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10.05.2018

'सुश्री आयुषी खरे की एक हृदयस्पर्शी रचना'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     05 October     अतिथि कलम     1 comment   

अक्टूबर माह खूबसूरत दिवसों के रूप में जाने जाते हैं ।
आज विश्व शिक्षक दिवस और मुस्कान दिवस है ।
मैसेंजर ऑफ आर्ट अपने प्यारे पाठकों के लिए लेकर आई हैं, रचनाकार सुश्री आयुषी खरे की हृदयस्पर्शी रचना ! 
आयुषी जी पेशे से पत्रकार और शिक्षिका हैं तथा उनकी दो पुस्तकें भी आ चुकी हैं, लेकिन इन सबों के बावजूद आज का दिन उनके लिए बहुत खुशनुमा है, क्योंकि आज उनकी जन्मदिन भी है । उन्हें जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें देते हुए, हमारे पाठकों के बीच पेश है, उनकी यह रचना ----


सुश्री आयुषी खरे

देखो ना, मौसम भी कितना जल्दी-जल्दी बदलता है। कुछ देर पहले आंगन में धूप थी और अब बारिश की कुछ बूंदों से रास्ता भींग चुका है। ठंडी हवाएं भी बहने लगी है और इन्हीं ठंडी गीली हवाओं ने मेरे दिल को लाकर खड़ा कर दिया है यादों की उसी राह पर जिस पर हम, तुम और मैं मोहब्बत के हमसफर बन कर चले थे। आज शहर की हवा गहरी है पर मुझे याद है जब तुम और मैं पहली बार मिले थे तब मौसम खुशनुमा था। हम अलग-अलग राह के मुसाफिर थे और तकदीर के इत्तेफाक से दोनों के रास्ते एक मोड़ पर मिले थे।

इस राह पर कदम रखा था जब-तब तुम और मैं अजनबी थे पर शायद हमारे दिलों का राब्ता पुराना था। इस अनजान खूबसूरत राह पर चलते-चलते तुम्हारे साथ-साथ, मोहब्बत की इस राह से भी मेरी पहचान हो गई। हाँ, याद है मुझे, मेरे हर कदम के साथ चलते तुम्हारे भी कदम थे। तुम्हारे साथ मैं, अनजानी जो इस राह पर चल रही थी, वह बेहद खूबसूरत थी शायद, इसलिए कि वह राह-ए-मोहब्बत थी।

कभी मेरे होठों से सुनकर, कभी मेरी आंखों में देखकर कितने ही लफ्ज़ तुमने अपने दिल में बसाए थे और तुम्हारे दिल को सुनना मेरा इश्क था। हर रास्ते की तरह यह भी एक रास्ता था । अजनबी जैसे मिले थे हम, हमराही बन कर चल दिए इस रास्ते पर, तुम भींगी बारिश के दीवाने थे, तो मैं ठंडी हवा में बहती हल्की फुहार की कायल । मेरे लिए तुम इंतजार जैसे थे और तुम्हारे लिए मैं उस हवा के जैसी जो समंदर की ठंडक छूकर निकले । हम एक-दूसरे के साथ इस राहत के सफर को, इस इश्क़ की राह पर तय कर रहे थे।

बेतकल्लुफ झुकाव का यह सफर दिलकश भी यूं था कि यह राह-ए-मोहब्बत पर तय हो रहा था, जिसमें तुम्हारे हर लफ्ज़ ने मेरे दिल में तुम्हारी जगह बनाई और मेरे अल्फाजों से तुम्हारी रूह को सुकूँन मिला। हर रास्ते की तरह, इस रास्ते पर, जिस पर तुम और मैं साथ साथ चल रहे थे, एक खूबसूरत पड़ाव आना भी तय था । वह पड़ाव जहां रास्ते की सारी खूबसूरती आकर ठहरती है।

यह ठहराव, जहां तुमने मेरे प्रति महसूस किए जज्बातों को उनकी मंजिल दी थी । तुमने मेरा हाथ अपने हाथ में थाम कर कहा था कि मैं तुम्हारी मोहब्बत हूँ और जान लिया था मेरी खामोशी से की जुड़ गया है मेरा भी दिल तुमसे। इस राह के सबसे खूबसूरत हिस्से पर, तुमने हमारी मोहब्बत के किस्से को मंजिल दी थी । इस छोटे से लंबे सफर का यही था वो खूबसूरत हिस्सा, जहां आकर लगा के इस रास्ते की शायद यही मंजिल होती होगी ।

मगर तुम्हें और मुझे दोनों को यह इल्म बखूबी था कि राहे चलने के लिए होती हैं, उनमें ठहराव नहीं होता, होता है कुछ, तो वह होता है सफर और हम दोनों ने भी जिंदगी के इस पहर में, मोहब्बत का एक दिलकश सफर तय कर लिया था । 


रास्तों पर घर नहीं बसाए जाते, मैंने तुमसे कहा था पर तुम्हारी चाहत के सुकून ने मुझे बसा दिया, कहकर मुस्कुराए थे तुम । मैंने तुम्हें तुम्हारे नाम से पुकारा, आखिरी बार और आखिरी बार मोहब्बत से मेरा नाम लेकर तुमने मुझे अलविदा कह दिया। 

यूँ फिर चल दिये हम अपनी-अपनी ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ रास्तों पर,
अब याद हूं तुम्हें मैं, 
मुझे याद हो तुम, 
जैसे याद है यह बारिश, 
यह बहती हवाएँ और यह रास्ता ।


नमस्कार दोस्तों ! 

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1 comment:

  1. Hare ram chourasiaNovember 28, 2018

    ये जो इश्क़ है ना, बहुत असरदार है।
    तुम जानती हो जब हुआ था तो तुम ही पलको पर, यादों में, उन तमाम रिस्तो में सिर्फ तुम ही थे। ठंड में सरसों की पीली सी खूबसूरत तुम्हरे चेहरे ने हर बार प्यार में डूबने को मजबूर कर दिया, ठंड की अंगड़ाई ने बाहों में भरने को जी चाहा, धूप से मद्धम मद्धम किरणे,तुम्हारी आने का सबब दे जाती थी, तो चिड़ियों की चहचहाट ने तुम्हरे स्वर को मेरे कानों तक पहुंचाती थी,तुम आज भी वैसे ही देखती हो जैसे पहली बार सावन में मिले थे।
    आज भी भी तुम्हरा इश्क़ मेरे दिल के अंदर हिलकोरे मरते रहता। तुम कहाँ हो वापस आ जाओ मेरे पास अब ये दूरी सही नही जाती।
    इश्क़ पे रंग चढ़ रहा है फिर से ये गाढ़ी हो रही है। कहा जाता है इश्क़ जितना पुराना होता उतना ही चमकता है।

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