
जानते हो क्यों --
कि बोलने पर
सुने-समझे नहीं
नकारे जाओगे
या बना दिए जाओगे
हिस्सा भेड़चाल का
नेपथ्य हो जाएंगे
कर्म और भावनाएं ।


सुनो !
बोलने देना
केवल व्यक्तित्व के आयामों को --
कर्म की परिपाटी को
आकांक्षाओं के पदार्पण को
फिर सुनो !
बोलना उस वक्त
जब
अर्जित कर लेना
आवाजें अनुभवों की
उकेर लेना
कुछ नए पदचिन्ह
जब तटस्थ रख सकना
स्वयं को
कर्म की वेदी पर
मानव धर्म की वेदी पर ।



नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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2 comments:

  1. UnknownJanuary 24, 2019

    So nice

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    Replies
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  2. InfiniteFebruary 23, 2019

    It's really amazing for me

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
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