MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

5.22.2018

'कुम्हार की चाक माने ?'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 May     फेसबुक डायरी     No comments   

विगत सप्ताह हम सभी ने 'मातृ-दिवस' मनाया, पर निर्भया उर्फ दामिनी' की माँ को नमन, जिन्होंने 'माँ' सुनने की संबोधि-संवेदना खोई, तथापि आप पूरे भारत की माँ हो ! इस संतान की ओर से सादर नमन स्वीकारे, हे माँ !
लेकिन आज के बच्चे 'मातृ-दिवस' भी मनाते है और 'माँ' पर गालियाँ भी बकते हैं । पता नहीं, ये कैसी 'मदर-डे' है, जो वे मनाते हैं ? चूँकि मातृ-दिवस पश्चिमी सभ्यता से अपनाई गई है, लेकिन हम भारतीय होकर सिर्फ 'एक दिन माँ' के नाम रखें, यह हमें शोभा नहीं देती ! हम उस माँ को भूल रहे हैं जिन्होंने अपने बच्चों को सरहदों पर धरती माँ की रक्षा के लिए भेजा और अपनी गोद सुनी कर दी और वे जवान (उनके बेटे )भी खुशी-खुशी भारतमाता की रक्षा के लिए दुश्मनों को उनके देश में जाकर मारते हुए शहीद होने का गौरव प्राप्त किये, लेकिन हम उन शहीद बेटे की माँओं को कभी याद नहीं करते ! क्यों न एक दिन उनके भी नाम हो ? आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कुछ अलग ...



भारतीय परंपरा ऐसी है कि यहाँ देवियों को माँ का दर्जा प्राप्त है, इन्ही देवियों में पुस्तकधारिणी माता सरस्वती भी है ? शास्त्रों में इन्हें विद्या की देवी कहा गया है ! समय बदल रहा है, परंपरा बदल रही है कि माँ सरस्वती की सजावट का तरीका भी बदल रहा है । लोग DJ के साथ उन्हें बुलाते हैं और DJ की धुन पर ही उन्हें ट्रेक्टर पर बिठा कर 'विसर्जित' करते हैं । बच्चे को आगे बढ़ाकर किशोर भी DJ की शोर में थिरकते हैं और इस ऊटकबंड पर लाखों खर्च कर डालते हैं । 

कभी आपने सोचा है कि ऐसे प्रतिमाओं के 'ब्रह्मा' कौन हैं और इस आधुनिक ब्रह्मा की क्या दशा-दुर्दशा है ? सभ्यता की शुरुआत से ही 'कल्पनाशक्ति' के माध्यम से देवी-देवताओं का रूप हमारे कुम्हार भाई अपनी हाथ, माटी, कारीगरी और बाजीगरी के माध्यम से मूर्तियों में रूप, यौवन और तमाम सौंदर्य देते रहे हैं, सिर्फ जीवन को छोड़कर ! पर उस शिल्पकार 'कुम्हार' पर किसी की नज़र नहीं जाता है, वे कितनी गरीबी और अभावों में अपनी ज़िन्दगी व्यतीत कर रहे होते हैं । जिनके बनाये आकृति (प्रतिमा) की हम पूजा करते हैं । परंतु कितने हैं, जो हाथों माटी लिए ब्रह्मा यानी कुम्हार को पूजते हैं व सम्मान देते हैं ।


-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।


  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
Newer Post Older Post Home

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

  • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
  • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
  • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
  • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
  • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
  • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
  • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
  • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
  • 'कोरों के काजल में...'
  • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
Powered by Blogger.

Copyright © MESSENGER OF ART