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5.16.2018

"यह कैसी सजा ?' : श्री सौरभ शर्मा की एक मार्मिक लघुकथा"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     16 May     लघुकथा     1 comment   

मुजरिम वो भी होते हैं, जो जुर्म नहीं भी करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे मुजरिम होते हैं, जो प्यार के मारे अनकहीं जुर्म कर जाते हैं, जो किसी कुंवारी को (पेट'से) गर्भावस्था में लाकर कहीं अन्यत्र छिप जाते हैं और इधर लड़की कुंवारी माँ बनने की जगहंसाई को अंगीकार करने की हिम्मत न दर्शाकर संतान को कचरे में व अनाथालय में छोड़ चली आती हैं । अनाथों के कोई ईश्वर नहीं होते ! लालन- पालन और उच्च शिक्षा प्राप्ति के बाद भी उनके खानदान का परिचय नहीं होने से उनकी/उनके शादी नहीं हो पाती है । क्या अब हम मानव नहीं रहे ? क्या हमारी संवेदनशीलता मर चुकी है ? हम इतने असंवेदित कैसे  हो गए हैं ? तब बेकार है, हमारी शिक्षा, आत्मीयता और प्रवीणता । लानत है, हमारी सहृदयता । हाँ, कुछ ऐसी ही लघुकथा मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में  आइये हम पढ़ते है श्रीमान सौरभ शर्मा की लघुकथा  'यह कैसी सजा ?' .... इसे पढ़िए तो ज़रा......

यह कैसी सजा...!


अंतरा पैदा होते ही छोड़ दिया गया उसे,अनाथालय में, उस नवजात को ,तब यह भी नहीं पता था  कि क्या गुनाह है उसका ...? जो ये सजा दी गयी उसे, अपनों की गोद की जगह यतीमों की जिंदगी दे दी गयी उसे...! अनाथालय चलाने वाली अनुराधा ठाकुर को नन्ही अंतरा से गहरा लगाव हो गया था, क्योंकि उन्होंने भी बचपन में वही सज़ा पाई थी और जानती थी कि इससे क्या असर होती है और लोग किस नजर से देखते हैं तथा क्या-क्या चाहते हैं, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वो इसे अपनी बेटी की तरह पालेंगी, जिस स्नेह ,जिस ममता से वो वंचित रहीं नन्ही अंतरा को वो कभी ये महसूस नहीं होने देंगी और न पता चलने देंगी की वो अनाथ है...!

अनुराधा जी ने एक माँ का फर्ज निभाना शुरू कर दी । नन्ही अंतरा को भी एक माँ मिल गयी, धीरे धीरे दोनों माँ-बेटी एक दूसरे के सुख-दुःख की साथी बन गयीं । अंतरा अब बड़ी हो रही थी, अनुराधा जी ने शहर के सबसे बढ़िया स्कूल में उनकी दाखिला करा दी, पर जब फार्म में पिता का नाम पूछा गया, तो न ही इसका कोई जवाब अनुराधा जी के पास था और न ही अंतरा के पास, पर जाने कैसे अंतरा ने पूरे विश्वास के साथ प्रिंसिपल के सामने कह दी कि हमारे पिता और माँ एक ही हैं, क्योंकि हमको भगवान ने सीधा इन्हीं की गोद मे डाल दिया था और नन्हीं बोल कह उठी-- "यही माँ है तुम्हारी और यही पिता भी...!"

स्कूल की पढ़ाई फिर कॉलेज की पढ़ाई के बाद अंतरा ने भी अनुराधा जी का उनके अनाथालय में मासूम बच्चों पर ध्यान रखना शुरू कर दी, साथ ही अनुराधा जी ने अंतरा के लिए बहुत अच्छा रिश्ते देखना शुरू कर दिए । एक लड़का, जो अंतरा को पसन्द करता था और अंतरा भी उस लड़के को चाहती थी, अनुराधा जी और लड़के के परिवार वालों ने मिल कर दोनों की शादी तय कर दी, अनुराधा जी और अंतरा दोनों खुश थीं, पर जाने क्यों नियति को ये मंजूर नहीं था, सारी तैयारी हो चुकी थी और बारात का इंतज़ार किया जा रहा था, पर बारात नहीं आई, आया तो लड़के वालों की तरफ से ये संदेशा कि ये शादी नहीं हो सकती, क्योंकि हमें पता चला है अंतरा आपकी बेटी नहीं, बल्कि अनाथ है, हम ऐसी लड़की को अपने घर की बहू नहीं बना सकते हैं, जिसके कुल-परिवार का पता नहीं और ये भी नहीं पता कि ये किसके पाप की सजा है...!

"सजा" फिर वही सजा आज सालों बाद फिर अनुराधा जी और अंतरा को दे दी गई, बिना किसी कारण के...!


नमस्कार दोस्तों ! 

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1 comment:

  1. Ruchika raiSeptember 15, 2019

    समाज के दोगलेपन को दिखाती मार्मिक कहानी

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